- दिल्ली ब्लास्ट केस में NIA की बड़ी कार्रवाई, i20 कार मालिक को किया गिरफ्तार, उमर के साथ मिलकर रची थी साजिश
देश की राजधानी दिल्ली में धमाकों के 6 दिनों के बाद रविवार (16 नवंबर) को आखिर इस बात का खुलासा हो ही गया कि ये आतंकी हमला किसने करवाया था? सूत्रों के मुताबिक आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के अघोषित संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। टीआरएफ ने आतंकवादी डॉ. उमर नबी के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से दिल्ली विस्फोट की जिम्मेदारी ली है। इसी संगठन ने जैश-ए-मोहम्मद के लिए पहलगाम आतंकवादी हमले को अंजाम दिया था। सरहद पार पाकिस्तान के बहावलपुर और एबटाबाद से पूरी ट्रेनिंग लेकर इस ऑपरेशन को टीआरएफ के आतंकियों ने अंजाम दिया।
NIA ने बताया कि आतंकी संगठन TRF ने आतंकी हमले के लिए फिदायीन हमलावर चुना और उसके बाद इस घटना को अंजाम दिया। इसके पहले टीआरएफ ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के लिए अप्रैल में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले को अंजाम दिया था। इस हमले में टीआरएफ के आतंकियों ने निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया था। पर्यटकों को मारने से पहले इन आतंकियों ने पहले उनका धर्म पूछा फिर उनसे कलमा पढ़ने को कहा था इतने पर भी उन्हें यकीन नहीं हुआ तो पर्यटकों के कपड़े उतरावकर उनका लिंग भी देखा था और ये पक्का कर लिया कि ये हिन्दू हैं तब उनकी हत्या की थी।
इसके पहले रविवार को ही ही एनआईए ने दिल्ली ब्लास्ट केस में आतंकी उमर के साथी आमिर राशिद अली को दिल्ली से गिरफ्तार किया। आमिर राशिद और उमर ने मिलकर ही दिल्ली धमाके की साजिश रची थी। इस फिदायीन हमले में इस्तेमाल की गई कार आमिर के नाम पर ही रजिस्टर्ड थी। दिल्ली ब्लास्ट के बाद से ही जांच टीम को आमिर की तलाश थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने एक कश्मीरी निवासी एक शख्स को गिरफ्तार किया है, जिसने कथित तौर पर उस घातक हमले के पीछे के आत्मघाती हमलावर के साथ साज़िश रची थी, जिसमें 12 लोगों की जान चली गई। जबकि 20 लोग घायल हो ग़ए थे। इस धमाके में उमर ने खुद को इस कार मे ब्लास्ट में उड़ा लिया था।
धमाके में इस्तेमाल की गई कार उसी के नाम पर रजिस्टर्ड थी।एनआईए ने उसे दिल्ली से पकड़ा। धमाके की जांच पहले दिल्ली पुलिस कर रही थी, लेकिन बाद में केस एनआईए को सौंपा गया। केस अपने हाथ में लेने के बाद एनआईए ने बड़ी तलाशी अभियान शुरू किया था, और उसी के दौरान आमिर गिरफ्त में आया। जांच में सामने आया कि आमिर जम्मू-कश्मीर के सांबूरा, पंपोर का रहने वाला है। उसने पुलवामा के उमर के साथ मिलकर ये हमला प्लान किया था।।आमिर दिल्ली इसलिए आया था ताकि उस कार को खरीदने में मदद कर सके। जिसे बाद में धमाके के लिए आईईडी (बम बनाने वाला उपकरण) के तौर पर इस्तेमाल किया गया।
सुसाइड बॉम्बर की तलाश में था उमर: वहीं आतंकी डॉ. उमर नबी से जुड़े कुछ लोगों को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हिरासत में लिया है। उसने पूछताछ में सामने आया है कि डॉक्टरों वाला ये व्हाइट कॉलर मॉड्यूल पिछले साल ही एक सुसाइड बॉम्बर की तलाश में था। इसका जिम्मा डॉ. उमर पर ही था. वहीं मॉड्यूल के एजेंडे को लगातार आगे बढ़ा रहा था. उमर का मानना था कि मॉड्यूल में एक सुसाइड बॉम्बर का होना जरूरी है। अधिकारियों ने बताया हिरासत में काजीगुंड का जसीर उर्फ दानिश भी है। उसके मुताबिक अक्टूबर 2023 में कुलगाम की एक मस्जिद में उसकी डॉक्टरों वाले इस टेरर मॉड्यूल से मुलाकात हुई थी।
ऐसा काम करूंगी कि फक्र होगा…10 साल से जैश से जुड़ी हुई थी डॉ. शाहीन, नौकरी से इस्तीफा देकर बोली थी- अब कौम का कर्ज उतारना है ; धमाके के बाद दुबई भागने की कर रही थी तैयारी। प्लान पर फिर पानी: इसके बाद उसे फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी ले जाया गया। जहां किराए के कमरे में उसे रखा गया। मॉड्यूल चाहता था कि वह ओवर-ग्राउंड वर्कर बने, लेकिन उमर ने उसे कई महीनों तक सुसाइड बॉम्बर बनने के लिए ब्रेनवॉश किया। मॉड्यूल की प्लानिंग इसलिए फेल हुई क्योंकि जसीर ने आर्थिक स्थिति खराब होने और इस्लाम में आत्महत्या हराम होने का हवाला देकर सुसाइड बॉम्बर बनने से इनकार कर दिया था। कई राज्यों की पुलिस के साथ समन्वय: एनआईए इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस, जम्मू-कश्मीर पुलिस, हरियाणा पुलिस, यूपी पुलिस और अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर कर रही है। जांच एजेंसी अब यह पता लगाने की कोशिश में है कि इस धमाके के पीछे कौन-कौन लोग और संगठन जुड़े हुए थे और उनकी साजिश कितनी बड़ी थी। यह केस नंबर RC-21/2025/NIA/DLI के तहत दर्ज है और जांच अब राज्य से राज्य तक फैल चुकी है।अल-फलाह यूनिवर्सिटी का एक डॉक्टर, डॉ. मुजफ्फर, अगस्त महीने में अचानक फरार हो गया सीधे अफगानिस्तान पहुंच गया. एनआईए अन्य खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार, उसकी गतिविधियां संदिग्ध पाई गई हैं उसके वहां के कुछ समूहों से संपर्क के संकेत मिले है। अब बात पाकिस्तान की. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पर इस साजिश को तैयार करने का गंभीर शक है. जांच में यह भी सामने आया है कि इस नेटवर्क का कनेक्शन पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से भी जुड़ा हुआ था. फरीदाबाद की इसी यूनिवर्सिटी में मौजूद एक महिला डॉक्टर के पास से AK-47 जिंदा कारतूस मिलने के बाद शक गहरा हो गया.
तीसरा लिंक दुबई का है. भारत यूएई के रिश्ते अच्छे होने के बावजूद, जांच में यह सामने आया है कि कथित आतंकी नेटवर्क को फंडिंग देने का बड़ा हिस्सा दुबई के जरिए, खासकर क्रिप्टोकरेंसी चैनल्स के माध्यम से किया जा रहा था.
चौथा बेहद अहम कनेक्शन तुर्की का है. साल 2022 में अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े कई प्रोफेसर डॉक्टर तुर्की की राजधानी अंकारा गए थे. वहीं उनकी मुलाकात एक कथित हैंडलर से हुई, जिसके साथ उनका संपर्क एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स के जरिए लगातार जारी था। कुल मिलाकर, जांच में यह संकेत मिल रहे हैं कि दिल्ली ब्लास्ट केस में गैर-राज्य राज्य दोनों तरह के नेटवर्क शामिल हो सकते हैं. इन चार देशों से जुड़े संदिग्ध तार इस केस को गंभीर जटिल बनाते हैं। ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
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