- वर्ष 2009 - 11 और 2011 - 2017 के बीच मतदाता सूची में जुड़े नाम
भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के मतदाता सूची आंकड़ों से पता चला है कि 2009 और 2017 के बीच पश्चिम बंगाल में मतदाताओं की संख्या में 21.8 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि हुई है, जो विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तीन निर्धारित चरणों में सबसे अधिक वृद्धि है। ईसीआई के आंकड़े बताते हैं कि इस चरण के दौरान सबसे अधिक वृद्धि, जिसमें वाम मोर्चा सरकार के अंतिम दो वर्ष (2009-2011) और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) शासन के शुरुआती छह वर्ष (2011-2017) शामिल हैं, मुख्य रूप से बांग्लादेश के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करने वाले ज़िलों में केंद्रित थी। पूरे राज्य में वोटरों की संख्या 21.8% बढ़ी: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग का नए डेटा ने राज्य में फिर से कई सारे सवाल खड़ा कर दिया है. नए डेटा के मुताबिक, 2009 से 2017 के बीच पूरे राज्य में वोटरों की संख्या 21.8% बढ़ी, लेकिन सीमा से सटे जिलों में ये आंकड़ा 115% तक पहुंच गया. खासकर उत्तर दिनाजपुर, मालदा, कूच बिहार जैसे इलाकों में. ये वो इलाके हैं, जो बांग्लादेश के बॉर्डर के पास हैं। सीमावर्ती इलाकों में डबल-सेंचुरी जैसी छलांग
अब जरा आंकड़ों पर नजर डालें. 2009-2017 में उत्तर दिनाजपुर में वोटरों की संख्या लगभग 105 प्रतिशत बढ़ गई. यानी दोगुनी से ज्यादा. बाकी बॉर्डर जिलों में 72 से 95 प्रतिशत तक की तेजी आई. कूच बिहार में 80% के करीब, मालदा में 90% से ऊपर. ये आंकड़े बताते हैं कि सीमा पर बसे गांवों में आबादी का बड़ा बदलाव हुआ. लोग कहते हैं कि नई जनगणना या माइग्रेशन की वजह से ऐसा हुआ, लेकिन सवाल ये है कि इतनी जल्दी इतने नाम कैसे जुड़े? चुनाव आयोग ने ये डेटा SIR प्रक्रिया के तहत जारी किया है, जो वोटर लिस्ट को साफ-सुथरा बनाने के लिए चल रही है. 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले ये रिवीजन बहुत जरूरी है, क्योंकि राज्य में 7.6 करोड़ वोटर हैं.लेकिन ये बढ़ोतरी कई सवाल खड़े कर रही है.
राजनीति गर्म: भाजपा vs टीएमसी का नया रंग
विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी और बीजेपी पार्टी तो लगातार चुनाव आयोग से अपील करती रही है कि बॉर्डर जिलों पर खास नजर रखें. उनका कहना है, "कई गांवों में तो डेमोग्राफी पूरी तरह बदल गई है. अवैध घुसपैठिए वोटर बनकर घुस आए हैं." भाजपा इसे बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों से जोड़ रही है. लेकिन टीएमसी का मानना है कि भाजपा ये मुद्दा सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने और लोगों में गलतफहमियां फैलाने के लिए उठा रही है. ममता सरकार कहती है कि वोटर बढ़ना तो अच्छी बात है, ये लोकतंत्र की ताकत दिखाता है. फिर भी, SIR में अब 3.5 करोड़ वोटरों की वेरिफिकेशन होनी है, जो तीन महीने में पूरी करनी है. जिसके बाद ही शायद असली सच्चाई आ पाए।
चुनाव आयोग की पैनी नजर,किसी अन्य से फॉर्म बंटवाने से बाजार है आयोग
- कारण बताओ नोटिस हुआ है जारी, पार्टी की गतिविधि बर्दास्त नहीं : चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि इस तरह की लापरवाही और नियम उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के अधिकारी के अनुसार, कुछ मामलों में बीएलओ के रिश्तेदारों को फॉर्म बांटते पाया गया है, जिनका संबंध स्थानीय राजनीतिक गतिविधियों से भी जुड़ा है। पश्चिम मेदिनीपुर जिले के दासपुर विधानसभा क्षेत्र में एक बीएलओ ऋतुपर्णा हाजरा के खिलाफ शिकायत मिली कि उनके स्थान पर उनके पति असीम हाजरा, जो तृणमूल कांग्रेस नेता बताए जाते हैं, फॉर्म बांट रहे थे। शिकायत की पड़ताल के बाद बीएलओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है और संतोषजनक जवाब न मिलने पर नियमों के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। सूत्रों ने बताया कि ऐसे कुछ और मामलों की शिकायतें भी प्राप्त हुई हैं और उनकी जांच जारी है। साथ ही, यह भी सामने आया है कि कुछ बीएलओ मतदाताओं के घर-घर जाने के बजाय किसी एक स्थान पर बैठकर लोगों से फॉर्म लेने आने को कह रहे हैं, जो आयोग के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध है। इस पर भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने बीएलओ को चेतावनी जारी की है। ज्ञात हो कि, एसआईआर प्रक्रिया राज्य में 04 नवम्बर से शुरू हुई है और मार्च 2026 तक पूरी होनी है। राज्य विधानसभा चुनाव भी अगले वर्ष निर्धारित हैं, ऐसे में आयोग मतदाता सूची को सटीक और निष्पक्ष रूप से अद्यतन करने पर विशेष जोर दे रहा है। ( बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
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