लालू यादव 25-5-2004 को देश के रेलमंत्री बनें। स्वाभाविक रूप से उनके रिश्तेदारों,नेताओं का रेल भवन आना जाना लगा रहता था। वे लोग रेलमंत्री के “एमआर सेल” के अधिकारियों से भी मिलते रहते थे। उस समय “एम आर” सेल के सेक्शन ऑफिसर शशांक मोहन शर्मा थे जो एक ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी थे ।
रेल भवन में बिहार के एक ख़ास व्यक्ति ने उनसे परिवार के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका पुत्र फार्मेसी का कोर्स किया है। इस पर संत ( छद्म नाम) ने शर्मा जी से कहा कि फार्मेसी सेक्टर में बिहार में बहुत काम है, मैं बेटे को काफ़ी बड़ा दवा सप्लाई का ऑर्डर दिलवा दूँगा। शर्मा जी ने उस व्यक्ति पर विश्वास करके अपने पुत्र को दिल्ली से पटना भेज दिया।उनके पुत्र ट्रेन से पटना रेलवे स्टेशन पहुँचे, जहाँ से उनका अपहरण कर लिया गया।शशांक मोहन शर्मा जी के पास फ़ोन आया कि उनके पुत्र का अपहरण हो गया है। यदि पुत्र की जीवन रक्षा चाहते हैं तो इसके लिए फिरौती देनी पड़ेगी।शर्मा जी के पैर के नीचे की ज़मीन खिसक गई। उनसे भारी फिरौती की रकम माँगी गई।अपहरणकर्ताओं के गैंग के सरगना ने समझा था कि यह व्यक्ति रेलमंत्री सेल का सेक्शन ऑफिसर है तो इसने बहुत धन कमाया होगा।शर्मा जी पटना में गिरोह के सरगना से जाकर मिले और कहा कि उन्होंने ईमानदारी से नौकरी की है, बच्चों को पढ़ाया, अब तीन महीनें में रिटायर हो रहे है, उनके पास बचत में धन नहीं है।सरगना “संत” ने तुरंत उनकी समस्या का हल निकाल दिया। उनसे कहा गया कि मंत्रालय से जानकारी लावो कि तुम्हें सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त कितना धन मिलेगा। शर्मा जी ने संबंधित सेक्शन से प्रमाणपत्र लेकर गये जिसमें उन्हें सेवानिवृत्ति पर लगभग 14 लाख रुपये मिलने थे।संत ने कहा कि मैं अपने एक आदमी से तुम्हें 14 लाख रुपये व्याज पर दिलवा देता हूँ जिसको तुम मुझे दे दो, सेवानिवृति तक इस व्यक्ति को अपने वेतन से ब्याज देते रहो और सेवानिवृत्ति पर मिलने वाला 14 लाख रुपये ब्याज देनें वाले को दे देना।मरता क्या न करता, शशांक मोहन शर्मा ने सरगना के निर्देशानुसार ब्याज लेकर संत को देकर अपने पुत्र की रिहाई करवाई।शर्मा जी अपने रिटायरमेंट का पूरा धन गवाँ दिए और सेवानिवृत्ति के बाद 10 साल तक “राइट्स” में नौकरी करके परिवार का पालन-पोषण किया।इस घटना से अनुमान लगाया जा सकता है कि जब रेलमंत्री के “एमआर” सेक्शन के प्रभारी को बेटे की रिहाई के लिए पूरी रकम गँवानी पड़ी तो बिहार में उस जंगल-राज में क्या हुवा होगा।(यूपी के पूर्व डीजीपी बृजलाल की कलम से)
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