- 24 घंटे में हाथियों ने दिया दो घटना को अंजाम, दहशत में लोग
- क्यों हो रहा हाथी के साथ मानव संघर्ष, हर पहलू को समझना जरूरी
उत्तर बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में पिछले 24 घंटे में हाथियों के दो अलग-अलग हमलों में तीन लोगों की मौत हो गई। इन मृत्यु में एक महिला और एक बच्चा भी शामिल हैं। पहला हमला मदारीहाट क्षेत्र में हुआ, जहां जलदापाड़ा नेशनल पार्क के पास सड़क पर घर लौट रहे कादर अली (चेकामारी क्षेत्र निवासी) पर अचानक एक हाथी ने हमला कर दिया।दूसरा हादसा सुबह के समय मध्य खायरबारी क्षेत्र में हुआ। बताया गया है कि सोनिया मुंडा अपनी 18 महीने की बेटी लक्ष्मी मुंडा के साथ अपने घर के सामने बैठी थीं, तभी जंगल से बाहर आए हाथी ने उन पर हमला कर दिया। दोनों ही मौके पर मृत हो गए।
इलाके के लोग भय और परेशानियों का सामना कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने कई बार राज्य वन विभाग से हाथियों को आबादी में प्रवेश से रोकने के लिए कदम उठाने की मांग की, लेकिन उनके अनुरोध पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 2019 से 2024 के बीच कुल 436 लोगों की हाथियों के हमलों में मौत हुई है। वन क्षेत्रों में कमी और हाथियों की बढ़ती संख्या को मानव-हाथी संघर्ष के प्रमुख कारणों में माना जा रहा है। इसे कम करने के लिए हाथी कॉरिडोर बनाने, बाड़ जैसी भौतिक बाधाओं का उपयोग करने और हाथियों की गतिविधियों को समन्वित करने के लिए समितियों के गठन जैसी कई पहलें की जा रही हैं।उत्तर बंगाल में मानव-हाथी संघर्ष एक गंभीर समस्या है, जो मुख्य रूप से सिकुड़ते जंगल के कारण हाथियों के गांवों और फसलों में घुसपैठ के कारण होती है। इस संघर्ष को रोकने के लिए, वन विभाग हाथी गलियारों का निर्माण कर रहा है, बिजली की बाड़ लगा रहा है, और हाथियों की आवाजाही की जानकारी प्रसारित करने के लिए टीमों की संख्या बढ़ा रहा है। इसके अलावा, जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
संघर्ष के कारण: आवास का सिकुड़ना: मानव बस्तियों और कृषि के विस्तार से प्राकृतिक वन क्षेत्र कम हो रहे हैं, जिससे हाथियों को भोजन और रहने की जगह कम मिल रही है।
फसलों पर हमला: हाथियों की आवाजाही के रास्ते में जंगल और खेती योग्य भूमि के बीच की सीमाएँ धुंधली हो गई हैं, जिससे वे फसलों पर हमला करते हैं। जल स्रोतों तक पहुँचना: हाथियों को पानी की तलाश में अक्सर मानव बस्तियों और खेतों के पास आना पड़ता है। गलियारों का विखंडन: हाथी गलियारों के टूटने से उनके प्राकृतिक मार्ग बाधित होते हैं, जिससे वे नए और मानव-बहुल क्षेत्रों में जाने को मजबूर होते हैं। समाधान और उपाय: हाथी गलियारा: हाथियों के लिए सुरक्षित गलियारे बनाने पर काम हो रहा है, जिसमें चारा और पानी की व्यवस्था की जाएगी। बिजली की बाड़: हाथियों को मानव बस्तियों में घुसने से रोकने के लिए गलियारों के किनारे बिजली की बाड़ लगाई जा रही है। जागरूकता कार्यक्रम: वन विभाग समुदायों के बीच जागरूकता फैला रहा है ताकि उन्हें हाथियों से बचने के तरीके बताए जा सकें।
मानवीय तरीके: सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार, हाथियों को भगाने के लिए आग के गोलों या ज्वलनशील मशालों जैसे अमानवीय तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: हाथियों को रेडियो कॉलर लगाकर उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही है, जिससे उन्हें ट्रैक करना और नियंत्रित करना आसान हो जाता है। उत्तर बंगाल का क्षेत्र पूर्वी हिमालयी जैव विविधता हॉटस्पॉट के अंतर्गत आता है। इस परिदृश्य में वनों में आए बदलाव और क्षरण का बहुत लंबा इतिहास रहा है। शुरुआत में अंग्रेजों ने यहां आकर जंगलों को बदल दिया और उसके बाद यहां गांव बसने लगे। संरक्षित वन छोटे हैं। हाथियों को भोजन, पानी और आश्रय की अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत बड़े क्षेत्र की जरूरत होती है। हम कह सकते हैं कि जंगल चाय बागानों और गांवों के समुद्र में द्वीपों की तरह हैं। इसलिए एक जगह से दूसरी जगह पर जाते हुए हाथियों का फसलों के पास से होकर गुजरना आम है। जाहिर है जब फसल उनके रास्ते में आएगी तो वो उसे अपना चारा बनाएंगे। यह आसानी से मिलने वाला भोजन है। तार्किक रूप से पौधों की प्रजातियों की उपलब्धता को संबोधित करना हमारे लिए एक मुश्किल काम रहा है।” जलपाईगुड़ी के चालसा के रहने वाले अमीर छेत्री ने बताया, “हाथी इन इलाकों में इंसानों से पहले से रहते आ रहे हैं। यहां के लोगों को यह बात अच्छे से पता है। हमारा मानना है कि अगर हाथी हमारी फसलों को नष्ट भी कर देते हैं, तो भी हमारी उपज बर्बाद की गई फसल की मात्रा से चार-पांच गुना ज्यादा ही होती है। “राजबंशी इस क्षेत्र के मूल निवासियों में से एक हैं। वो हाथियों को महाकाल कहते हैं। जब हाथी उनकी फसलों पर हमला करते हैं तो वे मुआवजा भी नहीं मांगते। उनका मानना है कि वो हाथी लोक में रहते हैं और फसल का नुकसान एक कर है जिसे वो चुका रहे है।” अध्ययन में पाया गया कि पौधों की एक तिहाई प्रजातियां जिन्हे हाथी खाना पसंद करते हैं, वो मानव बस्तियों के आसपास मौजूद हैं। हाथियों की चारा खाने की आदत: ।अध्ययन में देखा गया है कि हाथी काफी सोच-समझकर निर्णय लेते हैं। वह सबसे पहले ज्यादा चारे वाले भूखंड का चयन करते हैं, फिर उस हिस्से को चुनते हैं जिस पर उन्हें जाना होता है और सबसे आखिर में खाने के लिए प्रजातियों का चयन किया जाता है। वन, चाय बागान, कृषि भूमि और मानव बस्तियों वाले भूखंडों में उपलब्ध चारे के आधार पर हाथियों की खाने की पसंद और नापसंद की गणना की गई। जैसे-जैसे आवासों में कैनोपी कम होते गए (घने से खुले जंगल की ओर), आक्रामक (विदेशी) प्रजातियों का घनत्व गहरा होता चला जाता है। ऐसे में हाथियों के खाने वाली प्रजातियों की उपलब्धता कम हो जाती है। इसके अलावा, यह भी देखा गया कि हाथियों द्वारा पसंद की जाने वाली 32 फीसदी प्रजातियां मानव बस्तियों में पाई गईं। ऐसे में मानव-हाथी संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है। अध्ययन में संरक्षण रणनीतियों पर दोबारा गौर करने और उन्हें मजबूत करने की मांग की गई है।हालांकि एशियाई हाथियों द्वारा खाए जाने वाले चारे को अच्छी तरह से रिकॉर्ड किया गया है, लेकिन चारा को लेकर उनकी पसंद के बारे में बहुत कम जानकारी है। इस अध्ययन का उद्देश्य इस संबंध में और अधिक रिसर्च किए जाने को लेकर बातचीत शुरू करना है। उत्तर बंगाल में तैनात एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर मोंगाबे-इंडिया को बताया, “वन्यजीवों और लोगों के बीच नकारात्मक संपर्क उनके (वन्यजीवों) आवासों के नुकसान और विखंडन जैसे कई कारकों का परिणाम है।” वह आगे कहते हैं, “तार्किक रूप से कहूं तो, पुनर्वास बहाली का निश्चित रूप से नकारात्मक अंतःक्रियाओं की संख्या पर सीधा प्रभाव होना चाहिए। लेकिन जब आप भारतीय हाथी जैसी प्रजाति से निपटते हैं, जो काफी बुद्धिमान और अनुकूलनीय है, तो सिफारिशों की सफलता की सीमा का अनुमान लगाना तब तक मुश्किल है जब तक कि हम उन्हें क्षेत्र में लागू नहीं कर देते और एक समय-सीमा में परिणामों की निगरानी नहीं कर लेते हैं। ( बंगाल से अशोक झा की रिपोर्ट )
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