- सवाल उठना लाजिमी है कि ‘आई लव मोहम्मद’ अभियान चलाने का असल मकसद क्या था और इस कवायद का ‘गजवा ए हिंद’ से क्या ताल्लुक है?
देश में बिहार व बंगाल चुनाव के पहले इन दिनों एक नया अभियान और विवाद छिड़ गया है। वह है "आई लव यू मोहम्मद"। अपने धर्म के प्रति प्रेम करना बुरा नहीं है लेकिन इसके पीछे के मकशद को लेकर सवाल उठ रहे है जिससे विवाद भी हो रहा है। यूपी के कानपुर शहर से शुरू हुआ ‘आई लव यू मोहम्मद’ पोस्टर विवाद बरेली में विरोध प्रदर्शनकारियों के हिंसक उपद्रव में तब्दील हुआ तो महाराष्ट्र के अहिल्यानगर में किसी ने ‘आई लव मोहम्मद’ लिखी रांगोली बनाने से गंभीर साम्प्रदायिक तनाव में बदल गया। इस कठिन घड़ी में हमें यह याद रखना होगा कि हमारे प्यारे नबी मुहम्मद ने हमें क्या सिखाया था। क्या उन्होंने हमें गुस्से में सड़कों पर उतरने की शिक्षा दी थी? या उन्होंने हमें धैर्य, संयम और बुद्धिमत्ता का पाठ पढ़ाया था? पवित्र कुरान में अल्लाह तआला फरमाते हैं: "और निःसंदेह तुम महान चरित्र पर हो" (सूरह अल-कलमः 4)। पैगंबर मुहम्मद का जीवन सब्र (धैर्य) और हिलम (सहनशीलता) का आदर्श उदाहरण है।अल्लाह तआला कुरान में फरमाते हैं: "भलाई और बुराई बराबर नहीं हैं। तुम बुराई को उस तरीके से दूर करो जो सबसे अच्छा हो, तो तुम देखोगे कि तुम्हारे और जिसके बीच दुश्मनी थी, वह ऐसा हो जाएगा जैसे वह गहरा दोस्त हो" (सूरह फुस्सिलतः 34)। यह आयत हमें सिखाती है कि बुराई का जवाब बुराई से नहीं, बल्कि अच्छाई से देना चाहिए। सड़कों पर उतरकर हिंसा करना, संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, यह पैगंबर की शिक्षाओं के विपरीत है। इन घटनाओं में एक पैटर्न पढ़ें तो लगता है कि सब कुछ अचानक और स्वत:स्फूर्त नहीं? यूं पहली नजर में अपने ईश्वर या उसके दूत से प्रेम करने में कुछ भी गैर नहीं है, लेकिन अगर ऐसा करने के पीछे नीयत प्रेमेतर हो तो सवाल उठना लाजिमी है। और इसे हवा देने में केवल कोई एक पक्ष ही दोषी नहीं है क्योंकि कानपुर में हुआ विवाद काफी कुछ शांत हो गया था, लेकिन बाद में उसे और भड़काने की मंशा से इसे दूसरी जगह भी फैलाया गया। इसके जवाब में कुछ हिंदू संगठनों ने भी जवाबी पोस्टर वार ‘आई लव महादेव’ शुरू कर दया। बरेली में हुई हिंसा के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त जबान में कहा कि भारत में ‘गजवा-ए-हिंद’ के इरादों को कुचल दिया जाएगा। दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई होगी कि आने वाली उनकी पीढि़यां याद रखेंगी। सवाल उठा रहा है कि आखिर क्या था असल मकसद?यहां सवाल उठना लाजिमी है कि ‘आई लव मोहम्मद’ अभियान चलाने का असल मकसद क्या था और इस कवायद का ‘गजवा ए हिंद’ से क्या ताल्लुक है? यह कैसी अवधारणा है और क्या यह आज व्यावहारिक रूप से संभव है या फिर इसका इस्तेमाल केवल मुसलमानों की कट्टरपंथी भावनाओं को उभारने के लिए किया जा रहा है? क्या इसे पूरी तरह कुचला जा सकता है? सवाल यह भी है कि बरेली में जो कुछ हुआ, वह केवल हजरत मोहम्मद के प्रति असीम प्रेम का परिणाम था अथवा पूरे देश में हिंसा और अराजकता फैलाने की साजिश का ट्रेलर मात्र था? आलोचकों का मानना है कि मुसलमानों की यह हिंसा असल में मोदी-योगी सरकार के उनके प्रति रवैये से उपजे आक्रोश के सेफ्टी वाॅल्व का फूटना है। आपसी संवाद और सौजन्य ही इसका इलाज है।बहुतों का मानना है कि सरकार के प्रति मुसलमानों का असंतोष अपनी जगह है, लेकिन इसे जिस तरीके से उभारा जा रहा है, वह देश की एकता अखंडता के लिए गंभीर चेतावनी है। इसे महज ‘जनाक्रोश की अभिव्यक्ति’ मानकर कालीन के नीचे नहीं सरकाया जा सकता।
पोस्टर लगाकर इजहार करना गलत?: पहले बात ‘आई लव यू मोहम्मद’ की। ऐसा कोई भी मुसलमान नहीं हो सकता, जो पैगबंर मोहम्मद से मुहब्बत न करता हो। जब कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है तो उसे सबसे पहले कलमा पढ़वाया जाता है- ‘’ "अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।‘ हजरत मोहम्मद के प्रति अटल आस्था की शुरूआत यहीं से हो जाती है। अमूमन मुसलमान उनके नाम के आगे आदर के साथ "सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम" ("अल्लाह की रहमतें और शांति उन पर हो)" जरूर जोड़ते हैं। तो क्या ऐसे में मोहम्मद साहब के प्रति आत्मिक आस्था का पोस्टर लगाकर इजहार करना गलत है, क्या इसे नई परंपरा माना जाए? लेकिन कुछ लोगों ने इसे ‘नई’ इसलिए माना कि मिलाद-उन-नबी के जुलूस में अमूमन ऐसे पोस्टर नहीं दिखाई देते। फिर भी यह प्रेम का यह इजहार हिंसक प्रदर्शन में क्यों बदल गया? इस बारे में कुछ लोगों का तर्क है कि कानपुर पुलिस द्वारा पोस्टर प्रकरण में कुछ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने पर विरोध भड़का। निश्चय ही पुलिस की कार्रवाई पर ऐतराज हो सकता है, लेकिन इस चिंगारी को हवा देने का मतलब है? क्या यह सचमुच ‘गजवा-ए-हिंद’ की मंशा से किया गया या फिर इसे ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है? इसे समझने से पहले गजवा-ए-हिंद को जानना जरूरी है। अरबी भाषा के ‘गजवा-ए-हिंद’ का शाब्दिक अर्थ है हिंद (भारत) पर इस्लामिक सैनिक विजय।‘ दूसरे शब्दों में समूचे भारत का इस्लामीकरण। क्योंकि भारत मुख्य रूप से मूर्तिपूजकों का देश है और इस्लाम में मूर्तिपूजा हराम है। हालांकि कुछ विद्वान ‘गजवा’ का अर्थ ‘अभियान’ से लेते हैं। ‘गजवा-ए- हिंद’ की व्याख्या को लेकर इस्लामिक विद्वानों की अलग-अलग राय है। पिछले साल यूपी में सुन्नी इस्लाम मानने वाले की सर्वोच्च संस्था ‘दारूल उलूम देवबंद’ ने फतवा जारी कर गजवा-ए-हिंद को जायज बताया था, जिस पर काफी विवाद हुआ था। दारूल उलूम ने यह फतवा अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर दिया था।
फतवे के मुताबिक पैगंबर मोहम्मद के करीबी हजरत अबू हुरैरा के हवाले से एक हदीस सुनाई गई है, जिसमें उन्होंने गजवा-ए-हिंद के बारे में कहा है। हुरैरा ने कहा कि मैं इसमें लडूंगा और अपनी सभी धन संपदा को कुर्बान कर दूंगा। मर गया तो महान बलिदानी बनूंगा। जिंदा रहा तो गाजी (विजेता) कहलाऊंगा। कुछ इस्लामिक स्काॅलरों जैसे ब्रिटिश मसीहा फाउंडेशन इंटरनेशनल के सह संस्थापक यूनुस अलगोहर का मानना है कि गजवा-ए-हिंद को हदीस से जोड़कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। गजवा-ए-हिंद में हिंदुओं, सिखों या इस्लाम कबूल नहीं करने वालों के कत्ल की कोई बात नहीं की गई है। गजवा उसे कहते हैं जिसमें मोहम्मद साहब खुद जिस्मानी तौर पर शामिल हों। इसका मतलब ये हुआ कि न तो गजवा हुआ है और न ये है, जो अब लोग कह रहे हैं, लेकिन अगर इस तरह की कोई चीज होती है और उसमें मोहम्मद साहब शामिल नहीं होते तो ये गजवा नहीं बल्कि कत्लेआम होगा। यह अलग बात है कि भारत पर करीब 6 सौ वर्षों तक मुस्लिम शासकों का शासन होने के बाद भी ‘गजवा-ए-हिंद नहीं हो सका। इसकी वजह भी हमारी गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक जड़ें हैं, जो हमारे गंभीर अंतर्विरोधों के बावजूद मिट नहीं पाई हैं।दूसरी तरफ बिहार के राज्यपाल और कानूनविद आरिफ मोहम्मद खान का मत है कि भारत में गजवा-ए-हिंद के नाम से एक झूठा कैंपेन चलाया जा रहा है। इसका मकसद लोगों के दिमाग में यह बात भरना है कि मुसलमान भारत के टुकड़े कर देंगे। इसे कोई भी स्वीकार नहीं करेगा।
क्या है इस्लामिक विद्वानों की राय?: इस्लामिक विद्वान डाॅ.मौलानावारिस मजहरी के अनुसार ‘ गजवा-ए-हिंद’ का जिक्र हदीसों के छह प्रामाणिक संग्रहों में केवल एक में ही मिलता है। इसकी रिवायतों में एक सहाबी अबू हुरैरा का ही जिक्र आता है। ऐसे में लगता है कि यह रिवायत सही नहीं है और पैगंबर साहब के काफी बाद उमैया खिलाफत के शासकों द्वारा इस मकसद से लिखवाई गई है कि वे अपनी आक्रमण और विस्तार की नीति को इस्लाम का जामा पहना सकें और उन्हें तर्कसंगत ठहरा सकें।हालांकि दुनिया के तमाम इस्लामिक आतंकी संगठन वैश्विक इस्लामिक विजय की व्याख्या को ही मानकर सभी जगह शरिया कानून लागू करने पैरोकार हैं। कुछ भारतीय इस्लामिक विद्वानों के मत में भारत पर पूर्व में हुए हमलों से गजवा-ए-हिंद पूरा हो चुका है। जबकि कुछ मुस्लिम विद्वानों मानते हैं कि यह काम अभी 50 फीसदी ही पूरा हुआ है।
कुछ अति कट्टर मुसलमानों का मानना है कि चूंकि भारत में शासन करने के लिए मुसलमानों की पर्याप्त संख्या (करीब पच्चीस करोड़) है, इसलिए भारत को भी ‘दारूल इस्लाम’ ही होना चाहिए। यहां गैर इस्लामिक (काफिर) धर्मों का कोई जगह नहीं है। वैसे भारत में ‘गजवा ए हिंद’ नाम का एक कट्टरपंथी संगठन भी सक्रिय है। दो साल पहले एनआईए इस संगठन से जुड़े मामलों से जुड़े 3 राज्यों के 7 ठिकानों पर छापा मारा था। जो इस्लामी कट्टरपंथी संगठन भारत के खिलाफ जेहाद छेड़े हुए हैं, उनका सूत्र वाक्य ‘गजवा-ए-हिंद’ ही है। यही वह लोग हैं जो झूठे नारों से समाज को गुमराह करते हैं। जबकि बलरामपुर की सभा में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘गजवा-ए-हिन्द’ भारत की धरती पर नहीं होगा। उपद्रव करने वालों का जहन्नुम का टिकट कटा दिया जाएगा। यह सरकार अराजकता को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। अब आगे क्या होता है, यह देखने की बात है, लेकिन जो हो रहा है, वह देश में सौहार्द की दृष्टि से ठीक नहीं है। देश को गजवा-ए-हिंद नहीं, गजवा-ए-अमन चाहिए। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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