बिहार में विधानसभा चुनाव के बीच सियासी गलियारों में राजनीतिक हलचल तेज है। इस बीच बुधवार को चिराग पासवान ने अपने पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी. इस मौके पर उन्होंने न सिर्फ अपने पिता की विरासत को याद किया बल्कि अपने राजनीतिक संकल्प को भी दोहराया।पिता की पुण्यतिथि पर चिराग ने क्या लिखा?: चिराग ने ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर पिता की तस्वीर साझा करते हुए लिखा- “पापा, आपकी पुण्यतिथि पर आपको मेरा नमन. मैं विश्वास दिलाता हूं कि आपके दिखाए मार्ग और आपके विजन ‘बिहार फ़र्स्ट, बिहारी फ़र्स्ट’ को साकार करने के लिए मैं पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध हूं। उन्होंने आगे लिखा- “बिहार के समग्र और सर्वांगीण विकास का जो सपना आपने देखा था, अब समय आ गया है उसे धरातल पर उतारने का. आपने मेरे कंधों पर जो जिम्मेदारी सौंपी थी, उसे निभाना मेरे जीवन का उद्देश्य और कर्तव्य है।
रामविलास पासवान को क्यों कहा जाता था राजनीत के मौसम वैज्ञानिक : रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था। वे बिहार की राजनीति के दिग्गज नेता थे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने उन्हें यह उपाधि दी थी। केंद्र में सरकार किसी भी पार्टी या गठबंधन की हो, लेकिन रामविलास पासवान उस सरकार के साथ सांठगांठ कर लेते थे। आइए रामविलास की पुण्यतिथि पर उनके राजनीतिक जीवन के बारे में जानते हैं।
बिहार के खगड़िया में रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को हुआ था। दलित परिवार में जन्मे रामविलास ने खगड़िया के कोसी कॉलेज से कानून की पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और कला में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। उन्होंने 8 अक्टूबर 2020 को दुनिया को अलविदा कह दिया था। राजनीति में आने से पहले रामविलास पासवान बिहार पुलिस में डीएसपी बने थे। वे साल 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में एक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधानसभा के लिए चुने गए थे। साल 1974 में उन्होंने लोकदल के महासचिव पद की जिम्मेदारी संभाली। एक साल के बाद साल 1975 में 21 महीने के इमरजेंसी के दौरान रामविलास पासवान को गिरफ्तार कर लिया गया था और वे इमरजेंसी हटने तक जेल में रहे। साल 1977 में जेल से रिहाई के बाद रामविलास पासवान ने जनता पार्टी के टिकट पर हाजीपुर से चुनाव लड़ा और जीत प्राप्त की। उस वक्त उन्होंने सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। साल 1980 और 1984 में उन्होंने फिर हाजीपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी।
रामविलास पासवान ने साल 1983 में 'दलित सेना' संगठन बनाया था। इस संगठन का मकसद दलित समुदाय का कल्याण करना है। बाद में इस संगठन का नाम बदलकर अनुसूचित जाति सेना कर दिया गया। जनता दल से अलग होकर रामविलास ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की थी।
लोजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान की सिर्फ बिहार में ही नहीं, बल्कि केंद्र की राजनीति में अच्छी पकड़ थी। वे ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने देश के 6 प्रधानमंत्रियों के साथ केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया। साल 2005 में राबड़ी देवी बिहार की सीएम थीं। फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन फिर भी सत्ता से दूर रह गई। इस चुनाव में लोजपा किंग मेकर बनकर उभरी थी। बिहार में ऐसी स्थिति थी कि लोजपा जिसे सपोर्ट करेगी, सरकार उसी की ही बनेगी।
रामविलास पासवान ने लालू प्रसाद के सामने एक शर्त रखी थी। उन्होंने कहा था कि अगर वे मुस्लिमों के सच्चे हितैषी हैं तो किसी मुस्लिम को राज्य की कमान सौंप दें। ऐसी स्थिति में लोजपा सरकार को समर्थन देगी, लेकिन लालू यादव सत्ता की कुर्सी अपने परिवार से बाहर नहीं जाने देना चाहते थे। ये राजनीतिक गतिविधि उस वक्त हो रही थी, जब लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान दोनों ही यूपीए सरकार में मंत्री थे।अंत में न तो लालू प्रसाद को सत्ता मिली और न ही रामविलास पासवान को। पार्टी को टूटता देखकर रामविलास पासवान ने राज्यपाल से राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया।
शादीशुदा रामविलास को 12 साल छोटी एयरहोस्टेस से प्यार: प्रेमिका की जिद पर सिगरेट-शराब छोड़ी
प्रेम कहानी ऐसी जो भुलाया नहीं जा सकता: 7-8 साल की उम्र में ही रामविलास पासवान की पहली शादी कर दी गई थी। गौना होने के बाद पत्नी राजकुमारी देवी उनके पैतृक गांव शहरबन्नी आईं। दोनों की एक बेटी भी हो गई, लेकिन रामविलास साल में एक-दो बार ही उनसे मिलने गांव जाते थे। राजनीति में सक्रियता बढ़ी, तो आना-जाना और कम हो गया। 1977 में पहली बार हाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर पासवान दिल्ली पहुंचे थे। इस समय उनकी पहली पत्नी राजकुमारी भी अपनी दोनों बेटियों के साथ दिल्ली आई थीं। तीन महीने बाद रामविलास ने उन्हें वापस भेज दिया। वह फिर कभी दिल्ली नहीं आईं।।रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी अभी भी शहरबन्नी में रामविलास के पैतृक घर में रहती हैं।
मिलने आए अफसर की बेटी को दिल दे बैठे पासवान
1977 के चुनावों में सबसे ज्यादा मतों से जीत दर्ज करने के चलते रामविलास पासवान के खूब चर्चे थे। उस समय वाणिज्य मंत्रालय में डिप्टी डायरेक्टर गुरुबचन सिंह एक दिन अपने कुछ साथियों के साथ पासवान से मिलने पहुंचे। सिंह, पासवान के स्वभाव से बहुत प्रभावित हुए और अक्सर उनसे मिलने लगे।
गुरुबचन सिंह की बेटी अविनाश कौर उस समय 19 साल की थी और एयर होस्टेस बनना चाहती थी। परिवार सहित रामविलास पासवान के घर जाने के बाद गुरुबचन सिंह को लगा कि पासवान को भी अपने घर बुलाना चाहिए। रीना बताती हैं, ‘पहली बार जब ये घर आए तो लंबी बातचीत हुई। पड़ोस के लोगों को पता चल गया था। वे भी इनसे मिलने आए। देर तक बातचीत चली। बस इसी तरह पारिवारिक आना-जाना लगा रहा और नजदीकी बढ़ती गई।’ रीना के कहने पर पासवान ने पान-सिगरेट छोड़ दिया: रामविलास पासवान दिल्ली आए थे, तब उन्हें सिगरेट, पान और चाय की बुरी लत लगी हुई थी। ‘रामविलास पासवान: संकल्प, साहस और संघर्ष’ के मुताबिक, एक बार रीना ने उनसे कहा, 'शादी से पहले क्या आप सिगरेट छोड़ नहीं सकते?' पासवान ने तुरंत जवाब दिया, 'क्यों नहीं? अभी से छोड़ देता हूं।' उसके बाद से मरते दम तक पासवान ने पान-सिगरेट को हाथ नहीं लगाया। यहां तक कि उन्होंने चाय पीना भी छोड़ दिया था। रामविलास जानते थे कि अम्मा-बाउजी इस रिश्ते के लिए कभी नहीं मानेंगे, इसलिए बिना शोर-शराबे के वो पति-पत्नी की तरह साथ रहने लगे। बाद में 1983 में शादी कर ली। शादी के ब्लैक एंड व्हाइट एल्बम में रीना और रामविलास। दोनों ही पंजाबी स्टाइल में सजे हुए थे।
शादी दिल्ली में हुई, लेकिन कोई तामझाम नहीं रखा गया। पासवान ने अपने करीबी दोस्तों को भी शादी के बारे में नहीं बताया था। हालांकि उनके दोनों छोटे भाई पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान शादी में शामिल हुए।दूसरी शादी से दो साल पहले पासवान ने पहली पत्नी राजकुमारी देवी को तलाक दे दिया था। 2014 लोकसभा चुनाव के नामांकन के दौरान उन्होंने इस बात का खुलासा किया था। शादी होने के बाद अविनाश कौर ने अपना नाम बदलकर रीना पासवान कर लिया। उन्होंने कभी इसकी वजह नहीं बताई। हालांकि पासवान रीना को प्यार से बीके कहकर पुकारते थे। रीना और रामविलास के घर पहले बेटी निशा और फिर 1982 में बेटे चिराग का जन्म हुआ।
रामविलास की दो शादियों पर संसद में भी हंसी-मजाक हुआ: पासवान की दूसरी शादी उनके विपक्षियों के साथ साथियों को भी पसंद नहीं आई। संसद तक में उनका मजाक बना। इसका एक किस्सा लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप की किताब ‘पार्लियामेंट विट एंड ह्यूमर’ में मिलता है।
एकबार संसद सत्र में रामविलास पासवान का नाम प्रश्न सूची और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव दोनों में पहले नंबर पर था। आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद गोपाल रेड्डी ने अध्यक्ष को यह बताते हुए कहा- पासवान को 'दो फल' मिले हैं। इस पर लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ भी चुटकी लेते हुए बोले, 'आपने सदन के कामकाज पर एकाधिकार कर लिया है।' जनता दल के सांसद प्रो. मधु दंडवते हंसते हुए बोल पड़े, 'सदन के कामकाज में बाइगेमी (एक पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह) की अनुमति है।'
शादी के शुरुआती दिनों में पत्नी रीना के साथ किचन में खाना बनाते रामविलास पासवान। पासवान के साथ पैदल गांव के लिए निकल पड़ीं रीना : पासवान की शादी के कुछ साल बाद ही उनके छोटे भाई रामचंद्र पासवान की शादी हुई। यह पहला मौका था जब रीना पासवान अपने सास-ससुर से मिलने वाली थीं। पासवान और रीना खगड़िया से जीप में 32 किमी दूर शहरबन्नी के लिए निकले। रास्ते में ही उनकी गाड़ी खराब हो गई। उस जमाने में न मोबाइल फोन थे, न इतनी गाड़ियां चला करती थीं कि गांव तक जाने का दूसरा इंतजाम हो पाता।
ऐसे में पासवान ने रीना को इशारा किया और दोनों पैदल ही गांव की ओर निकल पड़े। साड़ी पहनी रीना कई किलोमीटर तक कच्चे रास्ते पर पासवान के साथ चलती रहीं। फिर उन्हें एक बैलगाड़ी मिल गई जिससे वह गांव पहुंचे। गांव में हुई पहली मुलाकात में ही रीना ने पासवान के परिवार का दिल जीत लिया था।‘रामविलास पासवान: संघर्ष, साहस और संकल्प’ में रीना बताती हैं, जब हम बैलगाड़ी से घर पहुंचे तो बाबूजी दरवाजे पर ही खड़े थे। मुझे बताया गया था कि बिहार में ससुर के पैर नहीं छूते, लेकिन मैं खुद को रोक नहीं पाई। झुककर बाबूजी के पैर छूए। बाबूजी ने रीना से पूछा, मुझे पहचानती हो? जब रीना ने हां कहा तो बाबूजी खुश हो गए।अगले दिन सुबह रीना फिर उनके पास जाकर बैठ गईं और बातें करने लगीं। ऐसे ही धीरे-धीरे रामविलास के माता-पिता ने भी रीना को खुशी से अपना लिया। दोनों लंबे समय तक उनके साथ दिल्ली में भी रहे। मां सिया देवी के साथ रामविलास पासवान, मंझले भाई पशुपति पारस (बाएं) और रामचंद्र पासवान (दाएं)।
शादी के बाद एक रात भी रीना से दूर नहीं रह पाते थे पासवान‘रामविलास पासवान: संघर्ष, साहस और संकल्प’ में रामविलास पासवान बताते हैं, मुझे याद नहीं कि एक दिन भी ऐसा बीता है, जब बीके से मेरी बात नहीं हुई हो। अकेले जब बाहर जाते हैं तो सुबह और शाम कम से कम दो बार फोन से बात हो जाती है। शादी के बाद पासवान और रीना दिल्ली में ही रहे। रीना का मायका भी दिल्ली में ही है, लेकिन वह एक रात भी मायके में नहीं रुकी। दिनभर मायके में रहकर वह हमेशा शाम को घर लौट आतीं। पासवान के खाने-पीने, दवाइयों, दौरों की तैयारियां सभी काम रीना के ही जिम्मे होता था। पासवान कहते थे, 'शादी के बाद उन पर जो निर्भर होना शुरू हुआ, तो अभी तक उन्हीं पर पूरी तरह निर्भर हूं।’
1984 में रामविलास पासवान को यूनिसेफ की तरफ से अमेरिका जाने का न्योता मिला था। दौरा एक महीने का था। पासवान कभी इतने समय रीना से दूर नहीं रहे थे। रहने-खाने के लिए दिन के $100 मिलने थे, लेकिन पत्नी और बच्चों के साथ अमेरिका जाने के लिए यह काफी नहीं थे। इसलिए उन्होंने अकेले ही जाने का फैसला लिया।
अमेरिका जाने के एक हफ्ते बाद ही पासवान को परिवार की याद आने लगे। वे जल्दी ही रीना को बुलाना चाहते थे। पैसे बचाने के लिए उन्होंने सस्ते होटलों में खाना शुरू किया। अगर अमेरिका में कोई पहचान वाला कभी खाने पर बुलाता तो उससे भी पैसे बच जाते।10-15 दिन में ही उन्होंने काफी पैसे बचा लिए और रीना को अमेरिका बुला लिया। चिराग और निशा छोटे थे इसलिए उन्हें नाना-नानी के घर छोड़ दिया गया। अगले 10-12 दिन रीना के साथ रहकर ही पासवान ने अपना काम पूरा किया और फिर दोनों साथ भारत लौट आए।बेटी निशा और बेटे चिराग के साथ रामविलास और रीना।लोकसभा चुनाव हारे तो न रहने का ठिकाना, न घर चलाने के पैसे;
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोकसभा चुनाव हुए। इस समय पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी। 7 साल सांसद रहने के बाद पासवान हाजीपुर से हार गए। उन्हें सांसद आवास खाली करना पड़ा।।कुछ दिन वह सांसदों के अतिथियों के लिए आवंटित घर में रहे। इस घर का इस्तेमाल करने के लिए किसी मौजूदा सांसद से हर तीन महीने में एप्लिकेशन लिखवानी पड़ती। दो कमरे के इस घर में उनके परिवार को काफी समस्या होती। ऐसे में अकाली दल के सांसद तेजा सिंह ने उन्हें अपना आवास रहने के लिए दे दिया। वे सिर्फ संसद सत्र के दौरान दिल्ली आते, जिसके लिए उन्होंने एक कमरा छोड़कर पूरा घर पासवान परिवार को ही सौंप दिया था। रहने के लिए घर का तो इंतजाम हो गया, लेकिन घर चलाने का नहीं। रामविलास पासवान: संघर्ष, साहस और संकल्प के मुताबिक, 'घर का खर्च रीना पासवान चलाती थीं। खाना भी वहीं बनाती थीं। दैनिक जरूरतों की चीजें लाने के लिए भी उन्हें ही मार्केट जाना पड़ता। 600 रुपए में घर चलाना बहुत मुश्किल पड़ जाता।'
एक दिन उड़ीसा (अब ओडिशा) के पूर्व सीएम बीजू पटनायक ने रामविलास पासवान को मिलने बुलाया था। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ऑटो से जाया जा सके। ऐसे में रीना ने घर की दराजें खोल कर और जेबें टटोलकर बचाए हुए कुछ 5-6 रुपए पासवान को दे दिए। बातचीत के दौरान जब पटनायक को पासवान की स्थिति का एहसास हुआ तो उन्होंने पासवान को तुरंत 2,500 रुपए दे दिए। 1989 में हुए अगले लोकसभा चुनाव तक रामविलास और रीना ने इसी तरह अपनी जिंदगी गुजारी। चुनाव में पासवान को फिर एक बार हाजीपुर सीट पर जीत मिली। यह किस्सा शोभना के. नायर की किताब, भारतीय राजनीति के मौसम वैज्ञानिक: रामविलास पासवान में रीना पासवान ने खुद साझा किया है। इसके बाद 2009 तक पासवान लगातार लोकसभा सांसद रहे। एच. डी देवगौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें मंत्री पद मिला। साल 2000 में पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी बना ली और 2004 में UPA सरकार में भी मंत्री रहे। 2009 का लोकसभा चुनाव पासवान हाजीपुर से हार गए, लेकिन राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचे। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में पासवान फिर NDA के साथ आ गए और इस बार भी मंत्री रहे। खराब तबीयत के कारण उन्होंने 2019 का चुनाव नहीं लड़ा।पासवान की मृत्यु के बाद चुनावी मंचों पर दिखीं रीना। ( अशोक झा की कलम से )
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