इस तरह हुई थी लोकतंत्र में पहली बार अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता की सुरक्षा
अजीत मिश्र
मन में ज़हर डॉलर के बसा के,
फिरती है भारत की अहिंसा।
खादी की केंचुल को पहनकर,
ये केंचुल लहराने न पाए।
ये भी है हिटलर का चेला,
मार लो साथी जाने न पाए।
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू,
मार लो साथी जाने न पाए।
देश को आजादी मिले अभी चंद ही साल हुए थे कि बंबई में मजदूरों की एक बड़ी हड़ताल हुई, जिसमें मजरूह भी शामिल हुए। उस हड़ताल में मजरूह सुल्तानपुरी ने उपरोक्त कविता पढ़ दी,नेहरूजी को यह कविता इतनी नागवार गुजरी की उनके आदेश पर तत्कालीन गवर्नर मोरारजी देसाई ने मजरूह को मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में भेज दिया। उनके साथ मशहूर अभिनेता बलराज साहनी और कई अन्य को भी जेल में डाल दिया गया। कहा जाता है कि उनकी कविता ने पंडित नेहरू समेत तमाम नेताओं को बहुत असहज कर दिया था। कमलेश कपूर की किताब 'पार्टिशिन: द लिगेसी ऑफ एमके गांधी' में पूरे किस्से का जिक्र है। किताब में वे लिखते हैं कि हड़ताल में कविता पढ़ने के बाद मजरूह सुल्तानपुरी को दो साल के लिए जेल में डाल दिया गया। हालांकि उनसे माफी मांगने की भी शर्त रखी गयी थी, जिसे मानने से उन्होंने इनकार कर दिया था। इस वजह से उन्हें दो सालों तक जेल में ही रहना पड़ा। बताते हैं कि जेल में बंद रहने के बावजूद मजरूह सुल्तानपुरी ने कई फिल्मों के लिये गीत लिखे, जोकि काफी हिट रहे। बाद के दिनों में सुल्तानपुरी को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी मिला।
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