- कैसे इस सवाल का जवाब छुपा है अतीत में की गई गलतियों में
- प्रधानमंत्री नेहरू मान जाते तो नेपाल होता भारत का राज्य, बांग्लादेश देना गलती इंदिरा गांधी की देन
- यह कांग्रेस के ही पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा में इसकी पुष्टि होती है
देश में कही हिन्दू मुस्लिम के बीच टकराव की खबर आती है तो देश में 1947 में हुए विभाजन के लिए नेहरू गांधी को दोषी माना जाता है।एक तीखी बहस शुरू हो जाती है। इसी प्रकार पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश और इन दिनों नेपाल में अशांति और भारत के टैंशन के लिए भी कांग्रेस के आंकाओ को जिम्मेदार बताया जा रहा है।सेना ने जनता से सहयोग की अपील की है और चेतावनी दी है कि हिंसा, आगजनी, लूटपाट या किसी भी अपराधिक गतिविधि को कड़ाई से रोका जाएगा। आवश्यक सेवाओं को कर्फ्यू के दौरान संचालन की अनुमति होगी।
नेपाल में लागू देशव्यापी कर्फ्यू लागू किया गया है। नेपाल की सेना ने बुधवार को देशभर में कर्फ्यू लगाने का निर्णय लिया। यह शाम 5 बजे से गुरुवार (11 सितंबर) सुबह 6 बजे तक प्रभावी रहेगा। सेना का कहना है कि यह कदम सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और हिंसा फैलाने वाले तत्वों को नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। कहा जा रहा है कि अगर नेहरू मान जाते तो नेपाल होता भारत का राज्य, जानें किसने बनाया था पूरा प्लान: नेपाल को भारत में मिलाने का प्रस्ताव पेश किया गया था। यह प्रस्ताव नेपाल के राजा वीर विक्रम त्रिभुवन शाह ने पंडित नेहरू के सामने रखा था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा में इसकी पुष्टि की है। उन्होंने तो यहां तक लिख दिया कि अगर यह प्रस्ताव इंदिरा गांधी के सामने आया होता तो नेपाल भी सिक्किम की तरह भारत का एक प्रांत होता। जाने पूरा मामला। नेपाल को भारत में मिलाने का प्रस्ताव वहां के राजा वीर विक्रम त्रिभुवन शाह ने दिया था। नेपाल के राजा वीर विक्रम त्रिभुवन शाह ने पंडित नेहरू के सामने नेपाल के भारत में विलय का प्रस्ताव किया था लेकिन पंडित नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया था। जनता पार्टी की सरकार में उप-प्रधानमंत्री रहते चौधरी चरण सिंह ने राजा के इस प्रस्ताव का जिक्र नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बी.पी.कोइराला के सामने किया था। यह सुनकर कोइराला असहज हो गए थे । उस समय वहां साथ में मौजूद चंद्रशेखर ने माहौल को हल्का करने के लिए बात का रुख बदला था। लेकिन चरण सिंह का कथन आधारहीन नहीं था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी अपनी आत्मकथा में इसकी पुष्टि की है। उन्होंने तो यहां तक लिख दिया कि अगर यह प्रस्ताव इंदिरा गांधी के सामने आया होता तो नेपाल भी सिक्किम की तरह भारत का एक प्रांत होता। चरण सिंह के कथन की प्रणव ने की पुष्टि: जनता पार्टी की सरकार के दिनों में चौधरी चरण सिंह और कोइराला की भेंट में जब यह प्रसंग उठा था तो चंद्रशेखर भी मौजूद थे। कोइराला परेशान हो गए थे। तब माहौल को सामान्य करने के लिए चंद्रशेखर ने इसे टालने का प्रयत्न किया था और चरण सिंह की समझ पर भी सवाल उठाए थे। अपनी आत्मकथा में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस प्रसंग का उल्लेख किया है। बेशक चंद्रशेखर ने चरण सिंह के कथन पर भरोसा नहीं किया लेकिन दशकों बाद पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा अपनी आत्मकथा में नेपाल के राजा के प्रस्ताव और नेहरू के इनकार के उल्लेख से साफ है कि चरण सिंह ने जो बात कही, उसका यक़ीनन कुछ आधार था। राजा वीर विक्रम त्रिभुवन शाह। क्यों हुआ खाना खराब?: चंद्रशेखर ने अपनी आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में लिखा, ‘एक बार बीपी कोइराला दिल्ली आए। उन्होंने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मुलाकात करनी चाही। एक बैठक के बाद मैंने मोरारजी से पूछा कि बीपी कोइराला मिलना चाहते हैं, कब ठीक रहेगा? उन्होंने कहा कि अभी बुला लीजिए। मैंने कहा, नहीं, वे कल आएंगे। हम लोग निकल ही रहे थे कि चौधरी चरण सिंह ने मुझसे कहा कि बीपी कोइराला से मुझे भी बात करनी है। मैंने कहा कि दोपहर में उन्हें खाने पर बुला लीजिए।
बीपी कोइराला से चरण सिंह ने जो बात की, उससे खाना ही खराब हो गया। नेपाल की परिस्थितियों को जाने बिना वे बीपी कोइराला को इतिहास की जानकारी देने लगे। कहा कि नेपाल नरेश त्रिभुवन ने नेहरू जी से कहा था कि नेपाल को भारत में मिला लीजिए। अगर नेहरू ने यह गलती न की होती तो समस्या पैदा ही न होती। मैं बीपी कोइराला का चेहरा देख रहा। वे चौधरी चरण सिंह को सुन रहे थे और उनके होश उड़ते जा रहे थे…’
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोइराला। तब नेपाल भी होता भारत का एक प्रांत: यह पुराना प्रसंग दशकों के अंतराल पर प्रणव मुखर्जी के खुलासे से फिर चर्चा में आया था। मुखर्जी नेहरू-गांधी परिवार के नजदीकी लोगों में रहे। उनकी छवि संजीदा राजनेता की थी। वे देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर भी रहे। अपनी आत्मकथा ‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स ‘ में उन्होंने लिखा कि नेपाल के तत्कालीन राजा वीर विक्रम त्रिभुवन शाह ने पंडित नेहरू के सामने नेपाल के भारत में विलय का प्रस्ताव किया था लेकिन पंडित नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया था।मुखर्जी ने तो आगे यहां तक लिखा कि अगर ऐसा प्रस्ताव इंदिरा गांधी के सामने आया होता तो नेपाल भी सिक्किम की तरह भारत का एक प्रांत होता। अगर अब इसी बात को सदन में या सदन के बाहर भाजपा या उसके समर्थक दोहराने तो उन्हें एंटी कांग्रेस कहा जाता है आखिर सच्चाई से कांग्रेस कबतक मुंह छुपाएगी? ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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