भारत चरखा चलाने से आज़ाद नहीं हुआ यह अंग्रेजों के राज का खत है गवाह
सितंबर 22, 2025
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अंततः वह पत्र "राष्ट्रीय अभिलेखागार" में मिल गया है । "मोहन दास करमचंद गांधी को 1930 में निजी खर्चों के लिए अंग्रेजों से प्रति माह 100 रुपये किस लिए मिलते थे ?" उस समय, 10 ग्राम सोने की बाजार कीमत 18 टका थी । उस समय 100 रुपये का बाजार मूल्य वर्तमान में "2.88 लाख" रुपये के करीब है । बुरा तो नहीं है, है ना ? लेकिन उसे पैसे क्यों मिलते थे ? अंग्रेज़ों को किसी काम में मदद करने के लिए भुगतान के बारे में ? याद रहे कि उस समय असहयोग आन्दोलन चरम सीमा पर पहुँच चुका था । हाँ, मेरा मतलब यह है कि हमारा भारत चरखा चलाने से आज़ाद नहीं हुआ था । आप क्या कहते हैं...!!??
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