आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि जहां दुख पैदा होता है वहां धर्म नहीं।
अंतराष्ट्रीय व्यापार तो चलेगा लेकिन उसमें दबाव नहीं होना चाहिए, पारस्परिक होना चाहिए। कोक पीने से अच्छा है शिकंजी क्यों नहीं पी सकते? अपने राज्य से गाड़ी खरीदे बाहर से क्यों लाना? अंतराष्ट्रीय ट्रेड में स्वेच्छा से संबंध बनाने चाहिए, दबाव में नहीं बनाने चाहिए। अनुकूलता मिली है तो सुविधाभोगी नहीं होना है, आराम नहीं करना। सतत चलते रहना है। मैत्री, उपेक्षा, आनंद, करुणा के आधार पर सतत चलते रहना है।उन्होंने स्वदेशी पर जोर दिया और कहा कि जो चीजें देश में बनती हैं, उन्हें ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।मोहन भागवत ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलेगा, लेकिन इसमें दबाव नहीं होना चाहिए. हम घर में शिकंजी बनाकर पी सकते हैं, कोल्ड ड्रिंक क्यों पीनी है. जो अपने देश में बनता है, उसको देश में बनाना और खाना चाहिए।
उन्होंने हिंदुत्व की विचारधारा को 'सत्य और प्रेम' के दो शब्दों में समझाया. उन्होंने कहा कि दुनिया एकजुटता पर चलती है, सौदों या अनुबंधों पर नहीं. हिंदू राष्ट्र का जीवन मिशन विश्व कल्याण है।
संघ की आलोचना और मकसद...
मोहन भागवत ने कहा कि किसी भी स्वयंसेवी संगठन का इतना कड़ा और कटु विरोध नहीं हुआ, जितना संघ का हुआ है. 1925 में संघ की स्थापना करते वक्त, डॉ. हेडगेवार ने 'संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन' बनाने की बात कही थी।
आरएसएस चीफ ने कहा, "हिंदू राष्ट्र का मिशन क्या है? हमारा हिंदुस्तान, इसका मकसद विश्व कल्याण है। विकास के क्रम में दुनिया ने अपने अंदर खोजना बंद कर दिया। अगर हम अपने अंदर खोजें, तो हमें शाश्वत सुख का स्रोत मिलेगा, जो कभी खत्म नहीं होगा. इसे पाना ही मानव जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है और इसी से सभी सुखी होंगे। सभी एक-दूसरे के साथ सद्भाव से रह सकेंगे, विश्व के संघर्ष समाप्त हो जाएंगे. विश्व में शांति और सुख होगा। उन्होंने आगे कहा, "जिसे हिंदू समाज कहते हैं, उसे देश के प्रति जिम्मेदार रहना होगा। दूसरे धर्म की बुराई करना धर्म नहीं है. उन्होंने कहा कि संघ जैसा विरोध किसी का नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि संघ की सत्य और सही जानकारी देना ही इस व्याख्यान माला उद्देश्य है. भागवत ने कहा कि संघ में कोई इंसेंटिव नहीं है.
उन्होंने कहा कि संघ में लोगों को कुछ नहीं मिलता बल्कि जो है वो भी चला जाता है. स्वयंसेवक अपना काम इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम में आनंद आता है. उन्हें इस बात से प्रेरणा मिलती है कि उनका काम विश्व कल्याण के लिए समर्पित है. अपने संबोधन के दौरान भागवत ने कहा कि उन्होंने (दादाराव) एक पंक्ति में आरएसएस क्या है. उन्होंने इसकी व्याख्या की.
उन्होंने (दादाराव) कहा कि आरएसएस हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन का एक विकास है. संघ प्रमुख ने आगे कहा कि 1925 के विजयदशमी के बाद डॉक्टर साहब ने संघ के प्रारंभ करने पर कहा कि ये संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन है. जिसको हिंदू नाम लगाना है, उसक देश के प्रति जिम्मेदार रहना होगा. भागवत ने कहा किशुद्ध सात्त्विक प्रेम ही संघ है, यही कार्य का आधार है.
उन्होंने कहा कि हिंदुत्व का सार: सत्य और प्रेम है. दिखते अलग-अलग हैं, लेकिन सब एक हैं. दुनिया अपनेपन से चलती है, सौदे से नहीं. मानव संबंध अनुबंध और लेन-देन पर नहीं, बल्कि अपनेपन पर आधारित होने चाहिए. सरसंघचालक ने कहा कि ध्येय के प्रति समर्पित होना संघ कार्य का आधार है. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति आज दिखाई देती है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाईं। समाधान केवल धर्म-संतुलन और भारतीय दृष्टि से संभव है। संघ के एक पुराने प्रचारक दादा राव परमारथ ने आरएसएस को 'हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन का विकास' बताया था।मोहन भागवत ने कहा, "संघ 100 साल चलने के बाद भी नए क्षितिज का वर्णन क्यों कर रहा है? एक वाक्य में उत्तर देना है, तो प्रार्थना के अंत में हम स्वयंसेवक लोग रोज कहते हैं- भारत माता की जय।मोहन भागवत ने स्वदेशी पहल की अपील भी की और सरकार को सलाह दी कि किसी के उकसावें में ना आए। उन्होंने कहा कि दबाव में व्यापार नहीं किया जाता।
समाज हमारे विचारों पर विश्वास करे या न करे, लेकिन विश्वसनीयता पर विश्वास करते हैं- मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “मीडिया में नकारात्मक खबरों की भरमार है लेकिन भारत में समाज आज की तुलना में 40 गुना बेहतर है। अगर कोई सिर्फ़ मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर भारत का मूल्यांकन करेगा, तो वह गलत होगा। व्यक्ति का अहंकार शत्रुता को जन्म देता है। राष्ट्रों का अहंकार राष्ट्रों के बीच शत्रुता को जन्म देता है। उस अहंकार से परे हिंदुस्तान है। व्यक्तिगत जीवन से लेकर पर्यावरण तक का मार्ग दिखाने के लिए भारतीय समाज को अपना उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। आज आरएसएस इतनी अनुकूल स्थिति में है। ऐसा क्यों है? पूरा समाज इस पर विश्वास करता है, हमारे विचारों पर विश्वास करे या न करे, लेकिन वे हमारी विश्वसनीयता पर विश्वास करते हैं। इसीलिए जब हम कुछ कहते हैं, तो समाज हमारी बात सुनता है और इसीलिए हम 100 वर्ष पूरे कर रहे हैं।”
आरएसएस का अगला कदम
मोहन भागवत ने कहा कि हमारा अगला कदम क्या है? हमारा अगला कदम यह सुनिश्चित करना होगा कि आरएसएस में हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह पूरे समाज में लागू हो। उन्होंने कहा कि यह चरित्र निर्माण का कार्य है, देशभक्ति जगाने का कार्य है।
धर्म में धर्मांतरण नहीं होता- संघ प्रमुख
धर्म को लेकर मोहन भागवत ने कहा, “धर्म में धर्मांतरण नहीं होता। धर्म एक सच्चा तत्व है, जिसके आधार पर सब कुछ चलता है। हमें धर्म के साथ आगे बढ़ना है, उपदेश या धर्मांतरण से नहीं, बल्कि उदाहरण और व्यवहार से। इसलिए भारतवर्ष का जीवन-लक्ष्य ऐसा जीवन जीना है, ऐसा आदर्श गढ़ना है जिसका विश्व अनुकरण कर सके। धर्म पूजा, भोजन आदि से परे है। धर्म के ऊपर जो धर्म है, वह विविधता को स्वीकार करता है। वह धर्म संतुलन सिखाता है।”
दुनिया में कट्टरता बढ़ी- आरएसएस चीफ
मोहन भागवत ने कहा, “प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ का गठन हुआ। दूसरा विश्व युद्ध फिर भी हुआ। संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ। तीसरा विश्व युद्ध उस तरह नहीं होगा। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, यह हम आज नहीं कह सकते। दुनिया में अशांति है, संघर्ष हैं। कट्टरता बढ़ी है। जो लोग चाहते हैं कि जीवन में कोई शालीनता, कोई संस्कार न हो, वे इस कट्टरता का प्रचार करते हैं। जो भी हमारे विचारों के खिलाफ बोलेगा, हम उसे रद्द कर देंगे। नए शब्द जो आए हैं वोकिज्म आदि। यह बहुत बड़ा संकट है। यह सभी देशों पर है, अगली पीढ़ी पर है। सभी देशों के संरक्षक चिंतित हैं। बुजुर्ग चिंतित हैं। क्यों? क्योंकि कोई संबंध नहीं है।” ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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