- अलग-अलग धर्म, संप्रदाय या पूजा-पद्धति मानने वाले भारतीयों का डीएनए हजारों वर्षों से एक, सभी का डीएनए एक
- मुसलमान, ईसाई या हिंदू सभी अपने-अपने धर्म में रहकर भी एक ही राष्ट्रीयता के हिस्सा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने देश में एकजुटता का संदेश दिया। उन्होंने एकता के लिए एकरूपता की जरूरत को नकारते हुए मंगलवार को कहा कि विविधता में भी एकता है और विविधता एकता का ही परिणाम है।अपने वक्तव्य में उन्होंने भारत के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौती विभिन्न समुदायों में बंटे समाज को एक सूत्र में पिरोने पर समाधान प्रस्तुत किया।
'सभी भारतीयों का DNA एक': मोहन भागवत जी ने कहा कि अलग-अलग धर्म, संप्रदाय या पूजा-पद्धति मानने वाले भारतीयों का डीएनए हजारों वर्षों से एक ही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरएसएस हिंदू राष्ट्र की बात करता है, लेकिन इसका अर्थ केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोग शामिल हैं। कुछ लोग स्वयं को हिंदवी, कुछ भारतीय कह सकते हैं, परंतु उनकी राष्ट्रीय पहचान एक ही है। मतांतरण पर स्पष्ट संदेश : देशभर में अवैध धर्मांतरण को लेकर उठ रही चिंताओं पर भी संघ प्रमुख जी ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि मतांतरण की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारतीय समाज का साझा लक्ष्य हमेशा से एक रहा है। मुसलमान, ईसाई या हिंदू सभी अपने-अपने धर्म में रहकर भी एक ही राष्ट्रीयता का हिस्सा हैं। इसी आधार पर उन्होंने कहा कि धर्मांतरण के बजाय आपसी समझ और स्वीकृति ही रास्ता है। समाज ने दी संघ को ताकत: भागवत जी ने कहा कि RSS की सफलता का श्रेय केवल संगठन को नहीं, बल्कि पूरे समाज की शक्ति को जाता है। शाखाओं और स्वयंसेवकों ने संघ को निरंतर आगे बढ़ाया और इसे आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने बताया कि आर्थिक और संगठनात्मक दृष्टि से संघ अपने स्वयंसेवकों पर ही आधारित है।
भारत को विश्व गुरु बनाने की पुकार: संघ प्रमुख जी ने जोर दिया कि अब समय आ गया है जब भारत को विश्व मंच पर अपनी वास्तविक भूमिका निभानी होगी। आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी भारत वह स्थान हासिल नहीं कर सका जो उसे मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाने का संकल्प केवल संघ या सरकार का काम नहीं है, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण है।राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में संगठन के सरसंघचालक मोहन भागवत शामिल हुए. मोहन भागवत ने कहा, संघ को लेकर प्रचलित चर्चाओं में अक्सर तथ्यात्मक जानकारी कम और धारणाएं अधिक होती हैं।2018 में इसी स्थान पर ऐसा ही कार्यक्रम हुआ था. संघ के बारे में बहुत चर्चा होती है, लेकिन मैंने देखा कि इन चर्चाओं में जानकारी अधूरी या गलत होती है। इसलिए संघ के बारे में सटीक और सच्ची जानकारी देना जरूरी है। भागवत ने कहा कि संघ की चर्चा परसेप्शन के आधार पर नहीं फैक्ट के आधार पर हो. सही जानकारी मिलने के बाद श्रोता को तय करना है कि क्या निष्कर्ष निकालना है। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि संघ के बारे में फैक्ट के आधार पर चर्चा हो। इसके बाद लोग इसके बारे में क्या फैसला करते हैं, वो उसका अपना अधिकार है. संघ के बारे में किसी को कन्वेंस नहीं करना है बस बताना है. आइए संवाद के दौरान भागवत ने क्या क्या कहा?: शताब्दी समारोह के कारण फिर ये विचार आया है ताकि कार्यक्रम के बाद लोग इसको लेकर सवाल पूछ सके. वही सारी बातें फिर से बतानी है. उन्होंने कहा कि संघ एक विषय है, इसके बारे में हर बार बताने का कुछ नहीं रहता है। इस कार्यक्रम का आयोजन इसलिए किया गया है कि आगे हम संघ को कैसा देखते हैं, इस पर चर्चा होगी। इसलिए इसका नाम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा, नए क्षितिज’ रखा गया है।
भागवत ने कहा कि 100 साल की संघ की यात्रा हो रही है। क्यों हो रही है? संघ चलाना है ऐसा नहीं है, इसका एक उद्देश्य है।संघ क्यों शुरू हुआ, इतनी बाधाएं आईं। स्वयंसेवक ने रास्ता निकालकर इसे चलते क्यों रखा? 100 साल बाद भी क्षितिज नाम क्यों रखा गया? इन सभी बातों का एक ही जवाब है वो है- भारत माता की जय। उन्होंने आगे कहा कि यह अपना देश है, उस देश की जय जयकार होनी चाहिए, उस देश को विश्व में स्थान मिलना चाहिए. अग्रणी स्थान एक ही देश हासिल करेगा. दुनिया में कई देश हैं, उसके पीछे एक सत्य है. विश्व बहुत पास आ गया है। अभी ग्लोबल बात होती है। विश्व पास आ गया है तो ग्लोबल बात करना ही पड़ता है। संघ प्रमुख ने कहा कि मानवता एक है. सारे विश्व का जीवन एक है. फिर भी एक जैसा नहीं है. उसके भी अलग-अलग रंग हैं. अलग-अलग रूप हैं. उसके कारण विश्व की सुंदरता बढ़ी है. हर देश का अपना-अपना योगदान है. विश्व के इतिहास को अगर देखते हैं तो स्वामी विवेकानंद का वो कथन याद आता है कि प्रत्येक राष्ट्र का विश्व में कुछ योगदान होता है, जो समय-समय पर उसे करना होता है। भागवत ने कहा कि वैसे भारता का भी अपना एक योगदान है. विश्व के किसी देश को बड़ा होना है. विश्व के किसी देश को बड़ा होना है. अपने बड़प्पन के लिए नहीं होना है, उसके बड़े होने से विश्व के जीवन के जीवन में एक जो आवश्यक नई गति चाहिए, वो पैदा होती है, उसका उस प्रकार का योगदान होता इसलिए उसे बड़ा होना है। उन्होंने कहा कि संघ के चलने का प्रयोजन भारत है. संघ की सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है क्योंकि भारत का एक योगदान दुनिया में है और वो योगदान उसको देना है. इसके बारे में कल हम अधिक चर्चा करेंगे। आरएसएस चीफ ने कहा कि इतिहास में हम जानते हैं कि हम वैभव के शिखर पर थे, स्वतंत्र थे, फिर आक्रमण हुए फिर परतंत्र हुए. दो बार बड़ी परतंत्रता झेलकर हम स्वतंत्र हुए. उस परतंत्रता से मुक्त होना पहला काम था. अपने देश को बड़ा करना है तो बड़ा होना है. टुकड़ों में बंधा आदमी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकता है इसलिए अपने लिए कुछ कर भी नहीं सकता है। मोहन भागवत ने कहा कि विचार, संस्कार और आचार ठीक रहे. इतनी हम स्वयंसेवक की चिंता करते हैं. हमको किसी पर दबान नहीं बनाना है. हम पूरे भारत में सबको संगठित करने के लिए हैं. 30-40 साल पहले आपमें से कुछ लोग संघ के धुर विरोधी रहे होंगे. शायद उनमें से कुछ लोग आज संघ के समर्थक बन गए हैं. आप धुर विरोधी थे तब भी अपने थे और आज हमारे हैं तब भी अपने ही हैं।
उन्होंने कहा कि 142 करोड़ का देश है। कई मत हो सकते हैं. मत अलग होना अपराध नहीं है. ये प्रकृति का दिया हुआ गुण है. अलग-अलग विचार से अगर कोई सहमित बनती है तो उसमें से प्रगति होती है. अंग्रेजी में एक वाक्य है- Coming together, Staying together and Working together. Coming together मतलब बिगनिंग, Staying together मतलब प्रोग्रेस, Working together मतलब सक्सेस. तो ये जो बात है इसको संगठन कहते हैं और पूरे समाज का ही हमको संगठन करना है। भागवत ने कहा कि संघ के मन में ये बात है कि इस देश में ऐसा लिखा गया कि संघ के कारण देश बच गया या देश का उद्धार हो गया. तो ये हमारे लिए ठीक नहीं है. क्योंकि पहले से रावण से त्रस्त दुनिया. राम नहीं होते तो क्या होता, शिवाजी नहीं होते तो क्या होता. कब तक आएंगे राम, कब तक आएंगे शिवाजी. हमको ठेका देने की आदत हो गई है. ये ठीक नहीं है. देश का जिम्मा हम सबका मिलकर है. जैसे हम हैं, वैसे हमारे प्रतिनिधि होंगे, नेता होंगे। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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