- कांग्रेस ने एक सुनियोजित साजिश के तहत गढ़ा था भगवा आतंकवाद का स्क्रिप्ट
- तत्कालीन ATS अधिकारी महबूब मुजावर ने किया खुलासा
- भागवत को गिरफ्तार करने के ऑर्डर का मकसद 'भगवा आतंकवाद' को स्थापित करना था
मालेगांव ब्लास्ट केस का सच हर कोई जानना चाहता है। इस केस पर तत्कालीन ATS अधिकारी महबूब मुजावर ने आज विस्फोटक खुलासे किए। उन्होंने बताया कि इस केस में RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने दिया था।मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसला आने के बाद इस पर रिएक्शन देते पूर्व इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने बड़ा खुलासा किया है। मुजावर ने बताया है कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था। मुजावर के मुताबिक, भागवत को गिरफ्तार करने के ऑर्डर का मकसद 'भगवा आतंकवाद' को स्थापित करना था।
फर्जी अधिकारी की फर्जी जांच उजागर- पूर्व अधिकारी
पूर्व इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने सोलापुर में कहा है कि मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट के फैसले ने एटीएस के 'फर्जीवाड़े को नकार दिया है। आपको बता दें कि शुरू में इस मामले की जांच एटीएस ने की थी। हालांकि, बाद में NIA ने केस को अपने हाथ में ले लिया था। मुजावर ने आगे कहा, ''इस फैसले ने एक फर्जी अधिकारी द्वारा की गई फर्जी जांच को उजागर कर दिया है।''
मुजावर को क्या आदेश मिला था?
महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए ब्लास्ट में 6 लोगों की मौत हुई थी और करीब 101 लोग घायल हुए थे। महबूब मुजावर ने बताया है कि वह इस ब्लास्ट की जांच करने वाली ATS टीम का हिस्सा थे। मुजावर ने बताया कि उन्हें मोहन भागवत को 'पकड़ने के लिए कहा गया था। मुजावर ने कहा- "मैं यह नहीं कह सकता कि एटीएस ने उस समय क्या जांच की और क्यों लेकिन मुझे राम कलसांगरा, संदीप डांगे, दिलीप पाटीदार और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसी हस्तियों के बारे में कुछ गोपनीय आदेश दिए गए थे। ये सभी आदेश ऐसे नहीं थे कि उनका पालन किया जा सके।"मुजावर ने यह भी दावा किया कि जिन संदिग्धों संदीप डांगे और रामजी कलसंगरा की हत्या हो चुकी थी, उन्हें जानबूझकर चार्जशीट में जिंदा दिखाया गया. मुझे आदेश दिया गया कि उनकी लोकेशन ट्रेस करो, जबकि वो मर चुके थे.
मेहबूब मुजावर ने यह भी बताया कि जब उन्होंने इन बातों का विरोध किया और गलत काम करने से इनकार किया, तो उन पर झूठे केस थोपे गए. मुझ पर झूठे मुकदमे डाले गए, लेकिन मैं निर्दोष साबित हुआ. मुजावर ने पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को भी निशाने पर लेते हुए कहा कि उन्हें अब सामने आकर बताना चाहिए कि “क्या हिंदू आतंकवाद जैसी कोई थ्योरी वास्तव में थी?”
निर्दोषों की रिहाई पर क्या कहा?:
बॉम्ब ब्लास्ट केस के सभी आरोपी हाल ही में बरी हो चुके हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मुजावर ने कहा, मुझे खुशी है कि सभी निर्दोष बरी हुए और इसमें मेरा भी छोटा सा योगदान है।
रिटायर इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने इस केस में फैसला आने के बाद काफी अहम खुलासे किए हैं। उन्होंने पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित सभी 7 आरोपियों को बरी करने के फैसले पर रिएक्शन दिया।उन्होंने कहा अदालत के फैसले ने एटीएस के किए गए “फर्जी कामों” को रद्द कर दिया है. दरअसल, मालेगांव बम धमाका केस की जांच पहले एटीएस के हाथों में थी, इसी के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को इस केस की जांच करने की कमान सौंप दी गई थी।
मेरे खिलाफ झूठा मामला दर्ज हुआ- मुजावर
पूर्व इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने बताया कि उन्होंने आदेश का पालन नहीं किया और मोहन भागवत को गिरफ्तार नहीं किया क्योंकि उन्हें हकीकत पता थी। मुजावर ने बताया- ''मोहन भागवत जैसी बड़ी हस्ती को पकड़ना मेरी क्षमता से परे था। चूंकि मैंने आदेशों का पालन नहीं किया, इसलिए मेरे खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया और इसने मेरे 40 साल के करियर को बर्बाद कर दिया।'' उन्होंने आगे कहा कि ''कोई भगवा आतंकवाद नहीं था। सब कुछ फर्जी था।NIA ने 2011 में इस केस की जांच ATS से अपने हाथ में ली थी. अपनी जांच के बाद NIA ने एक चार्जशीट दायर की, जिसमें उसने भोपाल की पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को क्लीन चिट दे दी थी. इसी चार्जशीट में दावा किया गया था कि एटीएस अधिकारी शेखर बागड़े ने मालेगांव ब्लास्ट में एक आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी के घर में जबरदस्ती घुसकर RDX के अंश रखे थे. चतुर्वेदी एक सैन्य मुखबिर थे और नासिक के देवलाली कैंट इलाके में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित (रिटायर) के पास रहते थे. पुरोहित को भी इस मामले में RDX की आपूर्ति और बम बनाने के अलावा साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने माना कि एनआईए ने अपनी जांच में सेना के एक मेजर और एक सूबेदार की गवाही का हवाला दिया था. इन दोनों ने बताया कि चतुर्वेदी जब घर पर नहीं थे, तो बागड़े चोरी-छिपे उनके घर में घुसे और वहां आरडीएक्स के अंश छिपा दिए. मेजर और सूबेदार ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी को यह भी बताया कि बागड़े ने उनसे कहा था कि वे इस बारे में किसी से शिकायत न करें, लेकिन दो दिन बाद एटीएस की टीम ने उस घर पर छापा मारा और रुई के फाहे से मालेगांव ब्लास्ट में इस्तेमाल RDX जैसा पदार्थ बरामद किया.
कोर्ट ने कहा कि बागड़े का यह कृत्य संदेह पैदा करता है. इसके अलावा एटीएस द्वारा इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. ऐसे में अदालत को लगा कि पूरा मामला 'फैक्ट प्लांटिंग' यानी जानबूझकर सबूत गढ़ने की संभावना की ओर इशारा करता है.
फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट पर भी सवाल
अदालत ने आदेश दिया कि शेखर बागड़े की संदिग्ध हरकत के साथ-साथ एक अन्य गंभीर मुद्दे की भी जांच की जाए.कोर्ट ने पाया कि कुछ मेडिकल प्रमाणपत्र, जो कथित पीड़ितों की चोटों को दिखाते थे, वे एटीएस अधिकारियों के कहने पर गैर-मान्यता प्राप्त डॉक्टरों द्वारा जारी किए गए थे. ऐसे प्रमाणपत्रों को अदालत ने स्वीकार करने से मना कर दिया. इसके अलावा अदालत को यह भी पता चला कि कुछ मेडिकल प्रमाणपत्रों में जानबूझकर हेराफेरी की गई थी. कोर्ट ने फर्जी मेडिकल प्रमाणपत्रों की जांच के भी निर्देश दिए.
ठोस सबूत नहीं मिले: बता दें कि मालेगांव ब्लास्ट का फैसला 1000 पन्नों से भी ज़्यादा लंबा है और इसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र की प्रमुख जांच एजेंसी एटीएस और केंद्रीय एजेंसी एनआईए को अपना मामला साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं मिल सके।कोर्ट ने क्या कहा?: न्यायाधीश ने कहा कि यह दर्ज करना ज़रूरी है कि मैं समाज को हुई पीड़ा, हताशा और आघात की गंभीरता से पूरी तरह वाकिफ़ हूं. ख़ास तौर पर पीड़ितों के परिवारों को इस बात का एहसास है कि इस तरह के जघन्य अपराध के लिए कोई सज़ा नहीं मिली. हालांकि क़ानून अदालत को सिर्फ़ नैतिक विश्वास या संदेह के आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराने की इजाज़त नहीं देता. उन्होंने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता.कोर्ट को जन भावना के आधार पर नहीं, बल्कि सबूत के आधार पर काम करना होता है। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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