- कोई मनचाहे वर के लिए तो कोई अपने पति के लंबी उम्र के लिए रखती है अखंड निर्जला व्रत
आज हरितालिका तीज का व्रत किया जा रहा है। हरितालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत खासकर सुहागिन स्त्रियों और अविवाहित कन्याएं करती हैं। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने कठोर तप करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया था।इस दिन मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है, लेकिन धार्मिक परंपरा में कुछ और देवताओं और शक्तियों की आराधना भी अत्यंत शुभ मानी जाती है।
भगवान गणेश - गणपति विघ्नहर्ता और मंगल कार्यों के प्रारंभकर्ता हैं. व्रत से पहले उनकी पूजा करने से विवाह योग मजबूत होता है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.
कुमारी गौरी (गौरी माता) - माता पार्वती के स्वरूप कुमारी गौरी की आराधना करने से कन्याओं की मनोकामना पूरी होती है. यह व्रत विशेष रूप से योग्य वर की प्राप्ति के लिए रखा जाता है।भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करके अखंड सौभाग्य और सुख समृद्धि की कामना की जाएगी। इस वर्ष हरितालिका तीज का व्रत 26 अगस्त 2025 को रखा जाएगा। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 25 अगस्त को दोपहर 12:34 बजे से होगी और इसका समापन 26 अगस्त को दोपहर 1:54 बजे होगा। उदया तिथि (सूर्योदय के समय जो तिथि हो) को मान्यता दी जाती है, इसलिए व्रत 26 अगस्त को रखा जाएगा।
निर्जला रखा जाता है व्रत: हरतालिका तीज व्रत करवा चौथ की तरह ही रखा जाता है। इस व्रत में पानी नहीं पिया जाता। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। अगर व्रत के दौरान सूतक लग जाए तो व्रत रख सकते हैं और पूजा रात में कर सकते हैं। हरतालिका तीज पर रात में जगकर माता पार्वती व भगवान भोलेनाथ की पूजा करनी चाहिए।
हरतालिका तीज का महत्व: सभी चार तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्व है। हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बना है- हरत और आलिका. हरत का मतलब है 'अपहरण' और आलिका यानी 'सहेली'. प्राचीन मान्यता के अनुसार मां पार्वती की सहेली उन्हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं ताकि उनके पिता भगवान विष्णु से उनका विवाह न करा पाएं। सुहागिन महिलाओं की हरतालिका तीज में गहरी आस्था है। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्य का वरदान देते हैं। वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
हरतालिका तीज का व्रत कैसे करें?: हरतालिका तीज का व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है। यह निर्जला व्रत है यानी कि व्रत के पारण से पहले पानी की एक बूंद भी ग्रहण करना वर्जित है। व्रत के दिन सुबह-सवेरे स्नान करने के बाद "उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये" मंत्र का उच्चारण करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है।
हरतालिका तीज की पूजन सामग्री
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हरतालिका व्रत से एक दिन पहले ही पूजा की सामग्री जुटा लें: गीली मिट्टी, बेल पत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल और फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनेऊ, वस्त्र, मौसमी फल-फूल, नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध और शहद. मां पार्वती की सुहाग सामग्री: मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, सुहाग पिटारी। हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल यानी कि दिन-रात के मिलने का समय. हरतालिका तीज के दिन इस प्रकार शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। संध्या के समय फिर से स्नान कर साफ और सुंदर वस्त्र धारण करें। इस दिन सुहागिन महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं। इसके बाद गीली मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा बनाएं। दूध, दही, चीनी, शहद और घी से पंचामृत बनाएं। सुहाग की सामग्री को अच्छी तरह सजाकर मां पार्वती को अर्पित करें। शिवजी को वस्त्र अर्पित करें। अब हरतालिका व्रत की कथा सुनें। इसके बाद सबसे पहले गणेश जी और फिर शिवजी व माता पार्वती की आरती उतारें। अब भगवान की परिक्रमा करें। रात को जागरण करें.। सुबह स्नान करने के बाद माता पार्वती का पूजन करें और उन्हें सिंदूर चढ़ाएं। फिर ककड़ी और हल्वे का भोग लगाएं. भोग लगाने के बाद ककड़ी खाकर व्रत का पारण करें। सभी पूजन सामग्री को एकत्र कर किसी सुहागिन महिला को दान दें।
व्रत कथा: शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था। मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था। बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। 12 सालों तक निराहार रह करके तप किया। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं.। नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी। फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा। माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं। यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी की। उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे। फिर वह पार्वती को ढूंढते हुए उस स्थान तक जा पंहुचे। इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया। तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।सोमवार को शहर में तीज की तैयारियों में महिलाएं जुटी रहीं। बाजार में भगवान शिव, पार्वती व भगवान गणेश की प्रतिमाओं के साथ ही महिलाओं ने सुहाग की सामग्री भी खरीदी। हरतालिका तीज की पूजा में मिट्टी या रजत-सुवर्णादि धातु से निर्मित शिव पार्वती की मूर्ति का पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा करने का विधान है।भगवान शिव के साथ भगवान गणेश की भी पूजा होती है। भगवान को नैवेद्य के रूप में सूखा मेवा, ऋतुफल और मिष्ठान्न अर्पित किए जाते हैं। इसके साथ ही हरतालिका तीज से संबंधित कथा का श्रवण करना चाहिए।शहर के मंदिरों में भी हरतालिका पूजन के लिए तैयारियां देर शाम तक चलती रहीं। काली मंदिर में भी महिलाएं हरतालिका तीज के पूजन के लिए एकत्र होती हैं। व्रत का पारण चतुर्थी के दिन 27 अगस्त को होगा।चंद्रमा (चंद्रदेव) - चंद्रमा का दर्शन और पूजन सौम्यता, शीतलता और वैवाहिक जीवन में सामंजस्य लाने का प्रतीक है. रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देने से विवाह योग्य योग प्रबल होते हैं.
नंदी (भगवान शिव का वाहन) - नंदी शिव के परम भक्त और संदेशवाहक माने जाते हैं. उनकी पूजा से शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और विवाह में आने वाली कठिनाइयां कम होती हैं.
सप्तऋषि - कुछ क्षेत्रों में सप्तऋषि की पूजा भी की जाती है, जिससे ज्ञान, विवेक और जीवन में सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है.
कुंवारी कन्याएं शिव-पार्वती के पूजन के साथ गणेश, कुमारी गौरी, चंद्रमा और नंदी की पूजा करें, तो उनके जीवन में सौभाग्य, सुख और योग्य वर प्राप्त होने के योग बनते हैं.
हरतालिका तीज का महत्व: हरतालिका तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. यह व्रत हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, वहीं कुंवारी कन्याएं इसे मनचाहे वर के लिए करती हैं। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/