एक तरफ मतदाता सूची को लेकर जहां भारी हंगाम देशभर में ही रहा है। इसमें बंगाल की राजनीति कुछ अलग ही है। बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी ने अपने राज्य में फर्जी वोटर लिस्ट बनाने वाले कुछ अफसरों पर एक्शन नहीं लिया। अब चुनाव आयोग ने बंगाल के चीफ सेक्रेटरी को दिल्ली स्थिति मुख्यालय में तलब किया है.पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव मनोज पंत को 13 अगस्त को शाम 5 बजे तक दिल्ली स्थित आयोग मुख्यालय में पहुंचना जरूरी है।
यह सम्मन ऐसे समय में आया है जब एक दिन पहले मुख्य सचिव ने आयोग को लिखे पत्र में कहा था कि सरकार ने पांच में से दो कर्मियों को सक्रिय ड्यूटी से हटा दिया है, लेकिन निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार अधिकारियों को निलंबित या उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई। जाहिर है कि कोई सामान्य व्यक्ति भी यह समझ सकता है कि सरकार राज्य में फर्जी वोटर लिस्ट बनाने वाले कर्मचारियों को बचा रही है . मतलब साफ है कि राज्य सरकार प्रदेश में बड़े पैमाने पर बोगस वोटर्स तैयार कर रही है. हिंदू में प्रकाशित एक खबर की माने तो 5 अगस्त को, चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल सरकार को चार अधिकारियों - दो निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) और दो सहायक निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (एईआरओ) - और एक अस्थायी डेटा एंट्री ऑपरेटर को निलंबित करने का निर्देश दिया. इन पर दक्षिण 24 परगना और पूर्व मेदिनीपुर ज़िलों के क्रमशः बरुईपुर पूर्व और मोयना विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता सूची तैयार करते समय कथित अनियमितताएं करने का आरोप है. इन पांचों अधिकारियों पर बरुईपुर पूर्व और मोयना विधानसभा क्षेत्रों में जाली दस्तावेज़ों का उपयोग करके 127 मतदाताओं का धोखाधड़ी से पंजीकरण करने का आरोप है. जाहिर है कि राज्य सरकार बड़े पैमाने पर बोगस वोटर्स का खेल कर रही है. शायद यही कारण है कि बिहार में एसआईआर के विरोध करने में सबसे ज्यादा मुखर टीएमसी ही रही.
ममता बनर्जी फर्जी वोट बनाने वाले कर्मचारियों के खुलकर सामने आईं:
चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल सरकार को 5 सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर एक्शन लेने का आदेश दिया था. मुख्य सचिव ने 11 अगस्त को आयोग को पत्र लिखकर बताया था कि जिन पांच अधिकारियों के ख़िलाफ़ आयोग ने कथित अनियमितताओं के लिए कार्रवाई का निर्देश दिया था, उनमें से दो को चुनाव पुनरीक्षण और चुनाव संबंधी कर्तव्यों से हटा दिया गया है. हालांकि, राज्य सरकार ने चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार, उनमें से किसी को भी निलंबित या उनके ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज नहीं की. जो सीधे सीधे चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन था.
6 अगस्त को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अधिकारियों को दंडित करने के चुनाव आयोग के निर्देश पर सवाल उठाया था. और कहा था कि वह चुनाव आयोग के निर्देश पर किसी भी राज्य सरकार के अधिकारी को दंडित नहीं होने देंगी. बनर्जी ने तर्क दिया था कि चुनाव की घोषणा के बाद ही चुनाव आयोग राज्य की प्रशासनिक मशीनरी को अपने हाथ में लेता है. चुनाव आयोग द्वारा मुख्य सचिव को तलब किए जाने के बाद, मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर अधिकारियों से बिना किसी डर के काम करने का आग्रह किया था.
दिल्ली में जिन कार्यों का विरोध , वही बंगाल में खुद कर रही ममता सरकार
11 अगस्त 2025 को, टीएमसी और इंडिया गठबंधन के सांसदों ने दिल्ली में संसद भवन से निर्वाचन आयोग के कार्यालय तक मार्च निकालने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक लिया और हिरासत में लिया. दरअसल कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा में एक लाख फर्जी वोटर्स बनाने का आरोप लगाया था. राहुल गांधी का कहना है कि इस तरह चुनाव आयोग वोट चोरी कर रहा है ताकि बीजेपी चुनाव जीत सके. हालांकि कर्नाटक सरकार में शामिल एक मंत्री केएन राजन्ना से खुद अपनी ही सरकार पर सवाल उठा दिए और राहुल गांधी के आरोपों की हवा निकाल दी. उन्हें सच बोलने की कीमत भी चुकानी पड़ी . पार्टी ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया.
राहुल गांधी अपने वोट चोरी के आरोपों से सरकार और चुनाव आयोग पर दबाव बनाने के लिए इंडिया गठबंधन के दलों के साथ दिल्ली में चुनाव आयोग के दफ्तर पर धरना और प्रदर्शन किया.जिसमे टीएमसी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.टीएमसी ने चार मांगें रखीं: पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार के खिलाफ FIR, डिजिटल मतदाता सूची सार्वजनिक करना, SIR रद्द करना आदि की मांग रखी.
विपक्ष का कहना है कि SIR से गरीब और अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम हटाए जा सकते हैं, जिससे बीजेपी को फायदा होगा.
दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल सरकार आयोग के आदेशों का पालन करने में आनाकानी कर रही है. जबकि आयोग वही काम कर रहा जो दिल्ली में विपक्ष के नेताओं ने उठाया था. मतलब कि बोगस वोट किसी तरह न बन पाएं या वोटों की चोरी न हो सके. यानि कि जरूरी लोगों के नाम काटे न जा सके. चुनाव आयोग को बोगस वोट बनाने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर एक्शन लेने के लिए मजबूरी में मुख्य सचिव मनोज पंत को समन जारी करना पड़ा. क्योंकि राज्य सरकार ने फर्जी मतदाताओं के नाम जोड़ने और असली मतदाताओं के नाम हटाने के मामले में चार अधिकारियों और एक डाटा एंट्री ऑपरेटर को निलंबित करने के आदेश का पालन नहीं किया. ममता बनर्जी ने SIR को बीजेपी की साजिश बताया और कहा कि वह बंगाल में इसे लागू नहीं होने देंगी.
बिहार में एसआईआर के विरोध सबसे ज्यादा मुखर टीएमसी ही रही
बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) को लेकर तृणमूल कांग्रेस सबसे मुखर और आक्रामक विरोध रहा है. अब यह बात समझ में आ रही है ऐसा क्यों है. दरअसल पश्चिम बंगाल का चुनाव आयोग के टार्गेट में दूसरा नंबर है. बंगाल में बड़े पैमाने पर बोगस वोट तैयार किए गए हैं. ममता बनर्जी ने शायद इसी के चलते SIR की तुलना राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)से की थी. देश में पता नहीं क्यों इस तरह का माहौल बनाया गया है कि एनआरसी लागू हो जाएगा तो बहुत से लोगों की नागरिकता चली जाएगी.दरअसल सभी जानते हैं कि एनआरसी बांग्लादेश और म्यांमार से आए घुसपैठियों को बाहर करने के लिए जरूरी है. पर बाहर से आए घुसपैठिये जिन पार्टी को वोट देते हैं वो कभी नहीं चाहते हैं कि ये लोग देश से बाहर किए जा सकें. इसलिए देश की कुछ पार्टियां समय समय पर इस डर को फैलाती रहती हैं. उसी में एक टीएमसी है.
ममता बनर्जी ने SIR को खतरनाक और लोकतंत्र के लिए चिंताजनक बताया, इसे बीजेपी द्वारा बंगाल और बिहार में मतदाता सूची से अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को हटाने की साजिश करार दिया. उन्होंने 27 जून 2025 को दीघा में कहा कि SIR के तहत जन्म प्रमाण पत्र और माता-पिता के दस्तावेज मांगना NRC की प्रक्रिया जैसा है, जो गरीबों और ग्रामीणों के लिए मुश्किल है.
टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने 28 जून 2025 को दिल्ली में SIR को नाज़ी शासन के पूर्वज पास से तुलना की, इसे मतदाता अधिकारों का हनन बताया था. सुष्मिता देव ने 26 जुलाई 2025 को SIR को बैकडोर से NRC लाने का प्रयास करार दिया और इसे नागरिकता अधिनियम की धारा 3 से जोड़ा.
30 जुलाई 2025 को टीएमसी सांसदों, जिसमें डेरेक ओ'ब्रायन, साकेत गोखले, और महुआ मोइत्रा शामिल थे, ने संसद परिसर में "वोट चोरी बंद करो" के नारे लगाते हुए प्रदर्शन किया. 11 अगस्त 2025 को टीएमसी और इंडिया गठबंधन के सांसदों ने दिल्ली में निर्वाचन आयोग के दफ्तर तक मार्च निकालने की कोशिश की.टीएमसी ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की, जिसमें महुआ मोइत्रा ने SIR को असंवैधानिक बताया. बंगाल में ममता और अभिषेक बनर्जी ने सड़क पर उतरने की चेतावनी दी, जबकि कोलकाता में मेयर फिरहाद हकीम ने मतदाता सत्यापन अभियान शुरू किया। ( बंगाल से अशोक झा की रिपोर्ट )
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