- निलंबन पर कारवाई का दबाव, मुख्यमंत्री मानने को तैयार नहीं
- आयोग ने एफआईआर दर्ज करने का दिया निर्देश, अब क्या करेंगे मुख्य सचिव
चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को चुनाव कानूनों के प्रावधानों के तहत चार अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को भी कहा। भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने बरुईपुर पूर्व और मोयना निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची में अनधिकृत प्रविष्टियों का खुलासा करने वाली मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) की रिपोर्ट के बाद पश्चिम बंगाल के चार चुनाव अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। मुख्य सचिव को लिखे अपने पत्र में चुनाव आयोग ने निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) और सहायक ईआरओ द्वारा की गई अनियमितताओं के सीईओ के निष्कर्षों का हवाला दिया है। ये अधिकारी - देबोत्तम दत्ता चौधरी (ईआरओ), तथागत मंडल (एईआरओ), बिप्लब सरकार (ईआरओ), और सुदीप्त दास (एईआरओ) मतदाता सूची तैयार करने, उसमें संशोधन और सुधार के लिए ज़िम्मेदार थे। चुनाव आयोग ने निर्देश दिया कि उनके खिलाफ "उचित अनुशासनात्मक कार्यवाही" शुरू की जाए और "आपराधिक कदाचार" के लिए एफआईआर दर्ज की जाए। आकस्मिक डेटा एंट्री ऑपरेटर सुरोजित हलदर के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की गई।
पश्चिम बंगाल चुनाव आयोग द्वारा मतदाता आवेदन पत्रों (फॉर्म 6) की नमूना जाँच के दौरान ये विसंगतियाँ सामने आईं। चुनाव आयोग ने पाया कि अधिकारियों ने उचित प्रक्रिया का उल्लंघन किया है, जिसके लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 32(1) के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। सीईओ के आदेशों के बाद, जिला चुनाव अधिकारी (डीईओ) को पिछले वर्ष संसाधित सभी मतदाता प्रपत्रों की जाँच के लिए एक वरिष्ठ अधिकारियों की टीम गठित करनी होगी और 14 अगस्त, 2025 तक एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव को सख्त अनुपालन सुनिश्चित करने और "शीघ्रतम" कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, चुनाव आयोग द्वारा राज्य की मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए दिए जा रहे प्रयास का विरोध कर रही हैं। झाड़ग्राम में आयोजित रैली से चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग "भाजपा का दास" बनकर काम कर रहा है और विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के नाम पर राज्य में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू करने की साजिश रची जा रही है। वही दूसरी ओर चुनाव आयोग ने मतदाता सूची संशोधन के दौरान दो पश्चिम बंगाल सामाजिक सेवा (कार्यकारी) अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। आयोग के इस फैसले को लेकर प्रशासनिक हलकों में कड़ा विरोध प्रदर्शन हो रहा है। अब पश्चिम बंगाल सामाजिक सेवा अधिकारी संघ ने इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाई है। मुख्य सचिव को लिखे पत्र में संगठन ने कहा है कि संबंधित दोनों अधिकारियों ने किसी दुर्भावना से काम नहीं किया। बल्कि, उन्होंने कठिन परिस्थितियों में ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन किया। संगठन ने उनके निलंबन पर गहरी चिंता व्यक्त की है। आयोग के आदेशानुसार, दोनों अधिकारियों को 5 अगस्त को निलंबित कर दिया गया था। संगठन का दावा है कि यह फैसला बेहद कठोर है और प्रशासन में निष्पक्षता से काम करने वाले अधिकारियों के मनोबल को ठेस पहुँचा रहा है। पत्र में कहा गया है, हम पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव के पक्षधर हैं। हालाँकि, किसी भी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले, उसके करियर रिकॉर्ड और वास्तविक स्थिति का आकलन किया जाना चाहिए। उनके अनुसार, यदि कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि है भी, तो वह जानबूझकर नहीं की गई थी। ऐसे संवेदनशील समय में इस तरह के कदम भविष्य में प्रशासनिक माहौल को बिगाड़ सकते हैं। संगठन ने मुख्य सचिव से चुनाव आयोग से बातचीत करके निलंबन आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है, "यह अपेक्षा है कि न्याय, करुणा और निष्पक्षता के आधार पर निर्णय लिया जाए। इस बीच, आयोग सूत्रों के अनुसार, दोनों आरोपी अधिकारियों पर मतदाता सूची में अनियमितताओं और जानबूझकर हेराफेरी के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह भी आरोप है कि उन्होंने सूचनाओं की पुष्टि और सुधार करते समय नियमों का उल्लंघन किया। इसीलिए आयोग ने न केवल उन्हें निलंबित करने का, बल्कि उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का भी निर्णय लिया है। बताया जा रहा है कि डब्ल्यूबीसीएस एसोसिएशन द्वारा भेजे गए पत्र की एक प्रति चुनाव आयोग को भी दी गई है। प्रशासनिक हलकों में अभी यह चर्चा है कि क्या आयोग अपने फैसले पर कायम रहेगा या स्पष्टीकरण पर विचार करने के बाद अपनी कार्रवाई पर पुनर्विचार करेगा। ( बंगाल से अशोक झा )
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