वर्ष 1993 की बात है। मैं अपने मित्रों के साथ गौमुख की ओर तीर्थयात्रा पर था—बर्फ से ढकी चोटियों की छांव में, जीवन की नश्वरता और प्रकृति की विराटता को एक साथ महसूस करता हुआ। तभी एक मोड़ पर बस रुकी, और ड्राइवर ने इशारे से नीचे की ओर दिखाते हुए कहा—“वो रहा हर्षिल गांव। वहीं हुई थी 'राम तेरी गंगा मेली' की शूटिंग।”
मैंने झांका—फिर मित्रों के साथ उतरकर नीचे गया । जहां एक स्वप्न सा गांव पसरा था। हरे देवदारों के झुरमुट के बीच लकड़ी के घर, धुएं की धीमी लकीरें, और कहीं दूर से आती पानी की कलकल। उसी गांव की किसी ऊंची चट्टान से झरता वह झरना भी दिखा—जिस पर फिल्म की अभिनेत्री मंदाकिनी पर एक गीत फिल्माया गया था। इसके अलावा दूसरा गीत "सुन साहिबा सुन प्यार की धुन" का फिल्मांकन भी इसी गांव में हुआ था।
हर्षिल, उस समय के पिछड़े और दुर्गम क्षेत्र में, आश्चर्यजनक रूप से एक सुसंस्कृत गांव था। वहां एक छोटा-सा बाज़ार था, लकड़ी की छतों के नीचे कुछ दुकानें, और सबसे अहम—एक डाकघर।फिल्म में गंगा का किरदार निभा रही मंदाकिनी पर हर्षिल डाकघर में चिट्ठी डालने का एक सीन फिल्माया गया था। इस सीन के बाद हर्षिल का डाकघर मशहूर हो गया था।
आज जब टीवी पर उस स्वर्ग-सरीखे गांव पर विपदा को देख रहा हूं । तो याद आ रहा है वह झरना, वह गांव की शांत दोपहर, वह बर्फ की चुप मुस्कानें... (देश के वरिष्ठ पत्रकार श्रीधर अग्निहोत्री की कलम से उनकी फेसबुक वॉल से साभार )
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