लंदन आए एक सप्ताह हो गए थे। अंग्रेजों को देखकर जो डर लगता था,धीरे-धीरे दिल से गायब हो रहा था। बेटे-बहू संग तीन साल की नतिनी भी खूब घुलमिल गई थी। बहू भी उसको मेरी गोद में देकर बेफिक्र होकर घर का कामकाज करने में जुट जाती थी।
यूपी के पिछड़े जिले में शुमार बस्ती से लंदन की सैर किसी स्वप्न से कम नहीं थी। लंदन की फ्लाइट पकड़ने से पहले हनुमानगढ़ी जाकर प्रसाद चढ़ाकर यात्रा सकुशल सम्पन्न होने की कामना भी करना नहीं भूली थी। वैसे हर मंगलवार को हनुमानगढ़ी जाने का अपना प्रयास रहता है। लंदन आने से पहले यहां के बारे में जो किताबों में पढ़ने के साथ बेटे-बहू के मुंह से सुनी थी, उन सभी जगहों के सैर की हसरत दिल में कैद थी। लंदन ब्रिज देखने के बाद घंटों वक्त बिताकर एक अलग आनंद की अनुभूति के हिलोरे दिल-दिमाग में गोते लगा रहे थे। लंदन के लैवेंडर पार्क की फोटो देखने के बाद बेटे-बहू से इसकी चर्चा की थी।
बहू अपने सहेलियों संग इस पार्क में लेकर संडे को चलने की बात कही। बहू व उसकी सहेलियों संग हम फिर संड़े को पहुंच गए लंदन के सबसे बैगनी रंग के फूल व पत्तियों के समंदर वाले लैवेंडर पार्क में। दूर से ही उसकी खूबसूरती देखकर मन में मादकता छाने लगी।
हिलोर मारती मस्ती संग हम सब पहुंच गए वॉक्सहॉल पार्क, यहएक छुपा हुआ रत्न है और लैवेंडर के खेतों वाला लंदन का एकमात्र पार्क है। इस पार्क के खेत 2004 में खुले थे और तब से ये लोकप्रिय हैं। शुरुआत में, मधुमक्खियाँ और तितलियाँ यहाँ सबसे ज़्यादा आती थीं, लेकिन हाल के वर्षों में लैवेंडर लोगों के लिए पार्क में आने का एक बड़ा कारण बन गया है। इस पार्क में कुदरत ने खूबसूरती का रंग किस तरह बिखेरा है, इसको देखते ही बन रहा है। लैवेंडर की खूबसूरती के आगे मानों समय थम सा गया था। यी थी उनके साथ कई फोटो खिंचवाने के बाद अपनी भी कई फोटो खिंचवाया। लंदन ब्रिज पर घंटों कैसे बीत गए समय का अंदाजा ही नहीं रहा। ( यूपी के बस्ती जिले की लक्ष्मी अरोरा की कलम से )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/