बादल फटना, जिसे "क्लाउडबर्स्ट" (#Cloudburst) भी कहते हैं, एक बेहद तीव्र और असामान्य रूप से भारी बारिश की घटना है। यह कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है जिसमें सचमुच कोई बादल फटता हो, बल्कि यह एक मौसम संबंधी घटना है।
बादल फटना क्या होता है?
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, जब किसी छोटे से भौगोलिक क्षेत्र (जैसे 20-30 वर्ग किलोमीटर) में एक घंटे के भीतर 100 मिलीमीटर या उससे ज़्यादा बारिश हो, तो उसे बादल फटना कहा जाता है। यह कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक हो सकता है। यह इतनी तेज बारिश होती है कि ज़मीन अचानक से इतनी बड़ी मात्रा में पानी को सोख नहीं पाती, जिससे अचानक बाढ़ और भूस्खलन (लैंडस्लाइड) जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं।
यह कब और क्यों होता है?
यह मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में होता है, और इसके पीछे कई कारण होते हैं:
* पहाड़ी भूभाग: जब नमी से भरी गर्म हवाएं पहाड़ों से टकराती हैं, तो वे ऊपर की ओर उठने लगती हैं। ऊपर जाने पर ये हवाएं ठंडी हो जाती हैं, जिससे इनमें मौजूद नमी पानी की बूंदों में बदल जाती है।
* भारी बादलों का रुकना: ये पानी की बूंदें एक साथ मिलकर बहुत भारी बादल बना देती हैं। पहाड़ों की विशिष्ट बनावट के कारण ये बादल एक ही जगह पर फंस जाते हैं और आगे नहीं बढ़ पाते।
* गुरुत्वाकर्षण: जब बादलों में पानी का भार बहुत ज़्यादा हो जाता है और हवा की धाराएं (अपड्राफ्ट) इसे रोक नहीं पातीं, तो सारा पानी एक साथ बहुत तेज़ी से नीचे गिरने लगता है। इसी को हम "बादल फटना" कहते हैं।
यह घटना ज्यादातर मानसून के मौसम (जून से सितंबर) में होती है, जब हवा में नमी की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्य इस तरह की घटनाओं के लिए सबसे ज़्यादा संवेदनशील माने जाते हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग और वनों की कटाई भी इन घटनाओं की आवृत्ति (frequency) और तीव्रता को बढ़ा रही है।
(#Google के AI #Gemini ने जैसा बताया)
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