- विपक्ष का हंगामे का कोई असर चुनाव आयोग पर नहीं है पड़ने वाला
- जो भारतीय नागरिक है उनका नाम नहीं हटने वाला, कट गया नाम तो देना होगा सबूत
- जो विपक्ष कर रहे हंगामा वही सन 1981 में घुसपैठ और अवैध मतदाओं को लेकर करते रहे थे हंगामा
- क्या आज उन्हें वोटबैंक का डर सता रहा है या वास्तव में वोटरलिस्ट में है व्यापक गड़बड़ी
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) जारी कर दी है, और इस बार बड़ा फेरबदल देखने को मिला है। नई सूची के अनुसार, 65 लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं।मुस्लिम बहुल आबादी वाला यह क्षेत्र संभावित अवैध घुसपैठ को लेकर अक्सर चर्चा में रहता है। बंगाल से सटे बिहार के सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों- अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार- की मसौदा मतदाता सूची में कुल 7,61,914 मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं।
ड्राफ्ट लिस्ट से हटाए गए नामअररिया में 1,58,072,
किशनगंज में 1,45,668,पूर्णिया में 2,73,920,कटिहार में 1,84,254हटाने के बाद अब इन जिलों में वोटरों की संख्या इस प्रकार है:अररिया: 19,24,414,किशनगंज: 10,86,242,पूर्णिया: 19,94,511,कटिहार: 20,44,809
नेपाल सीमा से सटे और बांग्लादेश के करीब बसे सीमांचल में 24 विधानसभा सीटें आती हैं, जो हर चुनाव में ध्रुवीकरण (polarisation) की वजह से एनडीए और विपक्षी INDIA गठबंधन (पहले महागठबंधन) के बीचकांटे की टक्कर का केंद्र बन जाती हैं। इस क्षेत्र में ही AIMIM ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी: पिछले चुनावों में इन 24 में से ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। 2020 के विधानसभा चुनावों में, AIMIM ने पांच सीटें जीतकर इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस क्षेत्र की विभिन्न सीटों पर AIMIM उम्मीदवारों की मौजूदगी उस समय महागठबंधन के लिए परेशानी का एक बड़ा कारण थी।
हालांकि सीमांचल क्षेत्र की स्पष्ट राजनीतिक तस्वीर मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन के बाद ही सामने आएगी, लेकिन एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों इस क्षेत्र में मतदाता सूची के प्रारूप का उचित सत्यापन सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय होने वाले हैं।
1981 में भी सदन के अंदर उठा था सीमांचल में घुसपैठ का मुद्दा: 1981 के तत्कालीन विधायक गणेश प्रसाद यादव जो बाद में जेडीयू में शामिल हो गए थे। दिवंगत गणेश प्रसाद यादव ने 1981 में सदन के अंदर यह कहा था कि पूर्णिया जिला में बांग्लादेश के घुसपैठियों द्वारा ऊंची कीमत पर जमीन की खरीद की जा रही है और सरकार घुसपैठियों पर कार्रवाई करने में असमर्थ है। इसके बाद 1983 में तत्कालीन मंत्री जनार्दन तिवारी ने भी पूर्णिया, किशनगंज, सिवान और कटिहार में बड़े पैमाने पर घुसपैठ की बात कही थी। 1992 में बीजेपी विधायक सुशील कुमार मोदी ने भी सीमांचल के इलाके में घुसपैठ का मामला बिहार विधानसभा में उठाया था। हरेंद्र प्रताप ने कहा कि उस वक्त करीब 18 हज़ार फर्जी मतदाता को पकड़ा गया था। और आज की तारीख में 50 लाख घुसपैठिए बिहार में रह रहे हैं।बिहार के गृह मंत्री नीतीश कुमार क्या कर रहे हैं : आरजेडी आरजेडी नेता और प्रवक्ता विजय प्रकाश ने घुसपैठ के मामले में कहा कि केंद्र में 7 साल से बीजेपी की सरकार है और बिहार में 15 साल से बीजेपी की गोद में बैठकर नीतीश कुमार सरकार चला रहे है। ऐसे में घुसपैठ कैसे हो रहा है इसका जवाब तो उन्हें देना चाहिए। बिहार में अगर घुसपैठिए हैं तो मुख्यमंत्री सह गृह मंत्री नीतीश कुमार गद्दी पर बैठकर क्या कर रहे हैं। क्या नीतीश कुमार का काम सिर्फ भाषण देना ही है या फिर उन्हें सीमांचल के इलाके में जाकर देखना चाहिए कि वहां घुसपैठ हो रहा है या नहीं। उन्हें जनता की भलाई से नहीं बल्कि सिर्फ जनता के वोट से मतलब है चाहे वह किसी भी प्रकार से मिल जाए।बांग्लादेश से लेकर पाकिस्तान तक मुस्लिम कॉरिडोर पर पीएम दें जवाब : कांग्रेस
कांग्रेस नेता और प्रवक्ता राजेश सिंह राठौर का कहना है कि बीजेपी के एमएलए और उनके मंत्री बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। जब भारतीय जनता पार्टी के मंत्री और एमएलए कह रहे हैं कि बिहार में घुसपैठ बढ़ रहा हैं तो इसका जवाब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देना चाहिए। दूसरी तरफ बीजेपी के नेता कह रहे हैं कि बांग्लादेश से लेकर पाकिस्तान तक मुस्लिम कॉरिडोर बनाया जा रहा है। आश्चर्य इस बात का है कि दिवंगत इंदिरा गांधी ने जिस पाकिस्तान के दो टुकड़े में बांट दिया था। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में बीजेपी के कार्यकर्ता के अनुसार बंगाल से पाकिस्तान तक मुस्लिम कॉरिडोर बनाया जा रहा है। इस तरह के बयान से तो बीजेपी के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही कार्य पर सवाल उठा रहे हैं। बिहार में यह कार्य 22 साल बाद हो रहा है। पिछला पुनरीक्षण का कार्य 2003 में हुआ था। एक मायने में आयोग का कहना सही है कि मतदाता सूची में केवल भारत के जायज नागरिकों का नाम ही होना चाहिए क्योंकि संविधान मतदाता बनने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही देता है। सभी जानते हैं कि भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बंगलादेशियों की एक समस्या है। यह समस्या पिछले लम्बे अर्से से चली आ रही है। भारत में रोजगार की तलाश में आने वाले बंगलादेशी अपनी असली पहचान छिपा कर आधार कार्ड बनवा लेते हैं और अपना नाम मतदाता सूची तक में भी जुड़वा लेते हैं। इसके अलावा बिहार से रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने वाले बिहारियों की भी कमी नहीं है। इनमें से काफी बड़ी संख्या में बिहारी दूसरे राज्यों के स्थायी निवासी बन जाते हैं जिससे उनके नाम भी उस राज्य की मतदाता सूची में जुड़ जाते हैं। अतः भारत में दोहरे मतदाता कार्ड की भी समस्या है। इसके अलावा एेसा भी पाया जाता है कि जो लोग परलोक सिधार जाते हैं उनके नाम भी मतदाता सूची में दर्ज रहते हैं जिसकी वजह से फर्जी मतदाता मत डाल आते हैं।
चुनाव आयोग यदि इन सब विसंगतियों को दूर करने की कोशिश कर रहा है तो इसका विरोध क्यों किया जाना चाहिए? विपक्षी दलों का इसके विरोध में सबसे मजबूत तर्क यह है कि चुनाव आयोग ने बिहार में पुनरीक्षण का कार्य केवल एक महीने के भीतर ही 25 जुलाई तक कराया है। बिहार में कुल 7.8 करोड़ मतदाता हैं। एक महीने के भीतर इन सभी मतदाताओं तक पहुंचना बहुत मुश्किल कार्य है। फिर भी चुनाव आयोग ने यह कार्य किस प्रकार करा लिया। इस पर सभी को आश्चर्य है। चुनाव आयोग का कहना है कि उसने यह कार्य लगभग 78 हजार चुनावी बूथ स्तर के अधिकारियों की मदद से एक महीने के भीतर ही कराने में सफलता हासिल कर ली है। इस कार्य को करने के लिए बूथ स्तर के अधिकारियों पर राजनीतिक दलों के डेढ़ लाख से अधिक बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की भी नजर थी जो कि मतदाताओं के फार्म भरने में मदद कर रहे थे। चुनाव आयोग ने प्रत्येक मतदाता को एक फार्म भरने के लिए दिया था जिसमें उसका निजी विवरण पूछा गया था। पुनरीक्षण में पाया गया कि पुरानी मतदाता सूची के मुकाबले पुनरीक्षित सूची में आठ प्रतिशत के लगभग कम मतदाता वैध रूप में हैं। अवैध या सन्देहास्पद मतदाताओं की संख्या 65 लाख है जिनमें 22 लाख की मृत्यु हो चुकी है, सात लाख मतदाता एेसे हैं जिनके नाम दो राज्यों की मतदाता सूची में हैं और 35 लाख एसे हैं जो अन्य राज्यों में स्थानान्तरित हो चुके हैं मगर उनका कुछ अता-पता नहीं है। असल में भारत में यह समस्या बहुत सामान्य है क्योंकि किसी की मृत्यु के बाद भी परिवारजन उसका नाम मतदाता सूची से हटवाने की जहमत नहीं उठाते हैं। मगर चुनाव आयोग का भी यह फर्ज बनता है कि वह मतदाता सूची से सन्देहास्पद व्यक्तियों के नाम काटने का कार्य पूरी पारदर्शिता के साथ करे जिससे किसी को किसी प्रकार की आशंका न रहे। चुनाव आयोग पहली पुनरीक्षित मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित कर देगा । इसके बाद 1 सितम्बर तक हरेक नागरिक को अधिकार होगा कि वह नाम काटे गये मतदाता के बारे में उसके वैध मतदाता होने का प्रमाण चुनाव आयोग को दे सके जिससे उसका नाम 30 सितम्बर को प्रकाशित होने वाली अन्तिम पुनरीक्षित सूची में जुड़ सके। इसे देखकर लगता है कि चुनाव आयोग सन्देहास्पद मतदाता को भी पूरा समय दे रहा है कि वह अपने वैध होने का प्रमाण प्रस्तुत कर सके। चुनाव आयोग का कहना है कि लगभग 7.23 करोड़ मतदाताओं ने अपने चुनावी फार्म उसके पास जमा किये। बाकी जिनके फार्म जमा नहीं हुए वे सभी सन्देहास्पद श्रेणी में डाले गये। इनमें से 22 लाख मतदाता मृतकों की सूची में हैं। केवल 1.2 लाख मतदाता ही एेसे हैं जिनके पास बूथ स्तर के अधिकारी नहीं पहुंच सके। इनके फार्म अगले एक महीने के भीतर जमा हो सकते हैं। इस प्रकार 99.8 प्रतिशत मतदाताओं का आंकड़ा चुनाव आयोग के पास पहुंच चुका है। इस पूरी कवायद का मतलब यह भी निकलता है कि बिहार में 7.8 करोड़ मतदाता न होकर केवल 7.25 करोड़ के लगभग मतदाता हैं जिनमें फार्म न जमा करने वाले 1.2 लाख मतदाता भी शामिल हैं। मगर विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि यह सत्तारूढ़ दल भाजपा की साजिश है जो वह चुनाव आयोग के साथ मिलकर रच रहा है। इसी मुद्दे पर पूरे एक सप्ताह तक संसद का चालू सावन सत्र नहीं चल सका क्योंकि विपक्षी दल मांग कर रहे थे कि मतदाता पुनरीक्षण का काम बन्द किया जाये और चुनाव 2024 की उसी मतदाता सूची के अनुसार कराया जाये जिससे इस वर्ष में लोकसभा चुनाव हुए थे। इनका तर्क है कि जो सूची लोकसभा चुनावों में मान्य थी वह विधानसभा चुनावों में किस प्रकार अमान्य हो सकती है। सभी जानते हैं कि राज्य में विधानसभा चुनाव आगामी नवम्बर महीने में होने हैं। ( बिहार से अशोक झा )
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