भगवान श्री गणेश के 32 स्वरूप जीवन के हर पहलू से जुड़े हैं। मासूमियत से लेकर वीरता तक। योग से लेकर समृद्धि तक। इनका स्मरण न सिर्फ विघ्नहरता है बल्कि जीवन में सकारात्मकता और शक्ति का संचार करता है। यही कारण है कि 27 जुलाई से गणपति बप्पा मोरिया की गूंज बंगाल से बिहार के सीमांचल में सुनाई देगी। कही 10 तो कही 7 और तीन दिनों का गणपति उत्सव मनाया जायेगा। स्टूडेंट यूथ क्लब ठाकुरगंज द्वारा 2013 में शुरु किया गया था। इसका आयोजन लगातार 12 वें साल ठाकुरगंज नगर पंचायत डीडीसी मार्केट प्रांगण में परंपरागत रूप में मनाया जा रहा है। तीन दिवसीय उत्सव में पूजा अर्चना के साथ
स्वास्थ्य शिविर, भजन संध्या के साथ भक्तों के लिए और बहुत कुछ होगा। कहते है ठाकुरगंज बाबा भोले की नगरी है। ऐसे में उनके पुत्र का उत्सव ही वह भी खास नहीं ऐसा हो नहीं सकता। ऐसा ही कहना है गणेश महोत्सव को सफल बनाने के लिए मुख्य रूप से बिजली प्रसाद सिंह, देवकी अग्रवाल, कौशल किशोर यादव, श्री कृष्ण सिंह उर्फ सिकंदर पटेल, कन्हैया लाल महतो, अशोक भारती, सुमित राज यादव, अतुल सिंह, प्रशांत पटेल, अनिल महराज, रमेश महतो, रमन चौधरी, रोहित सहनी, अभिषेक पोद्दार, प्रह्लाद झा, विजय कुमार मिश्रा, घनश्याम कुमार, आलोक उर्फ गोलू यादव, राजेश गणेश, सोनू कुमार गुप्ता सहित दर्जनों युवा कार्यकर्ताओं का। क्या आपको पता है। श्री ग़णेश के इन 32 स्वरूपों में जीवन के हर पहलू का रहस्य छिपा है। बचपन की मासूमियत से लेकर योद्धा का साहस, साधक का ध्यान और गृहस्थ का वैभव। यही कारण है कि गणपति केवल विघ्नहर्ता ही नहीं बल्कि हर युग और हर परिस्थिति के लिए मार्गदर्शक देवता माने जाते हैं। हिंदू धर्म में श्री गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि का देवता माना गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणपति सिर्फ एक ही स्वरूप में पूजनीय नहीं हैं. शास्त्रों और प्राचीन ग्रंथों में उनका 32 विशिष्ट रूपों का वर्णन मिलता है. हर रूप के पीछे एक खास शक्ति, आशीर्वाद और जीवन दर्शन छिपा है.
बाल गणपति: मासूमियत और उर्वरता
बाल स्वरूप वाले गणपति सुनहरी आभा से दमकते हैं. हाथों में केला, आम, गन्ना और कटहल लिए ये धरती की उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक हैं. इनका प्रिय भोग मोदक है जो जीवन की मिठास और संतुलन का संदेश देता है.
तरुण गणपति: युवा ऊर्जा का प्रतीक
आठ भुजाओं वाले तरुण गणपति लाल आभा से चमकते हैं. ये जवानी की ऊर्जा, उत्साह और साहस का प्रतिनिधित्व करते हैं. हाथों में पाश, मोदक, गन्ना और कई फल धारण कर यह बताते हैं कि युवावस्था कर्म और शक्ति का समय है.
भक्ति गणपति: चंद्रमा जैसी शांति
फसल के मौसम में पूर्णिमा के चाँद की तरह चमकते भक्ति गणपति शुद्धता और समर्पण का प्रतीक हैं. इनका संदेश है कि बिना भक्ति और श्रद्धा के जीवन अधूरा है.
वीर गणपति: पराक्रम और रक्षा
वीर गणपति शस्त्र धारण किए रहते हैं. ये योद्धा रूप जीवन की चुनौतियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है और हमें बताता है कि साहस से बढ़कर कोई साधन नहीं।.
शक्ति गणपति: दिव्य संगिनी के साथ
इस रूप में गणपति अपनी शक्ति देवी के साथ प्रकट होते हैं. यह रूप बताता है कि ऊर्जा का संतुलन तभी संभव है जब पुरुष और स्त्री शक्ति एक साथ हों.
सिद्धि गणपति: सफलता और उन्नति
यह स्वरूप हर साधक को सिद्धि और सफलता का आशीर्वाद देता है. विद्यार्थी और व्यापारियों के लिए यह रूप विशेष रूप से पूजनीय है.
उच्चिष्ठ गणपति: तांत्रिक शक्ति का स्वरूप
यह गणपति रूप साधकों के लिए है. नीले या लाल आभा वाले उच्चिष्ठ गणपति तप और योग से जुड़ी दिव्य शक्तियों का संचार करते हैं.
विघ्न गणपति: हर बाधा का नाशक
जैसा नाम वैसा ही स्वरूप। यह रूप जीवन से हर तरह के विघ्न और संकट को दूर करता है. गणेश चतुर्थी पर इनकी विशेष पूजा की जाती है.
क्षिप्र गणपति और क्षिप्र प्रसाद गणपति
ये दोनों स्वरूप तुरंत प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. इन्हें संकट की घड़ी में याद करने से तुरंत राहत मिलती है.
लक्ष्मी गणपति: समृद्धि और वैभव
माता लक्ष्मी से जुड़े इस स्वरूप में गणपति धन, सुख और सौभाग्य प्रदान करते हैं. व्यापार और करियर में प्रगति के लिए इस रूप की पूजा विशेष मानी गई है.
महा गणपति: सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक
महा गणपति का रूप समस्त ब्रह्मांड की शक्तियों का केंद्र है. यह गणेश का सर्वोच्च और सर्वव्यापी स्वरूप है.
नृत्य गणपति: आनंद और लय
नृत्य करते हुए गणपति जीवन में उत्सव और खुशी का संदेश देते हैं. यह रूप बताता है कि साधना और आनंद दोनों एक साथ संभव हैं.
योग गणपति: साधना का मार्ग
योग मुद्रा में बैठे गणपति आत्मचिंतन और ध्यान का प्रतीक हैं. यह रूप साधकों को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है.
सिंह गणपति: निर्भयता का संदेश
सिंहमुख वाले गणपति भय को दूर करते हैं. जीवन में साहस और निर्भीकता बनाए रखने के लिए इस स्वरूप की आराधना की जाती है.
संकटहर गणपति: अंतिम रक्षक
सभी 32 स्वरूपों में यह वह रूप है जो हर विपत्ति और दुख का अंत करता है. संकटहर गणपति को ही कठिन समय में सबसे ज्यादा स्मरण किया जाता है.
एकाक्षर गणपति: ओंकार का स्वरूप
यह रूप ओंकार ध्वनि का प्रतीक है, जिससे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जा निकलती है.
वरद गणपति: वरदान दाता
वरद गणपति भक्तों को आशीर्वाद और मनोकामना पूर्ण करने वाला स्वरूप हैं.
त्र्यक्षर गणपति: तीन अक्षरों का स्वरूप
यह रूप ज्ञान और शक्ति की त्रिमूर्ति का प्रतीक है.
क्षिप्र प्रसाद गणपति: शीघ्र फल देने वाले
यह स्वरूप तुरंत प्रसन्न होकर भक्तों को फल प्रदान करता है.
हरिद्र गणपति: पीले रंग से युक्त
हरिद्र गणपति सौभाग्य और खुशियों का आशीर्वाद देने वाले हैं.
एकदंत गणपति: त्याग का प्रतीक
एक ही दाँत वाले गणपति बलिदान और त्याग का संदेश देते हैं।
सवाल यह उठता है कि आखिर गणेश जी का दांत कैसे टूटा? इसके पीछे कई रोचक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
परशुराम और गणेश जी की कथा
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार भगवान परशुराम कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने पहुंचे। उस समय शिव जी ध्यान में लीन थे और माता पार्वती के आदेश पर गणेश जी द्वारपाल के रूप में खड़े थे। जब परशुराम जी ने अंदर जाने की अनुमति मांगी तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। इस बात से परशुराम जी क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी पर प्रहार कर दिया। परिणामस्वरूप गणेश जी का एक दांत टूट गया। तभी से वे "एकदंत" कहलाने लगे।
वेदव्यास और महाभारत लेखन की कथा
दूसरी प्रसिद्ध कथा महाभारत से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब ऋषि वेदव्यास ने महाभारत की रचना करनी चाही, तो उन्होंने गणेश जी को लेखक बनाने का निश्चय किया। गणेश जी ने यह शर्त रखी कि वे लेखन के दौरान बिना रुके लिखेंगे। जब लेखन के बीच में उनकी कलम टूट गई, तो उन्होंने समय न गंवाते हुए अपना एक दांत तोड़ दिया और उसे ही कलम बनाकर लेखन कार्य जारी रखा। इस तरह गणेश जी ने महाभारत जैसी महान रचना को लिपिबद्ध किया।
गजमुखासुर की कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, एक बार गजमुखासुर नामक दानव ने अत्याचार मचाना शुरू किया। उसे किसी भी अस्त्र-शस्त्र से परास्त नहीं किया जा सकता था। तब गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़कर उसे अस्त्र बनाया और उसी से गजमुखासुर का वध किया। इस प्रकार उन्होंने संसार को उसके आतंक से मुक्त कराया।
धार्मिक मान्यताओं का सार
इन कथाओं से स्पष्ट है कि गणेश जी का एक दांत टूटने के पीछे अलग-अलग पौराणिक प्रसंग मिलते हैं। कोई कथा इसे परशुराम के क्रोध से जोड़ती है, तो कोई इसे महाभारत लेखन की तपस्या का प्रतीक बताती है। वहीं कुछ कथाएं इसे दानव संहार की वीरता से जोड़ती हैं।
इन सभी प्रसंगों में एक बात समान रूप से झलकती है-गणेश जी का त्याग, धैर्य और बलिदान। चाहे पिता की आज्ञा निभानी हो, महाभारत जैसी महान रचना का कार्य संपन्न करना हो या फिर धर्म की रक्षा करनी हो-गणेश जी ने अपने दांत का बलिदान देकर "एकदंत" के रूप में एक विशेष पहचान प्राप्त की।
सृष्टि गणपति: रचनाकार:
सृष्टि गणपति ब्रह्मांड की रचना और संरक्षण का स्वरूप हैं.
उद्धण्ड गणपति: उग्र रूप: यह स्वरूप नकारात्मकता और शत्रुओं का विनाश करने वाला है: ऋणमोचन गणपति: कर्ज से मुक्ति: ऋणमोचन गणपति भक्तों को आर्थिक संकट और कर्ज से मुक्ति दिलाते हैं। धुंधि गणपति: बाधाओं का नाशक
धुंधि गणपति अदृश्य बाधाओं और समस्याओं को दूर करते हैं.
द्विमुख गणपति: द्वंद्व का संतुलन: दो मुख वाले गणपति जीवन के द्वंद्व को संतुलित करने का संदेश देते हैं।
त्रिमुख गणपति: त्रिवेणी स्वरूप: त्रिमुख गणपति शक्ति, ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक हैं।सिंह गणपति: निर्भयता का स्वरूपसिंह पर आरूढ़ गणपति पराक्रम और साहस का संदेश देते हैं.हेरंब गणपति: पांच मुख वाला संरक्षक
हेरंब गणपति पाँच मुख और दस हाथों से युक्त होते हैं. यह स्वरूप भय दूर करने वाला है।दुर्गा गणपति: शक्ति रूप
दुर्गा गणपति हर बुराई से रक्षा करने वाला स्वरूप हैं.
विजय गणपति: सफलता का प्रतीक : विजय गणपति जीवन में जीत और सकारात्मक ऊर्जा का आशीर्वाद देते हैं। ऊर्ध्व गणपति: उन्नति और विकास,: ऊर्ध्व गणपति आध्यात्मिक और भौतिक दोनों जीवन में उन्नति का प्रतीक हैं। द्विज गणपति: ज्ञान का स्वरूप: यह स्वरूप यज्ञोपवीत धारण किए हुए द्विज के रूप में पूजनीय है. यह शिक्षा और विद्या का प्रतीक है। ( बंगाल से अशोक झा की रिपोर्ट )
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