उदवंतनगर: खुरमा की असली पहचान आरा शहर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित उदवंतनगर गांव को खुरमा का असली गढ़ माना जाता है।
करीब 80 से 85 साल पुरानी परंपरा आज भी ज्यों की त्यों चल रही है।
बिना मिलावट, बिना मशीन, पूरी तरह देसी और शुद्ध।
सिर्फ दो चीजें, लेकिन स्वाद लाजवाब।छेना और चीनी — इन दो सामग्रियों से दो घंटे की मेहनत के बाद बनता है लाजवाब खुरमा।
छेना को छोटे टुकड़ों में काटकर, चीनी के घोल में धीमी आंच पर पकाया जाता है।
मिठास घोलने के बाद उसे परतदार और कुरकुरा बनने तक ठंडा होने दिया जाता है।
रोजाना बनता है 200 किलो से ज़्यादा खुरमा उदवंतनगर में रोजाना 150–200 किलो खुरमा तैयार होता है, जो उसी दिन बिक भी जाता है।बनारस, पटना, रांची, बंगलोर से लेकर विदेशों तक इसकी डिमांड है।
त्योहार, शादी-ब्याह और खास मौकों पर इसे सौगात के रूप में भी भेजा जाता है।
आरा का खुरमा साबित करता है कि असली नवाचार वही है जो परंपरा से जुड़ा हो।
बिना मिलावट, बिना केमिकल पूरी तरह स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट।
खुरमा अब सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि भोजपुर(बिहार) की पहचान बन चुका है। ( अजित मिश्र की कलम से )
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