- मालदा में ट्रेन से बरामद हुआ 268 कछुए, विदेशों में है बड़ी मांग
- सीमा पर सक्रिय है अंतरराष्ट्रीय तस्कर, क्या होता है कछुए का क्या आपको पता है
बंगाल में ट्रेनों के ज़रिए वन्यजीवों की तस्करी का एक और प्रयास मालदा जीआरपी ने नाकाम कर दिया है। फरक्का एक्सप्रेस में छापेमारी में 268 कछुए बरामद किए गए है। मालदा टाउन स्टेशन की जीआरपी ने दिल्ली-फरक्का एक्सप्रेस ट्रेन से 268 कछुए बरामद किए। ये कछुए ट्रेन के जनरल डिब्बे से बरामद किए गए। हालाँकि, किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। माना जा रहा है कि ये कछुए उत्तर प्रदेश से लाए गए थे और तस्करी के लिए बालुरघाट ले जाए जा रहे थे। जीआरपी ने कछुओं को मालदा वन विभाग को सौंप दिया है। 89 कछुए मृत बताए जा रहे हैं। भारत समेत दुनियाभर में कछुओं की तस्करी की जाती है, जिसके बाद इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाया जाता है। जहां इन कछुओं का बेचने पर लाखों रुपये मिलते हैं।इनमें कुछ कछुए ऐसे भी होते हैं, जिनकी बाजार में डिमांड और रेट दोनों ही ज्यादा है। इनमें स्टार कछुआ प्रमुख है, स्टार कछुए की पीठ पर पीले और काले रंग के चकत्ते की तरह खूबरसूरत आकृति बनी है। दरअसल ये दिखने में एक पिरामिड की तरह लगती है। कछुओं को रखना कानून जुर्म : बता दें कि वन्य जीवसंरक्षण अधिनियम 1972 में भारतीय जीव जंतु की तस्करी और उन्हें रखना अपराध है. बता दें कि कहीं पर भी वन्य जीव की तस्करी खरीद फरोख्त की जाने की सूचना मिलने पर वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 9( 44 )के तहत अपराध दर्ज किया जाता है। इसमें सजा का भी प्रावधान है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय साईटिस कन्वेंशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ऑफ इन डेंजर स्पीशीज ऑफ फ्लोरा एंड फोना के तहत भी किसी जीव-जंतु की खरीद-फरोख्त पर रोक है। विदेशी जीव-जंतु के यहां आने से स्थानीय जीव-जंतु पर खतरा हो सकता है।कछुआ को पकड़ने पर सात साल की सजा हो सकती है। क्यों होती है कछुओं की तस्करी: अब सवाल ये है कि आखिर दुनियाभर में कछुओं की तस्करी क्यों होती है। बता दें कि कछुओं की तस्करी के पीछे उनसे बनने वाली दवाईयां और धार्मिक कारण के लिए घर में रखना भी एक वजह है। इनमें कुछ प्रजाति के कछुओं की डिमांड ज्यादा होती है। 1जैसे दक्षिण पूर्वी एशिया समेत कई जगहों पर लोग यह मानते हैं कि स्टार कछुए भाग्य के संकेत होते हैं। लोगों का मानना है कि इन्हें पालने से भाग्य बदल जाता है। ये भी एकारण है कि लोगों द्वारा इन्हें घरों में पालने की मांग बढ़ती जा रही है। दवाई बनाने के लिए कछुए का इस्तेमाल: स्टार कछुओं से यौनशक्ति बढ़ाने वाली दवाओं का निर्माण भी किया जाता है। जिसके कारण इनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग होती है। दवाई में इस्तेमाल होने के कारण दुनियाभर में कछुए की तस्करी होती है। कछुआ की तस्करी के लिए पश्चिम बंगाल प्रमुख मार्ग बन गया है। कछुआ तस्करों की गिरफ्तारी व कछुआ बरामदगी के ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि आरोपी कछुओं को बंगाल लाने की कोशिश में रहते हैं। ऐसी घटनाएं उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु व अन्य राज्यों में हो चुकी है। तस्करों का गिरोह उत्तर 24 परगना, नदिया, मालदा, मुर्शिदाबाद स्थित भारत-बांग्लादेश सीमावर्ती इलाकों से बांग्लादेश में अवैध तरीके से कछुआ भेजने की फिराक में रहते हैं। जहां से एशिया के अन्य देशों में उनकी तस्करी की जा सके। हालांकि, सीमावर्ती इलाकों में तस्करों के मंसूबे को नाकाम करने के लिए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भारतीय कछुओं की विदेश में काफी है मांग : जानकारों का कहना है कि भारतीय की विभिन्न प्रजातियों के कछुओं की विदेश की काफी मांग है। खासकर एशिया के कई देशों में। हमारे देश में कछुओं की 28 प्रजाति हैं. इनमें स्पोडिड पोंड, निलसोनिया, गैंगटिस, चित्रा, इंडिका, सुंदरी प्रजाति के कछुओं की कीमत ज्यादा मानी जाती है। विदेशों में ऐसी प्रजाति के कछुए के सूप और चिप्स भी बनाए जाते हैं, जिनकी डिमांड वहां के लोगों में ज्यादा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति किलोग्राम कछुए के चिप्स की 25 हजार रुपये से भी ज्यादा होती है। ज्यादा मुनाफा के कारण भी भारतीय कछुओं की तस्करी तस्करों की पसंद है। तस्करों को कछुआ की तस्करी में करीब 10 से 12 गुना तक का फायदा भी मिल जाता है। वन विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि कछुए के खोल से दवा भी बनायी जाती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति किलो सूखे कछुए की कीमत करीब 160 से 180 डॉलर तक भी हो सकती है। भारत में अंधविश्वासी कछुओं का तंत्र-मंत्र के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। बांग्लादेश के रास्ते चीन व एशिया के अन्य देशों में कछुओं की तस्करी : सूत्रों के अनुसार, कछुआ तस्करी की कुछ घटनाओं में गिरफ्तार लोगों से यह बात भी सामने आ चुकी है कि वे पश्चिम बंगाल के रास्ते कछुए बांग्लादेश अवैध तरीके से भेजने की फिराक में थे। बताया जा रहा है कि बांग्लादेश के रास्ते चीन व एशिया के कई देशों में कछुए भेजे जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ढाका और अन्य जगहों में अवैध तरीके से तस्करी कर लाये गये कछुओं को बरामद करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। बताया गया ज्यादातर मामलों में भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाके बेनापोल से तस्करी कर कछुए लाने के मामले ज्यादा थे। लुप्तप्राय श्रेणी (सेडयुल वन) में रखे गए इंडियन साफ्टशेल या गंगेज साफ्टेशेल कछुए (टर्टल) पड़ोसी देश नेपाल और चीन में प्रचलित अंधविश्वास का शिकार बन रहे हैं। दोनों देशों में जादू-टोने में इनका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा चीन में इन कछुओं के शरीर के कई हिस्सों का खास तरह की दवा बनाने में भी इस्तेमाल होता है। जिसकी वजह से इन दोनों देशों में कुछुओं की काफी मांग रहती है। तस्करों का गिरोह पश्चिम बंगाल के रास्ते इन्हें नेपाल और चीन भेजता है।लिहाजा तस्कर इन्हें जमा करते रहते हैं। काफी मात्रा में जमा करने के बाद तस्कर इन्हें बोरों में भरकर पश्चिम बंगाल भेजते हैं। पहले इसके लिए तस्कर ट्रक का इस्तेमाल करते थे। अब पुलिस से बचने के लिए ये लोग लग्जरी कारों का इस्तेमाल करते हैं। तस्करों को प्रत्येक कछुए के लिए 50-250 रुपये तक मिलते हैं। पश्चिम बंगाल में ये कछुए 500 से 1000 रुपये तक में बिकते हैं। विदेश में इनकी कीमत हजारों या कई बार लाखों रुपये हो जाती है। ये कछुए की प्रजाति और आयु आदि पर निर्भर करता है। जिंदा कछुओं की कीमत सबसे ज्यादा होती है, क्योंकि उनका खोल (कवच) और मांस ताजा मिलता है।
इस तरह से होती है तस्करी
इन कछुओं को पश्चिम बंगाल ले जाकर वहां से अवैध तरीके से बांग्लादेश पहुंचाया जाता है। इसके बाद ये कछुए चीन, हांगकांग, मलेशिया, थाईलैंड आदि देशों में सप्लाई किए जाते हैं। इन देशों में कछुए का मांस, सूप और चिप्स काफी पसंद किया जाता है। साथ ही इसके कवच से यौनवर्धक दवाएं और ड्रग्स बनाई जाती है। कछुओं के खोल से तरह-तरह का सजावटी सामान, आभूषण, चश्मों के फ्रेम आदि भी बनाए जा रहे हैं। इंडियन स्टार टॉर्ट्स को तस्करी कर भारत से अमेरिका के फ्लोरिडा या नेवादा या यूके के हैंपशायर तक भेजा जाता है। सी-कुकुंबर को म्यांमार भेजा जाता है और भारतीय तोते को ऑस्ट्रेलिया तक तस्करी कर भेजा जाता है। बैंकॉक पालतू जीव-जंतूओं के लिए सबसे बड़ा बाजार है।
चीन में सालाना 73 हजार कछुए मारे जाते हैं
टॉरट्वाइज इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले चीन में कछुओं की खोल (कवच) से जेली बनाने के लिए प्रति वर्ष 73 हजार कछुए मारे जाते हैं। इस मांग को पूरा करने के लिए चीन कई देशों से कानूनी या गैरकानूनी तरीके से कछुए मंगाता है। इसके अलावा चीन के लोग कई तरह के पूचा-पाठ और भविष्यवाणी के लिए लंबे अरसे से कछुओं की खाल का इस्तेमाल कर रहे हैं। चीन में कछुए की खाल से भविष्य बताने की कला को किबोकू कहा जाता है।
225 किस्म के हैं कछुए: पूरी दुनिया में 225 किस्म के कछुए पाए जाते हैं। सबसे बड़ा समुद्री कछुआ सामान्य चर्मकश्यप होता है। समुद्री कछुआ लगभग आठ फुट लंबा और 30 मन तक भारी हो सकता है। इसकी पीठ पर कड़े शल्कों की धारियां सी रहती हैं, जिन पर खाल चढ़ी होती है। भारत में भी कछुओं की लगभग 55 प्रजातियां पायी जाती हैं। इनमें साल, चिकना, चितना, छतनहिया, रामानंदी, बाजठोंठी और सेवार प्रमुख हैं।
जानवरों का ऑनलाइन कारोबार
वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) की साइबर विंग के अनुसार इंटरनेट और सोशल मीडिया वन्य जीवों की तस्करी में विलेन की भूमिका निभा रहे हैं। इनकी मदद से तस्कर दुनिया भर के खरीदारों से आसानी से संपर्क कर पा रहे हैं। वन्य जीवों के इस गैरकानूनी ऑनलाइन कारोबार मे उल्लू, मकड़ी, कछुए और खूबसूरत पक्षियों से लेकर कई तरह के संरक्षित और लुप्त प्राय वन्य जीव व पक्षी शामिल हैं। बीते करीब एक वर्ष में उत्तर भारत में कीड़े-चींटी आदि खाने वाले पैंगोलिन की तस्करी भी काफी तेजी से बढ़ी है।
इसके अलावा पूर्वोत्तर में पायी जाने वाली रंग-बिरंगी और खूबसूरत छिपकली तोकाय गेको भी ऑनलाइन बिक्री में शामिल है। आश्चर्यजनक ये है कि इस छिपकली के लिए खरीदार 20 लाख रुपये या इससे भी ऊंची कीमत देने को तैयार रहते हैं। इसी तरह दीपावली के दौरान उल्लुओं की ऑनलाइन तस्करी भी बढ़ जाती है। अनुमान है कि 200 से ज्यादा वेबसाइट इस ऑनलाइन तस्करी में सक्रिय हैं, जिन पर एजेंसियां नजर रख रही हैं। ( बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा )
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