- 7 जुलाई से चार महीने तक बाबा भोले संभालेंगे कार्यभार, क्यों श्रीहरि को योग निद्रा में?
महान हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बड़ा महत्व है। यूं तो हर महीने में दो एकादशी तिथि आती हैं, एक शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में। हर एकादशी तिथि का अपना अलग महत्व है, लेकिन सालभर की 24 एकादशी तिथियों में देव शयनी एकादशी की बात अलग ही है। देवशयनी एकादशी के नाम से ही पता चलता है कि वह एकादशी, जिस पर देवता शयन करते हैं। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, उनके साथ ही सभी देव सो जाते हैं। तब तक कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। इन 4 माह को चातुर्मास के नाम से जानते हैं।देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को होती है। इस बार देवशयनी एकादशी के दिन 3 शुभ योगों का निर्माण भी होने वाला है।मान्यता है कि इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है। इसी दिन से भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा में चले जाते हैं।चार महीने तक सृष्टि की देखभाल भगवान शिव संभालते हैं। तभी तो इसी तिथि के अलगे दिन सावन शुरू हो जाता है। अगले चार महीने तक इस दौरान विवाह जैसे मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। साधना, उपवास व संयम को विशेष महत्व दिया जाता है। उज्जैन के आचार्य आनंद भारद्वाज के अनुसार इस बार यह देवशयनी एकादशी और खास होने वाली है। क्याेंकि इस दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है।चार महीने तक सृष्टि की देखभाल भगवान शिव संभालते हैं. तभी तो इसी तिथि के अलगे दिन सावन शुरू हो जाता है। अगले चार महीने तक इस दौरान विवाह जैसे मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। साधना, उपवास व संयम को विशेष महत्व दिया जाता है। पंडित अभय झा के अनुसार इस बार यह देवशयनी एकादशी और खास होने वाली है क्याेंकि इस दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है।
असुरों के राजा बलि जितने बड़े पराक्रमी थे, उससे भी ज्यादा बड़े दानी थे। उन्होंने अपनी तपस्या और युद्ध के बल पर तीनों लोक पर अधिकार कर लिया था और देवताओं से स्वर्ग छीन लिया था। तब देवराज इंद्र सहित देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने पांचवां अवतार वामन का लिया। असुरों के राज बलि ने अपनी तपस्या से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था।स्वर्ग को देवताओं से छीन लिया गया था, जिसके बाद इंद्र ने श्रीहरि से प्रार्थना की।वामन अवतार लेकर भगवान विष्णु ने बालि से तीन पग भूमि देने का वचन लिया।असुरों के राजा बलि जितने बड़े पराक्रमी थे, उससे भी ज्यादा बड़े दानी थे। उन्होंने अपनी तपस्या और युद्ध के बल पर तीनों लोक पर अधिकार कर लिया था और देवताओं से स्वर्ग छीन लिया था। तब देवराज इंद्र सहित देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने पांचवां अवतार वामन का लिया। इस अवतार में उन्होंने राजा बालि से सब कुछ ले लिया। यहां तक कि उनके प्राण भी। मगर, असली कहानी इसके बाद शुरू होती है, जब सब कुछ गंवाकर भी राजा बलि ने वो पा लिया, जो दूसरों के लिए असंभव है। वह है श्रीहरि का सानिध्य और उनका प्रेम। देवशयनी एकादशी 6 जुलाई 2025 को है।पढ़िए दान की विशेष कहानी : जब देवताओं से स्वर्ग छिन गया, तो इंद्रदेव समेत सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। इसके बाद वह राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे और तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि ने दान देने का वचन दिया। तब वामन जी ने विशाल रूप धारण करके एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्गलोक को नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से पूछा कि इसे कहां रखूं। तब राजा बलि ने अपना सिर भगवान के सामने झुकाकर कहा कि मेरे सिर पर रख दीजिए। त्रिलोक विजेता उस दिन अपना सबकुछ हार गया।
फिर हारकर भी जीत ली बाजी : राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। इस पर राजा बलि ने कहा कि यदि आप मुझे कुछ देना चाहते हैं, तो मेरे साथ ही पाताल लोक में रहें चलकर। अपने वचन से बंधे भगवान विष्णु बलि के साथ पाताल लोक में रहने लगे। मां लक्ष्मी फिर लाईं बैकुंठ धाम : इधर, मां लक्ष्मी को जब इस बात का पता चला, तो वह पाताल लोक पहुंची और उन्होंने बलि को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया। इसके साथ वचन मांगा कि श्रीहरि को अपने वचन से मुक्त कर दें। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को वहां से जाने की अनुमति दे दी। मगर, साथ ही यह भी कहा कि वह चार महीने के लिए पाताल लोक में उसके साथ रहेंगे। मान्यता है कि भगवान विष्णु राजा बलि को दिए गए वचन का पालन करने के लिए देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक चार महीने के लिए पाताल लोक में निवास करते हुए योग निद्रा में रहते हैं। ( अशोक झा की कलम से )
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