प्रसिद्ध कवि सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता 'बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का उल्लेख आज भी देशभक्ति और अमरता का प्रतीक है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि (18 जून 2025, बुधवार) पर आइये जानते हैं कब और क्यों उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा और जीवित रहने तक अंग्रेजी हुकूमत झांसी पर कब्जा नहीं कर सकी थी।झांसी की रानी केवल एक राजकुमारी नहीं थीं, बल्कि वे वीरता, शौर्य और आत्मसम्मान की अद्वितीय मिसाल थीं। उनकी गाथाएं आज भी बुंदेलखंड और अन्य क्षेत्रों में गाई जाती हैं, जो उन्हें देश प्रेमियों के लिए एक किंवदंती बना चुकी हैं।
रानी लक्ष्मी बाई के प्रेरणादायक उद्धरण: दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।मातृभूमि के लिए झांसी की रानी ने जान गवाई थी,अरि दल कांप गया रण में, जब लक्ष्मीबाई आई थी।हर औरत के अंदर है झाँसी की रानी,
कुछ विचित्र थी उनकी कहानी,मातृभूमि के लिए प्राणाहुति देने को ठानी,अंतिम सांस तक लड़ी थी वो मर्दानी।रानी लक्ष्मी बाई से जुड़े विशेष उद्धरण: रानी लक्ष्मी बाई लड़ी तो,
उम्र तेईस में स्वर्ग सिधारी,तन मन धन सब कुछ दे डाला,अंतरमन से कभी ना हारी।मुर्दों में भी जान डाल दे,उनकी ऐसी कहानी है,वो कोई और नहीं,झांसी की रानी हैं।अपने हौसले की एक कहानी बनाना,हो सके तो खुद को झांसी की रानी बनाना।झांसी की रानी के नारे"मैं अपने झांसी का आत्म समर्पण नहीं होने दूंगी।"'मैदाने जंग में मारना है, फिरंगी से नहीं हारना है।''हम सब एक साथ ग्वालियर में अंग्रेजों पर हमला करेंगे।''यह सभी को पता है ये अंग्रेज, सभी धर्म के खिलाफ हैं।''यदि युद्ध के मैदान में हार गए और मारे गए तो निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त करेंगे।''हम आजादी के लिए लड़ते हैं, अगर कृष्ण के शब्दों में कहें तो, हम विजयी होंगे तो विजय के फल का आनंद लेंगे।'रानी लक्ष्मी बाई की वीरता: उनकी वीरता के प्रशंसा उनके विरोधियों ने भी की है। 18 जून 1858 को ग्वालियर में दुश्मनों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मी बाई ने वीरगति को प्राप्त किया। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमर रहेगा।रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को बनारस में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था। 1842 में उनकी शादी झांसी के महाराजा गंगाधर राव से हुई। शादी के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा।1851 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन चार महीने बाद उस बालक का निधन हो गया। राजा गंगाधर राव ने दत्तक पुत्र दामोदर राव को स्वीकार किया, लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसे अस्वीकार कर दिया।27 फरवरी 1854 को लार्ड डलहौजी ने दत्तक पुत्र की गोद अस्वीकृत कर दी और झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिला दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने कहा, 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।'7 मार्च 1854 को झांसी पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ। रानी ने अंग्रेजी सरकार द्वारा दी गई पेंशन को अस्वीकार कर दिया। यहीं से स्वतंत्रता की पहली क्रांति का बीज अंकुरित हुआ। क्यों ललकारा था झांसी रानी ने अंग्रेजों को?: झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई का संघर्ष तब आरंभ हुआ, जब उनके पति महाराज गंगाधर राव की मृत्यु के बाद ब्रिटिश सरकार ने ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति के तहत झांसी को हड़पने की कुटिल चाल चली थी. रानी के दत्तक पुत्र दामोदर राव को ब्रिटिश हुकूमत ने उत्तराधिकारी मानने से इंकार करते हुए झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने का आदेश दिया गया. यह न केवल एक राजनीतिक अन्याय था, बल्कि एक स्त्री के आत्मसम्मान पर सीधा प्रहार था. महारानी लक्ष्मीबाई ने इस अन्याय के सामने झुकने से मना करते हुए अंग्रेजों को दो टूक फैसला सुना दिया कि, ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूँगी।
रणभूमि में एक नारी का दुर्गा स्वरूप: रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की रक्षा के लिए न केवल राजनीतिक कूटनीति की, बल्कि एक सैन्य रणनीतिकार के रूप में भी खुद को सिद्ध किया. उन्होंने राज्य महिलाओं को स्वयं युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया, एक स्त्री सैनिक दल का गठन किया और अंग्रेजों के विरुद्ध दृढ़ मोर्चा खड़ा किया. उन्होंने अपने छोटे से राज्य की सीमित सेना को संगठित कर, तोपखाने की व्यवस्था की. अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए उन्होंने स्वयं युद्ध की बारीकियां सीखी. अंग्रेजों के संगठित और सशक्त सैन्य बल के बावजूद रानी ने जीवित रहने तक झांसी को अंग्रेजों से सुरक्षित रखा। एक साहसिक निर्णय: युद्ध और बलिदान: अंग्रेजों ने देखा कि रानी झांसी को आसानी से छोड़ने वाली नहीं है, उन्होंने भारी सैन्य बल के साथ झांसी पर हमला कर दिया. रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पुत्र को पीठ पर बांधा और स्वयं तलवार लेकर रणभूमि में उतर पड़ीं. उन्होंने न केवल अपने राज्य की बल्कि भारतीय नारी की अस्मिता की रक्षा के लिए अनवरत युद्ध किया। उनका यह युद्ध ब्रिटिश हुकूमत को संदेश था, कि नारी केवल सहनशील ही नहीं बल्कि सशक्त होती है. वह यदि ठान ले, तो पराक्रम में पुरुष से कमतर नहीं है. झांसी की रक्षा करते हुए 17 जून 1856 को रानी लक्ष्मीबाई का निधन हो गया. उन्होंने शहादत दी लेकिन उनका बलिदान आज भी हर भारतीय के हृदय में जीवित है। ( अशोक झा की कलम से )
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