- सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय पार्षद कर रहे थे धूलियन में हुई हिंसा का नेतृत्व
बंगाल में कल ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुले मंच से कहा था कि हम सांप्रदायिक हिंसा पसंद नहीं करते। हमारी पार्टी हिंसा के खिलाफ है। ऐसे में उनकी पार्टी के पार्षद और नेताओं का नाम जांच कमेटी में आने पर राजनीतिक खलबली मच गई है। बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीते महीने हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट की निगरानी में गठित जांच समिति ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 के विरोध में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश कर दी है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 11 अप्रैल को धूलियन में हुए मुख्य हमले के समय स्थानीय पुलिस पूरी तरह से निष्क्रिय और अनुपस्थित थी। हाई कोर्ट को सौंपी गई इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि धूलियन में हुई हिंसा का नेतृत्व सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय पार्षद ने किया था और एक मॉल को भी लूट लिया गया था। समिति ने यह रिपोर्ट हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करने और पीड़ितों से बातचीत के बाद तैयार की है। तीन सदस्यीय समिति में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार जोगिंदर सिंह, पश्चिम बंगाल विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव सत्य अर्नब घोषाल और डब्ल्यूबीजेएस के रजिस्ट्रार सौगत चक्रवर्ती शामिल थे। इन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि शुक्रवार को पहली बार हुए हमले के बाद स्थानीय तृणमूल नेताओं ने इलाके का दौरा किया और उन घरों की निशानदेही की जो हिंदुओं के थे लेकिन हमले बचे हुए थे। उसके बाद दंगाई मुसलमानों की भीड़ ने दोबारा हमला किया और इन घरों में आग लगाई। उन्होंने पानी का भी कनेक्शन काट दिया था ताकि आग को बुझाई नहीं जा सके। वारदात के बाद पूरे क्षेत्र में स्थानीय महिलाएं डरी हुई हैं। सबसे अधिक वेटबोना गांव में दर्दनाक हादसा हुआ, जहां 113 घर आग के हवाले कर दिए गए और हरगोविंद दास और उनके बेटे चंदन दास को घर से खींचकर मौत से घाट उतारा गया। इसकी वजह केवल इतनी थी कि वे हिंदू थे। हाई कोर्ट ने 17 अप्रैल को इस समिति का गठन वक्फ अधिनियम को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान विस्थापित हुए लोगों की पहचान और पुनर्वास के लिए किया था। हाई कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी शामिल हैं, ने समिति की रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि राज्य सरकार के असफल रहने की स्थिति में पीड़ितों के लिए योग्य मूल्यांकन विशेषज्ञों की नियुक्ति ही एकमात्र उपाय प्रतीत होती है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि प्रत्येक पीड़ित को अलग-अलग और विशेष पुनर्वास पैकेज की आवश्यकता है, जिसके लिए मूल्यांकन विशेषज्ञों की सेवा अत्यावश्यक है।इससे पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने भी हाई कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें आठ अप्रैल से 12 अप्रैल तक मुर्शिदाबाद जिले के विभिन्न क्षेत्रों में वक्फ अधिनियम को लेकर हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा की जानकारी दी गई थी। सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगीपुर पुलिस जिला के अंतर्गत आने वाले सभी थाना क्षेत्रों में चार अप्रैल से ही वक्फ अधिनियम, 2025 को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। ये प्रदर्शन आठ अप्रैल से हिंसक रूप लेने लगे। सबसे दर्दनाक घटना 12 अप्रैल को सामने आई जब शमशेरगंज थाना क्षेत्र के जाफराबाद में हरगोविंद दास और उनके बेटे चंदन दास की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई।स्थिति के नियंत्रण से बाहर होने पर 11 अप्रैल को शमशेरगंज में केंद्रीय बलों की तैनाती की गई और 12 अप्रैल को हाई कोर्ट के आदेश पर और अधिक केंद्रीय बल भेजे गए।सरकारी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि बीएसएफ के हस्तक्षेप के बाद सुति, धूलियन, शमशेरगंज और जंगीपुर में स्थिति को नियंत्रण में लाया गया।मुर्शिदाबाद में फैली इस हिंसा और प्रशासन की भूमिका पर अदालत की निगरानी में हो रही यह जांच राज्य सरकार के लिए गंभीर सवाल खड़े कर रही है। ( बंगाल से अशोक झा की रिपोर्ट )
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