बांग्लादेश में मौजूदा हालात जो भी हैं, उसके पीछे की वजह सैंट मार्टिन आइलैंड है. यह हम नहीं, बांग्लादेश की पूर्व मुख्यमंत्री शेख हसीना का कहना है. भारत में रह रहीं शेख हसीना का कहना है कि वहां (बांग्लादेश) जो भी हालात हैं वो एक आइलैंड की वजह से हैं।इस दौरान उन्होंने अमेरिका पर गंभीर आरोप भी लगाए। उन्होंने कहा कि अगर उनकी सरकार सैंट मार्टिन आइलैंड को अमेरिका को सौंप दिया होता तो आज उनकी सरकार सत्ता में बनी रहती और वहां शायद ये हालात नहीं बनते। दरअसल, अमेरिका इस आइलैंड पर अपना अधिकार इसलिए जमाना चाहता है ताकि वह अरब सागर में अपनी स्थिति को मजबूत कर सके। अमेरिका इस आइलैंड पर अपना एक मिलिट्री बेस बनाना चाहता है ताकि चीन को चुनौती दी जा सके। 5 अगस्त 2024 को हुआ था तख्तापलट: 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना की सरकार सत्ता से हटी थी. व्यापक छात्र आंदोलन और जन-विरोध प्रदर्शनों के बीच उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और वह देश छोड़कर भारत चली गईं. इसके बाद डॉ. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ. शेख हसीना के तख्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ था.इसमें तत्कालीन जो बाइडेन का बड़ा रोल था।शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद बाइडेन के करीबी माने जाने वाले मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुखिया बनाया गया
चीन अपनी विस्तारवादी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। अब चीन भारत के रणनीतिक रूप से संवेदनशील “चिकन नेक” क्षेत्र के पास स्थित लालमोनिरहाट में बांग्लादेश के द्वितीय विश्व युद्ध के समय के एयर बेस पर अपनी नजर गड़ाए हुए है। यह एयर बेस सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब स्थित है। चिकन नेक पश्चिम बंगाल में एक संकीर्ण, 20 किलोमीटर चौड़ी पट्टी है, जो मुख्य भूमि भारत को उसके पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ती है। कॉरिडोर के अत्यधिक रणनीतिक महत्व को देखते हुए, इस क्षेत्र में किसी भी संभावित चीनी गतिविधि से भारतीय सुरक्षा हलकों में चिंता पैदा होना तय है। बता दें कि चीन ने 2018 की शुरुआत में ही लालमोनिरहाट हवाई पट्टी में रुचि दिखाई थी प्रधान मंत्री शेख हसीना की सरकार ने बड़े पैमाने पर चीनी पहल का विरोध किया था। शेख हसीना ने चीन के प्रस्ताव को किया खारिज: साल 2019 में शेख हसीना ने बांग्लादेश के पहले विमानन विश्वविद्यालय, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान एविएशन एंड एयरोस्पेस यूनिवर्सिटी की स्थापना की घोषणा की, जिसका स्थायी परिसर लालमोनिरहाट में बनाने की योजना है।कोविड-19 महामारी और आर्थिक चुनौतियों ने परियोजना की प्रगति को और धीमा कर दिया. हसीना प्रशासन के सूत्रों के अनुसार, चीन ने अनौपचारिक रूप से लालमोनिरहाट परिसर को ऋण के आधार पर वित्तीय मदद देने का प्रस्ताव रखा, हालांकि, हसीना ने कथित तौर पर इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, और संवेदनशील बुनियादी ढांचे में चीन को शामिल न करने का विकल्प चुना।
यूनुस की सह से चीन की चालबाजी शुरू: लेकिन मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली नवगठित अंतरिम सरकार के तहत सरकार का रवैया बदल गया है। पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद, यूनुस ने चीन का दौरा किया, जहां उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा शुरू की। सूत्रों ने पुष्टि की कि व्यापार और रणनीतिक सहयोग एजेंडे में थे, जिसमें विशेष आर्थिक क्षेत्रों और आम के आयात जैसे कृषि व्यापार पर बातचीत शामिल थी. सबसे खास बात यह है कि अपनी यात्रा के दौरान, यूनुस ने बीजिंग में टिप्पणी की कि चीन बांग्लादेश को हिंद महासागर के लिए एक रणनीतिक प्रवेश द्वार के रूप में उपयोग करके भारत के भूमि से घिरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार कर सकता है। चीन की दखल से बढ़ी भारत की चिंता: इस टिप्पणी ने भारतीय पूर्वोत्तर राज्य के नेताओं और रणनीतिक विश्लेषकों की चिंता को बढ़ा दिया है, जो इसे क्षेत्रीय संतुलन को बदलने वाले संभावित रूप से देखते हैं। सूत्रों ने बताया कि मौजूदा प्रशासन के तहत चीन ने तीस्ता बैराज परियोजना में भी नई दिलचस्पी दिखाई है, जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा है। यूनुस के नेतृत्व में चीन और बांग्लादेश के बीच यह बढ़ती भागीदारी किस दिशा में आगे बढ़ेगी, यह देखना अभी बाकी है, लेकिन फिलहाल, नई दिल्ली और अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक हलकों में इस घटनाक्रम पर कड़ी नजर रखी जा रही है। पाकिस्तान पर सटीक हमला को लेकर भारत की यह रणनीति इजराइल की 'मौइंग द ग्रास' नीति से मिलती-जुलती है - यानी दुश्मन को पूरी तरह खत्म करने की जगह, समय-समय पर उसकी ताकत को काटते रहना. जैसे इजराइल हमास और हिज्बुल्ला से शांति की उम्मीद नहीं करता, वैसे ही भारत ने अब मान लिया है कि पाकिस्तान से आतंकवाद खत्म नहीं होगा - लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। चुनौतियां क्या हैं आगे?: गुप्त रूप से छिपना: आतंकियों को अब लगातार छिपकर रहना होगा, जिससे उनकी कार्यक्षमता कम हो सकती है, लेकिन भारत की खुफिया क्षमताओं को और मजबूत करना होगा।
देश की उम्मीदें: मोदी सरकार की कड़ी नीति से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं. हर हमले के बाद जवाब की मांग अब आम हो गई है।
राजनीतिक और कूटनीतिक संतुलन: सिर्फ सैन्य जवाबी कार्रवाई काफी नहीं होगी. भारत को आर्थिक, कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान पर दबाव बनाना होगा - जैसे आतंकवाद की फंडिंग रोकना या सिंधु जल संधि जैसे मुद्दों पर रणनीतिक फैसले लेना। ( हिंदुस्तान की सरहद से अशोक झा )
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