के के उपाध्याय
आतंकियों के हिमायती कूद पड़े हैं मैदान में । सोशल मीडिया पर पिले हुए हैं । आतंकियों ने धर्म पूछकर हत्याएं की हैं । अब इनका नेगेटिव सेल एक्टिव हुआ है । इनकी संवेदनाएं मरी हुई हैं । यह लोग घटना से हतप्रभ नहीं है । इन्हें तकलीफ है कि मीडिया यह क्यों दिखा रहा है कि धर्म पूछकर गोली मारी ? कलमा पढ़ने को कहा ? चिंदी भर टोली के लोग इसे गोदी मीडिया कह रहे हैं । यह वही लोग हैं जो सेना के शौर्य का हिसाब मांगते हैं । सबूत मांगते हैं । सत्य को देखकर आँखें मूँदने की इनकी आदत रही है । यह वर्तमान को नकारते हैं । इतिहास ग़लत बताते हैं । दरअसल सब कुछ धर्म / मज़हब के आधार पर करते हैं ।इनकी रुदाली एक तरफ़ा रोती है । एक तरफ़ा इनकी टोली सवाल उठाती है । इन्हें मुज्जफरपुर के दंगे दिखते हैं ..? मुर्शिदाबाद में आँखें बंद हो जाती है । आत्मा मर जाती है । इन्हें जातिगत हत्याएं नज़र आती हैं । वहाँ नेताओं का पर्यटन शुरू हो जाता है । मुर्शिदाबाद एक भी माई का लाल नहीं जाता । डर लगता है । वोट बैंक का सवाल है । वे लोग मज़हब के नाम पर एक हैं । फिलिस्तीन पर हमला होता है तो इस्लाम पर हमला बताते हैं । उनका हर वार जायज़ नज़र आता है । हिन्दू की जान की क़ीमत ही क्या है ? यह तो काफ़िरों की हत्या है ? जन्नत के दरवाजे खुलेंगे । 72 हूरें मिलेंगी । अब वक्त आ गया है । जागने का । जगाने का । जयचंदों को पहचानने का । कोरी ढपली मत बजाइए । मौतों पर झुनझुना मत झंकारिए । हम इसी उदारता में 800 साल गुलाम रहे । पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 18 बार पराजित किया । हर बार माफ किया । गौरी ने एक ही बार पराजित किया। माफ नहीं किया । दुश्मन को माफ नहीं किया जाता । ज़हरीले सांप का फ़न कुचला जाता है । इतिहास से सबक लेने का वक्त है । हमारे बीच सोए नागों को पहचानने का वक्त है । भाई चारे का भौंपू एक तरफ़ा नहीं बजेगा । यह माफ़ी का वक्त नहीं । देश इंतजार नहीं कर सकता । देश को जवाब चाहिए । रक्त की एक एक बूँद का हिसाब चाहिए । सिंदूर जो मिटाएँ हैं , उनका बदला चाहिए । इन दो मुँहे नागों से दूर रहिए । यह बरगलाएंगें । बहकाएँगे । गंगा की धार तर्पण माँग रही है । बलिदान व्यर्थ न होने पाए । गृहमंत्री रात को ही कश्मीर पहुंच गए । प्रधानमंत्री ने सऊदी का दौरा बीच में ही रद्द कर दिया । देश वापस लौट आए । वक्त आ गया है । देश की पुकार है । कुछ कर डालिए । देश आपके साथ है । हाँ माँगेंगे कुछ लोग सेना के शौर्य का हिसाब । मांगने दीजिए । यह रीढ़ विहीन लोग हैं । इनकी कौन सुनेगा । देश की सुनिए । देश ग़ुस्से में जो है….। अब तो जयचंदों को पहचानिए …अपने पृथ्वीराज को बचाइए ।
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