नियाग्रा फॉल को बिल्कुल निकट से देखने का मन बनाकर हमने क्रूज का टिकट पहले से ही बुक करा लिया था। लेकिन जहाज पर जाने से पहले हमें दो लिफ्टों का इस्तेमाल करना पड़ा। पहली दूसरे के पास ऊंचाई पर पहुंचाती है जबकि दूसरी नदी की तलहटी यानी किनारे नीचे ले जाती है। यह 175 फीट नीचे वहां उतारती है जहां पर जहाज खड़े रहते हैं। इस लिफ्ट के ऊपर एक बड़ा सा प्लेटफार्म बना है।
जिसे ऑब्जरवेशन टावर कहा जाता है। जब तक लिफ्ट में सवार नहीं होते, तब तक अपने चारों तरफ का नजारा देखने का पूरा अवसर था। नदी में जाते हुए जहाज, झरने, पार्क में टहलते लोग, अमेरिका- कनाडा के बीच बने पुल से आवाजाही करते वाहन, सब कुछ हमारी आंखों के दायरे में था।
फोटोग्राफी का मुझे यह सर्वोत्तम स्थान लगा। क्योंकि सब कुछ काफी ऊपर से दिख रहा था। इसलिए मोबाइल तरह-तरह के कोणों से तस्वीरें खींचने में व्यस्त रहा।
लिफ्ट में सवार होने के लिए लाइन लगी थी। वहां से बाहर निकले तो रेनकोट सबको दिया गया। यह क्रूज़ दो मंजिला था। मेरा अनुमान था कि पांच छह-छह सौ लोग उस पर सवार रहे होंगे।
अधिकतर यात्री अमेरिकन ही थे, यद्यपि हिंदुस्तानी भी दिखाई पड़ रहे थे । 30 मिनट का यह सफर झरनों को करीब से दिखाने का था। जहाज के सफर को मेड आफ द मिस्ट नाम दिया गया है। वह कैसे, यह आगे समझ में आया।
जहाज आगे बढ़ा तो कनाडा के पर्यटक भी आसपास नजर आए। जिस प्रकार दोनों देशों के जहाजों पर अलग-अलग झंडा था, उसी प्रकार रेनकोट का कलर भी अलग-अलग था। अमेरिका की तरफ के लोग नीला और कनाडा की ओर वाले गुलाबी रेनकोट में दिखाई पड़ रहे थे।
रेनकोट पहनकर नहाने का लुत्फ उठाया
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हमारा जहाज ज्यों-ज्यों झरनों की ओर बढ़ने लगा, नीले शांत पानी में हलचल तेज होती गई। धीरे-धीरे झरने के पानी का शोर, हवा का वेग बढ़ता ही चला गया। हम झरनों के बेहद करीब पहुंचे, तो इस शोर में जहाज पर सवार पर्यटकों का उत्साह भी सम्मलित हो गया।
पराकाष्ठा तो तब हुई जब हमारी आंखें कुछ भी देख पाने में असमर्थ हो गईं। जब थोड़ा देखने की कोशिश की तो रेनकोट के ऊपर पानी की तेज बौछार और हवा के झोंके से सिर्फ धुंध ही धुंध नजर आ रहा था। जब तक हमारा क्रूज झरनों के तेज प्रवाह की जद से बाहर नहीं निकल आया, तब तक अपने स्थान पर खड़े रहना भी सरल नहीं था।
बस इतना कहा जा सकता है कि झरने के पानी ने रेनकोट पहनकर नहाने का अवसर दे दिया था । मैंने सोच रखा था कि नियाग्रा फाल देखने बार-बार तो आना नहीं है, अच्छे से अच्छा फोटो और वीडियो अपने पास होना चाहिए । लेकिन ऐसा संभव कहां हुआ? पानी औेर हवा ने मोबाइल को स्थिर ही नहीं रहने दिया। कहां तो अच्छे दृश्यांकन की कल्पना कर रखी थी, कहां मोबाइल का कोण ही बदल गया। उसमें सिर्फ धुंध ही धुंध दिख रहा था। इस तरह मेरी योजना पर पानी फिर गया ।
अब तक मुझे मिस्ट ( धुंध) का मतलब समझ में आ गया था । अगर कोई पूछे कि नियाग्रा फॉल बिल्कुल पास से कैसा दिखता है तो यही कहना पड़ेगा कि कुछ दिखता ही नहीं है जनाब। ईश्वर- आत्मा की तरह ही अनिर्वचनीय शब्द उपयुक्त होगा। परंतु यह तुलना हास्यास्पद है। क्योंकि झरना तो हम कुछ दूर से देख ही रहे थे।
यह क्रूस का सफर ही नियाग्रा पर्यटन की जान है । झरनों के पास से गुजर कर किनारे पहुंचे तो मुझे याद आया कि नियाग्रा को विश्व का आठवां आश्चर्य कहा जाता है। इसे विश्व का सबसे बड़ा झरना भी इस अर्थ में कहा जाता है कि जल प्रवाह और उसकी मात्रा अन्य झरनों से इसमें सर्वाधिक है।
बताया जाता है कि यहां प्रति सेकंड सात लाख गैलन से अधिक पानी बहता रहता है। अगर इसकी गति की कल्पना की जाए, तो पानी की रफ्तार 25 मील प्रति घंटे की हो जाती है।
यही झरने की महत्वपूर्ण विशेषता है। शायद इन्हीं सब आकर्षणों से हॉलीवुड की फिल्मों के लिए यह एक अच्छा लोकेशन भी माना जाता है । जाड़े के दिनों में कभी-कभी झरना जम भी जाता है। तब भी पर्यटकों के बीच अलग तरह का मजा है।
नियाग्रा फॉल की ऊंचाई को लेकर आंकड़े भिन्न-भिन्न बताए जाते हैं। कहीं इसे 167 फीट, तो कहीं 188 फीट बताया गया है । जबकि नियाग्रा नदी की औसत गहराई 185 फीट है। अलग-अलग स्थानों की ऊंचाई के कारण संभवतः यह अंतर दिखाई पड़ता है।
नियाग्रा सिर्फ पर्यटन के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि
इसके पानी का और भी इस्तेमाल किया जाता है। इसका जल मोटे तौर पर अमेरिका और कनाडा के दस लाख लोगों की जरूरतें पूरी करता है। अमेरिका का चौथा सबसे बड़ा बिजली संयंत्र नियाग्रा के पानी के भरोसे संचालित होता है।
इस बीच किनारे लग चुके क्रूज से उतरने वाले लोग अपना रेनकोट वहां रखे कूड़ेदान में फेंकते जा रहे थे। लोगों का अनुसरण मैंने भी किया। यह नहीं मालूम कि इसे ले जाने की अनुमति है अथवा नहीं।
और लाजवाब मैंगो लस्सी
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घूमते- घूमते जब शाम के चार बज गए, तो खाने की सुधि आई । पार्क से बाहर निकलकर सड़क पर पहुंचे। जहां स्थायी दुकानों के अलावा भी पहिए पर कई दुकानें थीं। इनको स्ट्रीट फूड कॉर्नर नाम दिया जा सकता है।
एक दुकान पर दोसा हट नाम देखकर आकर्षित हुआ। सबने अपनी-अपनी पसंद बताई और मैंने मसाला डोसा और मैंगो लस्सी का चयन किया। दुकानदार भारतीय थे और नॉनवेज का भी कोई चक्कर नहीं था। जहां तक स्वाद का सवाल है, दोसा तो सामान्य ही लगा, लेकिन मैंगो लस्सी मन भाई। नन्हें रिवांंश जी को भी यह लस्सी खूब ही पसंद आई ।
यहां कुछ लोग खड़े होकर तो कुछ आसपास रखी बेंचों पर बैठकर खा-पी रहे थे। बिल्कुल अपने देश जैसा दृश्य था। घर वापसी के लिए कार पार्किंग में जाने से पूर्व हम सब ने पार्क के गेट पर बैठकर आइसक्रीम खाई। पांडेय जी का यात्रा में शामिल होना दोनों परिवारों के लिए उल्लासपूर्ण बन गया। यहां से पांडेय जी कनाडा रवाना हो गए और हम रोचेस्टर की ओर।
कुल मिलाकर नियाग्रा फॉल कैसा लगा, इसके जवाब में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि जिस कृति को कुदरत ने अपनी छेनी- हथौड़ी से काट- छांट कर मनोरम रूप दिया है, उस सौंदर्य का सम्यक निरूपण कर पाना थोड़ा कठिन जरूर है। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
समाप्त......
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