रोचेस्टर में मेरे लिए हाइलैंड पार्क ही वह स्थान है , जहां अलग-अलग मौसम में प्रकृति सुंदरी के बदलते हुए कलेवर को करीब से देखने का अवसर मिला है ।
घर से करीब 16 किमी दूरी वाले पार्क में सबसे पहले मैं यहां अक्टूबर महीने में आया था। तब हवा में ठंडक तो थी, लेकिन अमेरिकन लोगों के अनुसार कायदे से जाडा. अभी शुरू नहीं हुआ था। पेड़ों पर पत्तियों का रंग बदल रहा था। कुछ लाल- हरी, तो कुछ गुलाबी रंग वाली पत्तियां शाखाओं पर इतरा रही थीं। यहां तक कि कुछ जमीन पर गिरकर रंग-बिरंगी कालीन जैसी छवि को आभाषित कर रही थीं।
पार्क के प्रवेश द्वार पर हम पहुंचे ही थे , तो वहां शादी के निमित्त एक जोड़ा मौजूद दिखा। दूल्हे के साथ सभी पुरुष काले रंग के सूट और टाई में सज्जित थे जबकि दुल्हन और सभी महिलाएं सफेद परिधान में थीं। इसे संभवत: शादी का ड्रेस कोड ही कहना चाहिए। कुल 25- 30 लोग थे।
ना बैंड बाजा, न शोर-शराबा। दूल्हे के साथ नाचने वाले दोस्तों की कल्पना करना भी यहां मुनासिब नहीं होगा। सब कुछ सादगी भरा। दिखावा- प्रदर्शन जैसी कोई चीज नहीं। ऐसे में फिजूलखर्ची का तो प्रश्न ही नहीं उठता ।
अपने देश के हिसाब से कहें तो शादी जैसा माहौल यहां बिल्कुल नजर नहीं आ रहा था। कुछ पोशाक अलग नजर आने कारण और कौतूहलवश मेरी दृष्टि उन पर जा पड़ी थी फिर वे अपने रास्ते चले गए और हम अपने।
पार्क में हम आए थे अपने लिटिल मास्टर रिवांंश जी की फोटोशूट कराने के लिए । उनका काम खत्म हुआ तो उद्यान में थोड़ा-बहुत घूम फिर कर बाहर निकल आए।
दूसरी बार हम जनवरी में इस उद्यान में पहुंचे थे। तब पेड़ों की रंगीन पत्तियां गायब थीं। अगर सौंदर्य बोध वाली दृष्टि से निरूपित करना हो, तो वृक्ष के नाम पर कुछ था तो तना और शाखाएं। वह भी हिम से आच्छादित। यानी ठंड में घूमने की बात तो छोड़ दीजिए वहां टिके रहना भी हमारे लिए बड़े हिम्मत का काम था।
हो सकता है अमेरिकियों के लिए यह इतनी बड़ी बात ना हो। इस प्रतिकूल वातावरण में भी इस पार्क का एक हिस्सा तब भी दर्शनीय था। नाम था लैंबर्ट कंजरवेटरी।
यहां पर जलवायु अनुकूलन के साथ देश-विदेश से लाकर रखे गए वे पौधे हैं, जो सामान्य तौर पर बाहर नहीं होते।
जिज्ञासु प्रकृति वाले उनके नाम और रूप को ठीक से देख और पढ़ रहे थे। मैं अनाड़ी पौधों को देखता हुआ और लोगों की गतिविधियों पर गौर करता हुआ आगे चल रहा था । जालियों और शीशों से आच्छादित इस स्थान पर सभी पेड़-पौधों के संरक्षण की सुंदर व्यवस्था दिखी। यहां पेड़ पौधों के अलावा कई प्रजाति की छोटी चिड़िया , कछुए भी थे।
यह कंजरवेटरी 1911 में शुरू की गई थी । अंदर का मौसम बड़ा सुखद लगा पर बाहर निकलते ही फिर वही ठंड से शामत।
तीसरी बार जब हम हाइलैंड पार्क पहुंचे , तब जून का महीना था। सचमुच बड़ा ही सुहाना मस्त मौसम। तुलसी के शब्दों में अगर बयां करना हो तो यही कि..... मध्य दिवस अति सीत न घामा। बिल्कुल मनोनुकूल। 1888 में आरंभ किए गए पार्क का डिजाइन फ्रेडरिक ला ओल्मस्टेड द्वारा बनाया गया है।
बागवानी प्रेमी जार्ज इलवेंजर और पैट्रिक बेरी ने अपनी 20 एकड़ जमीन रोचेस्टर प्रशासन को दान में दी थी। जिसके परिणाम स्वरुप यह पार्क आम लोगों को मिला।
इसे वानस्पतिक उद्यान भी कहा जाता है । यहां जो भी पेड़-पौधे- फूल हैं, उनसे अधिकांश से हम अपरिचित ही हैं । यहां 500 प्रकार की फूलों वाली झाड़ियां हैं। एक गुलाब ही पहचान में आता है।
पार्क का नाम हाइलैंड है । यानी ऊंचाई पर बना पार्क। लेकिन यह स्थान समतल नहीं है। कहीं ऊंचाई पर चढ़ना पड़ता है, तो कहीं नीचे की तरफ। ऐसे में लगता है कि कितना देखेंगे और कब तक देखेंगे। अब बस करना चाहिए यहीं से लौटना चाहिए। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश: .......
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