करीब 96 वर्ग किमी में अपनी काया को फैलाए रोचेस्टर शहर, सच पूछिए तो मुझे जंगल में बसा हुआ प्रतीत होता है । यह सही भी लगता है क्योंकि वन विभाग के अनुसार यहां एक लाख से अधिक पेड़ सार्वजनिक स्थानों पर हैं। इसके अलावा लोगों की अपनी जमीनों पर भी बड़े-बड़े पेड़ दिखते हैं । ऐसा कोई मकान नहीं दिखता जहां पर पेड़ ना हों।
यहां जहां भी घूमने निकलो या तो पार्क या झरना आपको मिलेगा। कई जगहों पर दोनों एक साथ मिलते हैं। और दोनों जगहों पर वृक्ष तो बहुतायत में होंगे ही । पेड़-पौधों के मामलों में वैसे तो सभी पार्क एक जैसे ही लगते हैं, फिर उन पर क्या लिखना ।
लेकिन सभी उद्यानों में लोग घूमने जाते ही हैं ।
इसका मतलब तो यही हुआ कि हर उद्यान का अपना आकर्षण होता है। ऐसे ही मन में आया कि रोचेस्टर के उद्यानों पर भी कुछ लिखना चाहिए। अगर उन स्थानों पर जाना अच्छा लगता है , तो उनके बारे में लिखने से संकोच क्यों?
चैनिंग एच फिलब्रिक पार्क
-----------------------------------
रोचेस्टर के जिस इलाके में मैं आजकल रहता हूं , उसे पेनफील्ड्स कहा जाता है । इसी क्षेत्र में चैनिंग एच फिलब्रिक पार्क भी है । घर से महज साढे. आठ किमी (8.7) किलोमीटर की दूरी है। फिर भी यह दूरी पैदल तय करने लायक नहीं है। कार तो यहां के लिए भी निकालनी ही पड़ती है।
यात्रा शुरू करने के अगले बीस मिनट बाद हम अपने गंतव्य पर पहुंच गए थे। पार्किंग के पास ही एक बहुत बड़ा घास का मैदान था तो दूसरी तरफ पेड़ों- पत्थरों के बीच अपना रास्ता बनाते बहने वाला झरना। यह पानी कहां से आ रहा था और कहां जा रहा था, इसका तो पता नहीं चल पाया। हां जहां हम लोग थे वहां पानी अधिक गहरा नहीं था। कुछ लोग पानी में उतरे हुए थे जिनमें बच्चे कहां पीछे रहने वाले थे । पानी में मछलियां थीं। कुछ ऐसे लोग भी थे, जो कांटा पानी में डाले शिकार फंसने का इंतजार कर रहे थे । मेरे सामने ही इक्का-दुक्का छोटी मछलियां उनके हाथ लगीं।
पानी सचमुच ठंडा था, फिर भी मैंने जूते- मोजे उतार दिए और पत्थरों पर पैर जमा- जमा कर कुछ दूर तक पानी में चलने का लुत्फ उठाया। यदि ऐसा न करता तो झरना देखने का क्या मतलब! चूंकि मिजाज पानी में चलने का बना था, इसलिए ठंडा पानी भी बुरा नहीं लग रहा था।
एक परिवार पानी के बिल्कुल करीब पेड़ों के झुरमुट के नीचे कुर्सियां डाले बैठा हुआ था और बच्चे पानी में शरारते कर रहे थे। बिल्कुल अपने देश के बच्चों की तरह मिट्टी से खिलवाड़ कर रहे थे।
मैं यही सोच रहा था कि इस परिवार ने बैठने की क्या खूब जगह चुनी है। घर से कुर्सी लाई गई होगी। मौज लेने का क्या खूब अंदाज था। आगे बढ़ने पर झरने के आसपास खूब सारे पेड़ थे । उनके बगल से पगडंडी गुजरती देखकर कुछ दूर तक हम भी चले , लेकिन उसका कोई सिरा पता नहीं चला।
कुछ लोग जरूर पगडंडियों पर आते-जाते दिख रहे थे। फिर वहां से वापस आकर घास के मैदान में बैठ गए। यहां पर या तो खेलते हुए बच्चों का शोर था या झरनों का। वैसे मुझे दोनों ही अच्छे लग रहे थे।
यह सार्वजनिक उद्यान 19 एकड़ भूमि में फैला हुआ है । 1810 में स्थापित इस पार्क का नामकरण चैनिंग एच फिलब्रिक के नाम पर हुआ है। चैनिंग साहब पेनफील्ड्स के पूर्व नगर पर्यवेक्षक (टाउन सर्वेयर ) रह चुके थे। पहले इसे लीनियर पार्क के नाम से भी जाना जाता था। लौटते-लौटते पार्क में ही बने आकर्षक लकड़ी के पुल से कुछ तस्वीरें खींची और गाड़ी की ओर बढ़ गए।
क्रमश: ......
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/