14 नवंबर की तारीख बचपन से ही जेहन में है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू यानी कि चाचा नेहरु के जन्मदिन पर नार्मल स्कूल में पढ़ता था, वहां बाल मेले का आयोजन धूमधाम से होता था। चाचा नेहरू के कसीदे रटाए जाते थे, जो लड़का सुर में सुनाता था उसको पेंसिल का डिब्बा इनाम में मिलता था। पेंसिल के डिब्बे की लालच में एक बार मैने भी कविता रटी,जब बारी आयी तो कार्टूनिस्ट प्राण के मशहूर कामिक्स पात्र चाचा चौधरी का गुणगान करने लगा। बच्चे खूब हंसे, दो बेंत की सजा भी मिली। यह घटना बचपन के दिनों की है। चाचा नेहरू के बारे में दिमाग में मौजूद किताबी ज्ञान जम्मू-कश्मीर जाने के बाद पूरी तरह बदल गया। जम्मू पहुंचने के बाद बात चौथे दिन की है। मीटिंग की चाय के बाद शाम तक आफिस लौट आने की संभावना देखने के बाद आरएसपुरा जाने का फैसला किया। बस पकड़कर आरएसपुरा बाजार पहुंचने के बाद शक्तेश्वरगढ़ बार्डर आउट पोस्ट पर जाने के लिए आटो में सवार हुआ। उसमे सवार लोगों से खेती-किसानी की चर्चा छिड़ी तो पहले परिचय का आदान-प्रदान हुआ। अखबार का नुमाइंदा जानने के बाद लोगों के दिल से आजादी पाने के बाद जो पीड़ा घाव बनकर रिस रही थी ऐसी निकली कि बता पाना मुश्किल है। आजादी के बाद यह पीड़ा इनके जेहन में रह-रह कर टीसती रहती है। साठ पार कर चुके सुलखान सिंह ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को इतनी भद्दी गाली देते हुए कहा कि वह चाचा नेहरू नहीं चालाक नेहरू था। चेहरे पर सफेद बाल संग झांकती झुर्रियों के मालिक सुलखान की तरफ देखा तो उनके आंखों से गुस्से की लालिमा साफ दिख रही थी। आजादी के जंग में सुलखान के पिता जी शहीद हो गए थे, उनका सपना था हिंदुस्तान की आजादी का । देश जब आजाद हुआ तो प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए हिंदुस्तान को दो टुकड़े में करके पाकिस्तान के रूप में नया देश बनाने कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों को कितनी दिक्कत रोजाना होती है, इसकी पीड़ा जुबान पर गुस्से संग दिखी तो संसदीय मर्यादा कहां बह गयी पता नहीं चला । आधे धंटे के रास्ते में सुलखान की तरह आधा दर्जन से ज्यादा लोग थे तो नेहरू और कांग्रेस को कोसने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे थे । दिमाग में वह मंजर घूम गया, जब कक्षा आठ में पढ़ने के दौरान चुनाव होने पर कांग्रेस का बिल्ला-पोस्टर लूटने के लिए मोहल्ले के लड़कों से मारपीट तक कर बैठता था। नेहरू के एडविना से प्रेमप्रसंग से लेकर पेरिस से कपड़ों की धुलाई सहित तमाम ऐसे किस्से आटो में सवार लोग सुना रहे थे, जैसे वह खुद चश्मदीद हो । सुलखान का कहना था कि आज आतंकवाद की समस्या के लिए नेहरू ही जिम्मेदार है। देश की आजादी के लिए जिन लोगों ने जान दी, उनकी कुर्बानी भूलकर नेहरू नामक नासपिट्ïटा पाकिस्तान की कीमत पर प्रधानमंत्री बना। आजादी के बंटवारे में सुलखान का आधा परिवार इधर था, सो वह अपनी संपत्ति छोडक़र इधर आ गए। ऐसा ही दर्द हर दूसरे शख्स के दिल से बाहर निकलकर अपनी बात कहने के लिए ऐसे-ऐसे शब्द सुनाई पडऩे लगा, जिसको लिखना ठीक नहीं है। चाचा नेहरू को लेकर देश के लोगों के दिलों में जो छवि बैठायी गयी है, उसके विपरीत निकली इस खबर को किस एंगिल से लिखा जाए कि छप सके। दिमाग में यह खिचड़ी पकने लगी थी, नेहरू को जितनी उपाधियों से नवाजा गया, उतनी किसी के मुंह से सुना नहीं था। पाकिस्तान बार्डर तक के सफर में हमसफर बने लोगों की बातचीत का रुख मोडऩे के लिए उनके नाते रिश्तेदारों के बारे में चर्चा शुरू की। सरहद पार सिसकते रिश्तों की दर्दभरी कहानी सामने आयी। उसकी ही खबर बनाने का दिमाग में फैसला किया। शाम को लौटने के बाद संपादक प्रमोद भारद्वाज से दिनभर का वाकया बताने के साथ रिकार्डेड बातचीत सुनायी। उनके लिए यह सामान्य बात लगी, बोले यहां तो नेहरू के प्रति तुम जो नजरिया देखे तो वह आजादी के बाद से हैं । इसमें कोई नई बात नहीं है। सरहद पार रिश्तेदारों से मिलने को वह कितना बेताब है, इस पर एक मानवीय एंगिल से स्टोरी फाइल कर दो। सरहद पार सिसक रहे रिश्तों की खबर फाइल करने के बाद रात को सो नहीं पाया। दिमाग में चाचा नेहरू के बारे में जम्मू-कश्मीर की धरती से निकले नए सच को लेकर सोचता रहा। दिल-दिमाग में ऐसे हिन्दुस्तान का नक्शा घूमने लगा, जिसमें पाकिस्तान और बांगलादेश भी होता। सोच को पंख लग गए थे, अखंड भारत की परिकल्पना के बाद यह सवाल खड़ा हुआ, क्या ऐसे हिंदुस्तान के सामने अमेरिका की चौधराहट चलती? ऐसे ढेरों विचार दिमाग में उमडऩे-घुमडऩे लगे, इसी सोच में कब नींद आ गई पता नहीं चला। सबेरे नींद खुली तो दिमाग में पहला सवाल उठा आज क्या करोगे बेटा दिनेश?
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khatm hone ko na aaegi kabhi kya ek ujadi maang si ye dhool dhoosar raah ,ek din kya mujhi ko pee jaegi yeh safar ki pyaas aboojh athaah !!
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