भारत विभाजन के साथ मिली स्वाधीनता से कोई सबक न लेते हुए भारत की राजनीति आज तक तुष्टिकरण के आधार पर चलती रही है। मुस्लिम वोटबैंक को प्रसन्न करने के लिए बिहार का मुख्यमंत्री रहते तथाकथित समाजवादी लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को जेल में डाल दिया, उससे एक कदम आगे बढ़ते हुए मुलायम सिंह ने निहत्थे रामभक्तों को गोलियों से भुनवा दिया, कांग्रेस साम्प्रदायिक हिंसा बिल ले आई। वही अब बंगाल में मुर्शिदाबाद के भरतपुर से टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर पश्चिम बंगाल में बाबरी नाम से मस्जिद बनाने का दावा कर रहे हैं। हालाकि उनकी इस जिद के कारण से टीएमसी से उन्हें हाल ही में पार्टी से बाहर निकाला है, पर समस्या अभी समाप्त नहीं हुई है। उनके समर्थकों ने मुर्शिदाबाद में कई जगहों पर बाबरी नाम से मस्जिद बनाने के पोस्टर भी लगाए हैं। बात अब उस अमिता की है जिसमें सबसे बड़ा प्रश् न यह उठता है कि आखिर मुसलमान बाबर के नाम की माला क्यों जप रहे हैं, जबकि भारत एक पंथ निरपेक्ष देश है, जिसमें किसी भी अत् याचारी, हिंसा करनेवाले आततायी के लिए कोई जगह नहीं है। वैसे कोई भी मस्जिद बनाने के लिए से वतंत्र है, किंतु प्रश्न यही है कि इसके बाद भी बावर के नाम पर इस देश में मस्जिद के यों मुसलमान बनाना चाहते हैं। हुमायूं आज जो कह रहे हैं उस पर भी सभी को गौर करना चाहिए, वे कहते हैं, 'नाम पर आपत्ति कैसे है? अगर मेरा बेटा पैदा हो तो मैं उसका क्या नाम रखें, ये बताने वाले दूसरे कौन होते हैं। ये मेरे कौम का मामला है। कौम के लोग मदद कर रहे हैं।% बात एक दम साफ है, कौम के लोग मदद कर रहे हैं, इसलिए ये बाबर केनाम की फिर से मर्सजद भारत में बनाई जा रही है। वस्तुत-इतिहास में दर्ज घटनाएं उन तारीखों से नहीं मिटाई जा सकती जो बाबर के क्रूर अत् याचार की कहानी कहती हैं। भारत के इतिहास में अनेक आक्रांताओं ने आकर यहाँ के समाज, संस्कृति और परंपराओं पर गहरे घाव छोड़े हैं, हे हैं, परन्तु जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का नाम उनमें सबसे प्रमुख रूप रहा है। बाबर को लेकर जो वर्ग उसे एक आदर्श या गौरवपूर्ण चरित्र के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करता है, उसे एक बार उन तमाम प्रामाणिक इतिहास, विशेषकर बाबर की आत्मकथा बाबरनामा, गुलबदन बेगम का हुमायूँनामा और अनेक स्वतंत्र इतिहासकारों के विवरण जरूर देखने चाहिए। यह सभी से पष्ट करते हैं कि बाबर एक ऐसा विदेशी आक्रांता था जो भारत में सत्ता, लूट और धार्मिक (इस्लामिक) वर्चस्व स्थापित करने आया था। उसकी नीतियाँ, उसके सैन्य अभियान और उसकी मानसिकता का केंद्र बिंदु विरोध करने वाले काफिरों का विनाश और धन की लूट थी।बाबर का भारत पर आगमन उसके युद्ध केवल राजनीतिक महत्वाकांक्षा तक सीमित नहीं थे। बावर स्वयं अपने फतहनामे में लिखता है कि इस्लाम की खातिर जंगलों में भटका, हिंदुओं और मूर्तिपूजकों से युद्ध का संकल्प लिया और अंततः गाजी बना। यह कथन स्पष्ट संकेत देता है कि बाबर का अभियान धार्मिक इस् लामिक, जिहादी कट्टरता से प्रेरित था। खानवा की लड़ाई में राणा सांगा पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने स्वयं को गाजी घोषित किया, एक ऐसी उपाधि जिसका अर्थ है अन्य मत के अनुयायियों को मारने वाला। यह गौरवपूर्ण उपलब्धि नहीं है, यह तो हिंसा की मानसिकता की स्वघोषित स्वीकारोक्ति है। बाबर जहाँ-जहाँ गया, वहाँ उसने अपनी क्रूरता के निशान छोड़े। हुमायूँनामा में गुलबदन बेगम का वर्णन बाजौर के किले पर हुए उसके हमले का है, जिसमें लिखा है कि बाबर ने दो-तीन घड़ी में दुर्ग जीतकर सभी निवासियों को मरवा दिया क्योंकि वहाँ कोई मुसलमान नहीं था। यह कोई युद्ध नीति नहीं कही जा सकती, यह तो गैर मुसलमानों के प्रति धार्मिक असहिष्णुता का भयानक उदाहरण है। यही नहीं, बाबर के आदेश पर या उसके सेनापतियों की कार्रवाई से अनेक मंदिर ध्वस्त किए गए। संभल में मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किया गया, चंदेरी में मंदिर तोड़े गए और उरवा के जैन मंदिरों का विनाश किया गया।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिट्ठी लिखकर कहा है कि मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की तर्ज पर मस्जिद का निर्माण करना भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत अपराध है। वहीं संगठन ने पश्चिम बंगाल सरकार से निलंबित टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की अपील भी की है।
उन्होंने आरोप लगाया कि यह स्पष्ट रूप से एक दुर्भावनापूर्ण कृत्य है, जिससे हिंदू धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने की संभावना है।" कुमार ने कहा, "इसलिए हम आपकी सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 196 और 299 और कानून की अन्य प्रासंगिक धाराओं को लागू करते हुए विधायक हुमायूं कबीर और उनके सहयोगियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर कानून के अनुसार कार्रवाई करे।"गौरतलब है कि छह दिसंबर को, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के निलंबित नेता कबीर ने मुर्शिदाबाद जिले के रेजिनगर में अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बनाई जाने वाली मस्जिद की आधारशिला रखी थी। इससे अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले से ही ध्रुवीकृत पश्चिम बंगाल में राजनीतिक माहौल और गर्म हो गया। ( बंगाल से अशोक झा की रिपोर्ट )
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