पाकिस्तान, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के तहत भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति फैलाने की कोशिश कर रहा है। उल्फा के प्रमुख परेश बरुआ को चीन से लाकर ढाका में बसाने की योजना बनी है, जो भारत के लिए एक नई सुरक्षा चुनौती प्रस्तुत करती है।
पाकिस्तान भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अशांति फैलाने की पुरानी रणनीति को फिर से जीवित करने की कोशिश में जुट गया है। सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) शेख हसीना के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के दौर में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है। पाकिस्तान की रणनीति पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद को फिर से जिंदा करने की है। इस कड़ी में सबसे बड़ा नाम है यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा-आई) के प्रमुख परेश बरुआ का। पाकिस्तान बरुआ को चीन से लाकर ढाका में बसाने की योजना बना रहा है।यह खुलासा ऐसे समय में हुआ है जब बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद भारत के साथ संबंधों में तनाव बढ़ा है। मामले से परिचित लोगों के मुताबिक, पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने बांग्लादेश में मौजूदा अंतरिम व्यवस्था के तहत अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। आरोप है कि पाकिस्तान बांग्लादेश के फरवरी में प्रस्तावित चुनावों में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी को परोक्ष समर्थन दे रहा है, ताकि भविष्य में उसके अनुकूल सरकार बन सके।परेश बरुआ: उल्फा का कट्टर नेता और पाकिस्तान का पुराना साथी
परेश बरुआ को परेश असम के नाम से भी जाना जाता है। वह उल्फा के संस्थापक सदस्यों में से एक है। 1979 में गठित उल्फा ने असम को भारत से अलग करने के लिए सशस्त्र संघर्ष शुरू किया था। संगठन का विभाजन 2011 में हुआ, जब अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाला गुट बातचीत के लिए आगे आया, लेकिन बरुआ ने उल्फा-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) बनाकर संघर्ष जारी रखा। बरुआ का पाकिस्तान से पुराना रिश्ता है। 1990 के दशक में आईएसआई ने उल्फा कैडरों को पाकिस्तान और अफगानिस्तान में ट्रेनिंग दी। बरुआ खुद कराची का नियमित दौरा करता था। 2004 के चटगांव हथियार तस्करी कांड में भी उसका नाम सामने आया, जहां 10 ट्रकों में भारी मात्रा में हथियार (27,000 ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर, लाखों गोलियां) उल्फा के लिए भारत भेजे जाने थे। इस मामले में बांग्लादेश की अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई थी। शेख हसीना की सरकार ने उग्रवादी समूहों पर सख्ती की और कई उल्फा नेताओं को भारत सौंपा। बरुआ ने बांग्लादेश छोड़कर म्यांमार और फिर चीन के युन्नान प्रांत में शरण ले ली। वर्तमान में वह चीन-म्यांमार सीमा के पास रह रहा है जहां चीन उसे संरक्षण दे रहा है।
ढाका को फिर से ‘सेफ हेवन’ बनाने की कोशिश: बांग्लादेश मामलों के जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान की कोशिश है कि ढाका में एक ऐसी सरकार सत्ता में आए, जो भारत विरोधी उग्रवादी संगठनों को फिर से पनाह दे सके। यह वही मॉडल है, जिसे पहले बीएनपी-जमात सरकार के दौरान अपनाया गया था, जब भारत के पूर्वोत्तर में सक्रिय कई उग्रवादी संगठन बांग्लादेश से ऑपरेट करते थे। सूत्रों के अनुसार, इसी रणनीति के तहत ULFA (इंडिपेंडेंट) प्रमुख परेश बरुआ को बांग्लादेश वापस लाने की तैयारी की जा रही है, ताकि वह वहां से भारत के खिलाफ गतिविधियां संचालित कर सके।
चीन कर रहा बरुआ की मदद: लगातार मिल रही
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने परेश बरुआ की आवाजाही में मदद की है। उसे म्यांमार-अरुणाचल सीमा के पास स्थित रूइली से चीन के युन्नान प्रांत के शीशुआंगबन्ना दाई क्षेत्र में शिफ्ट किया गया है। दोनों ही इलाके रणनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाते हैं और दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़े हुए हैं। अब दावा किया जा रहा है कि अगला कदम उसे चीन से बांग्लादेश भेजने का हो सकता है। इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं। भारत के लिए सुरक्षा चुनौती एजेंसियां सतर्क: भारत सरकार और सुरक्षा एजेंसियां इस घटनाक्रम पर नजर रख रही हैं। पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करने के प्रयासों (जैसे उल्फा के प्रो-टॉक गुट से समझौता) के बावजूद बरुआ गुट अभी भी सक्रिय है। हाल के वर्षों में म्यांमार में उसके कैंपों पर ड्रोन हमले हुए, जिसमें उसके कमांडर मारे गए। चीन और पाकिस्तान का समर्थन मिलने से यह खतरा बढ़ सकता है। इन घटनाक्रमों को लेकर भारत की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां पूरी तरह अलर्ट पर हैं। माना जा रहा है कि यदि बांग्लादेश एक बार फिर भारत विरोधी उग्रवादियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बनता है, तो इसका सीधा असर पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा स्थिति पर पड़ेगा। इसी बीच अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे और सलाहकार सजेब वाजेद जॉय ने अंतरिम सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि ढाका में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार देश को इस्लामिक शासन की ओर ले जाने की कोशिश कर रही है और इससे भारत की सुरक्षा को भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है। 54 वर्षीय सजेब वाजेद जॉय ने कहा कि यूनुस सरकार जमात-ए-इस्लामी और अन्य इस्लामी पार्टियों को खुली छूट दे रही है और चुनाव में धांधली कराके इनको सत्ता में लाने की कोशिश कर रही है। वाजेद फिलहाल अमेरिका में रहते हैं। यह इंटरव्यू ऐसे समय में सामने आया है जब भारत ने बांग्लादेश में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और भारतीय उच्चायोग को धमकी देने वाले चरमपंथी तत्वों की गतिविधियों पर गंभीर चिंता जताते हुए ढाका के उच्चायुक्त को तलब किया।
पाकिस्तान से बढ़ती नजदीकी पर चिंता
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकियों को लेकर पूछे गए सवाल पर जॉय ने कहा कि यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। उनके अनुसार, अवामी लीग की सरकार के दौरान भारत की पूर्वी सीमाएं आतंकवाद से सुरक्षित थीं। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे पहले के दौर में बांग्लादेश का इस्तेमाल भारत में विद्रोह और आतंकवाद फैलाने के लिए किया जाता था, और अब वह स्थिति दोबारा लौट सकती है।
बांग्लादेश को असफल इस्लामिक राज्य की ओर धकेला जा रहा- वाजेद
शेख हसीना के खिलाफ सुनाई गई मौत की सजा के बाद दिए गए अपने बयानों को दोहराते हुए जॉय ने कहा कि बांग्लादेश तेजी से एक असफल इस्लामिक राज्य की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यूनुस सरकार ने जमात-ए-इस्लामी और अन्य इस्लामिक दलों को खुली छूट दे दी है।
जॉय के मुताबिक, बांग्लादेश में इस्लामिक पार्टियों को कभी भी पांच प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले हैं, लेकिन अवामी लीग और अन्य प्रगतिशील व उदारवादी दलों को चुनाव से बाहर रखकर एक धांधली भरा चुनाव कराया जा रहा है, ताकि इस्लामिक ताकतों को सत्ता में स्थापित किया जा सके।
भारत से लोकतंत्र की बहाली में सक्रिय भूमिका की अपील
भारत की भूमिका पर सवाल के जवाब में सजेब वाजेद जॉय ने कहा कि नई दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर बांग्लादेश में लोकतंत्र की वापसी के लिए ज्यादा सक्रिय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की सबसे बड़ी पार्टी अवामी लीग और तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जातीय पार्टी (जातीय पार्टी) को चुनाव से बाहर करना, आधे से ज्यादा मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने जैसा है। उनके अनुसार, ऐसे हालात में होने वाला चुनाव लोकतांत्रिक नहीं बल्कि पूरी तरह से धांधली भरा होगा।
शेख हसीना के प्रत्यर्पण पर भारत से अपेक्षाएं
बांग्लादेश द्वारा शेख हसीना के प्रत्यर्पण की औपचारिक मांग किए जाने पर जॉय ने कहा कि किसी भी कानूनी प्रत्यर्पण के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। उन्होंने आरोप लगाया कि बांग्लादेश में उनके खिलाफ मामलों में पूरी तरह से ड्यू प्रोसेस का अभाव रहा और उनकी मां को अपने वकीलों से संपर्क तक की अनुमति नहीं दी गई। ऐसे में, जॉय का मानना है कि भारत को इस मामले में कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है।
भारत पर आतंकी खतरे का दावा
दिल्ली में हालिया आतंकी गतिविधियों और बांग्लादेश में लश्कर-ए-तैयबा के स्थानीय सेल के बीच संबंधों के सवाल पर जॉय ने कहा कि उन्हें यह जानकारी गोपनीय सुरक्षा सूत्रों से मिली है। उन्होंने चेतावनी दी कि बांग्लादेश में आतंकी प्रशिक्षण शिविर फिर से सक्रिय हो चुके हैं, अल-कायदा के जाने-माने आतंकी वहां सक्रिय हैं और पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के कमांडरों ने खुले मंचों से भाषण दिए हैं। उनके अनुसार, इससे भारत और पूरे क्षेत्र के लिए खतरा तत्काल और वास्तविक है। ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
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