गुनगुनी धूप के मौसम में हरी मटर के आने से सब्जी मंडी की रौनक़ ठीक वैसे ही है जैसे बहने बेटियां मायके आई हो जिनका पूरा मोहल्ला अपना होता है।
सर्दियों के आते ही हमारी थाली के व्यंजन बदलने लगते हैं जिनमे हऱ रोज़ किसी न किसी रूप में हरी मटर का जलवा बिखरा ही रहता है किन्तु घुघनी के साथ साथ जिस पर दीवानगी सर चढ़ कर बोलती है वो निमोना है।
निमोना सर्दियों की सौगात हैं। उत्तर प्रदेश के अवधी इलाके से निकला ये व्यंजन अपनी लोकप्रियता के चलते न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार के साथ साथ और भी कई राज्यों में लोकप्रिय है या यूं कहें कि यहां के लोग जहां भी बसे अपने स्वाद को जिंदा किए रहे ।
ज्यादातर अवधी व्यंजन अपनी नजाकत और नफासत के लिए जाने जाते हैं जिनमे उम्दा मसालों की खुशबू ही उस व्यंजन की जान होती है अवध के आबोहवा में गंगा जमुनी तहजीब गलबहियां किए आगे बढ़ती है निमोना बिल्कुल गुलावटी कबाब की तरह मुलायम जिसमे दांत को ज्यादा चबाने की जरूरत नहीं जो जुबान से हलक के बीच की दिलकश दूरी ऐसे तय करें जिसमे वक्त का कोई फासला न हो जो फिरनी की तरह गाढ़ा और लजीज हो और कीमें की तरह हर उम्र वालो के लिए बेहद आसान हो। ये सारी खूबियां मटर के निमोने में एक साथ ऐसे गुथी हुई होती जैसे ये व्यंजन न होके स्वाद की कोई खूबसूरत सी क्यारी हो।।
इसकी शुरुआत कैसी हुई ये कह पाना प्रमाणिक रूप से कठिन है किंतु अपने भोजन के स्वाद और अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध अवध की ज़मी जो हमेशा से हर उम्र के लोगों के लिए नए नए स्वाद गढ़ते रहे उन्हीं में से एक निमोना भी ईजाद हुआ होगा जैसे कभी कबाब कमजोर हो रहे दांत वालो के लिए ये तैयार किया गया।
निमोना ऐसे ही लोगों की खास पसंद नहीं पिसे हुए मटर के दाने भुनते हुए जब गर्म मसालों में घुलते हैं उसकी रंगत और तासीर को शब्दो में बयां करना बेहद कठिन है निमोना सदियों से बनता आ रहा है ये तब भी थे जब मिक्सी नही थी सिल लोढ़ा पे मटर के दाने चलते हुए हाथों के साथ कलाइयों की चूड़ियों से वार्तालाप करते उधर कड़ाही चूल्हे पर बैठ कर प्रतिक्षा करती और जब मसालों के साथ इसे भूना जाता तो भूख तृप्ति के साथ नृत्य करती हुई प्रतिक्षारत नजर आती।
अकेले निमोना बहुत दूर नहीं जा पाता जब इसे इस इलाके के खास चावल का साथ मिला तो मानो बहारों का मौसम आम की अमराई में उतर आया हो ये निमोना का मौसम वैसे ही है जैसे जल का प्यास के साथ, प्रेम का मिठास के साथ, सांसों का जीवन के साथ,और रोशनी का उजास के साथ है और यदि चावल में काला नमक हो जाय कहने ही क्या इसकी सुगंध भरी मिठास वो दौर भी देखें हैं जब लोग बासी निमोने और चावल पर इस कदर फिदा होते मानो उन्हे जीवन की सबसे बड़ी नियमत मिल गई हो।
धीरे धीरे काला नमक हमसे दूर होता गया किंतु इसकी भरपाई को बहुत हद तक कनकजीर पूरा कर रहा है।
आज से कुछ वर्ष पहले तक ज्यादातर घरों में मटर नवा के बाद खाई जाती थी नवा अर्थात नए उपज का सम्मान जिसमे मटर (गुदरी) मुख्य होता था। खेतो से तोड़कर आए मटर निकलने से अधिक खा लिया करते थे और बची हुई फलिया बैल को खाने के लिए दिया जाता था। वो दौर खेती किसानी का स्वर्ण काल हुआ करता।
कहते हैं कोस कोस पर पानी बदले चार कोस पर बानी किंतु निमोना उत्तर प्रदेश के अवधी भोजपुरी या बिहार में जाकर भी नही बदलता और न ही इसके शौकीन।।
*यह है निमोना मेरी जान
मयंक श्रीवास्तव की कलम से ....
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