-जदयू में योगदान करते ही विरोधियों की बोलती हुई बंद
- अगर टिकट मिलता है तो एनडीए के हों सकते है सशक्त उम्मीदवार
- भाजपा , जनशक्ति पार्टी रामविलास, हम समेत अन्य दलों को एकजुट होकर प्रत्येक बूथ पर करना होगा कब्जा
- वर्तमान विधायक को मिला महागठबंधन से मिला टिकट तो भितरघात का बड़ा खतरा
- सुरजापुरी हिंदू मुसलमान चाहते है विधानसभा में उनकी आवाज बने यहां के प्रतिनिधि
श्री कृष्ण, गिरधर, गोपाल, कान्हा ये सभी एक ही नाम है। अपने जन्म के साथ ही वे धरती पर कई प्रकार की लीला करते हुए अंत में कंस का वध कर चैन की वंशी बजाते रहे। ठीक उसी प्रकार अपने नाम के अनुसार ही ठाकुरगंज के पूर्व विधायक गोपाल अग्रवाल ने एक बार फिर जनता दल यू यानि जदयू में योगदान के साथ ही क्षेत्र में राजनीतिक लीला प्रारंभ कर दिया है। वह भी यहां जहां करीब 58% मतदाता मुस्लिम समुदाय से हैं, जो इस क्षेत्र को सीमांचल की बाकी सीटों से जोड़ता है। इसके अलावा SC (5.44%) और ST (6.13%) मतदाता भी चुनावी समीकरणों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 96% से ज़्यादा आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, यानी यहां की सियासत अब भी खेत-खलिहान, सड़क, पानी, शिक्षा और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है। गोपाल अग्रवाल ने सबसे पहले जदयू में योगदान के दौरान ही उनका खुले मंच से विरोध करने वाले नेता
हाथ मिलाकर, माला पहनकर स्वागत करते नजर आए। उसके बाद बधाई देने वाला का तांता लगा रहा। पटना से लौटने पर सबसे पहले अपने पिता सीमांचल की गांधी कहे जाने वाले सुरजापुरी विकास परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष से आशीर्वाद लिया। अपने पुराने कार्यकर्ता नेता के साथ एनडीए के सभी नेताओं के साथ बातचीत शुरू कर दिया। गोपाल अग्रवाल के स्वागत में निकली रैली मानो उनके विधायक बनने का जश्न जैसा था। स्वागत समारोह में गोपाल अग्रवाल ने जो पोस्टर लगाया था वह चुनाव की पट कथा कहने को आतुर था। लिखा था समझे, फिर तय करें क्या चाहिए? जात, बिरादरी, संप्रदाय, भ्रष्टाचार, लुट या सम्मान के साथ विकास भाईचारा और राजनीतिक साझेदारी! जदयू के तीर निशान से वे अपने विरोधियों को कैसे घायल करते है यह तो विधानसभा के मिलने वाले टिकट पर निर्भर करेगा। लेकिन फिलहाल यह तो स्पष्ट है गोपाल अग्रवाल ने जदयू में शामिल होकर ना सिर्फ ठाकुरगंज बल्कि किशनगंज सीमांचल की राजनीति को लीला करना शुरू कर दिया है। उनके कई मुस्लिम समर्थकों से जब यह पूछा कि मुसलमानों ने तो गोपाल अग्रवाल को हराने की कसम खाई है आप क्यों दे रहे है साथ? इसके जवाब में कहा जो गोपाल अग्रवाल को मुस्लिम विरोधी बता रहा है उन्हें पता नहीं कि जितनी उनकी उम्र नहीं होगी उनने जनाजे और मिट्टी देने में गोपाल जी शामिल रहे है। जब सुरजापुरी की आवाज कोइ नहीं था तो इसी परिवार ने सुरजापुरी विकास परिषद बनाकर यहां की आवाज पटना तक पहुंचाया। महानंदा पर नया ब्रिज, बाईपास रोड सहित स्थानीय किसी भी समस्या को लेकर विधायक नहीं रहते भी गोपाल अग्रवाल लोगो के पास खड़ा रहे। ऐसे लोग को हम कैसे छोड़ सकते है। क्योंकि बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या को लेकर लोग चिंतित है। वर्तमान विधायक को लेकर भी मतदाताओं और नेताओं के बीच आक्रोश है। अगर विधायक नहीं बदले तो भितरघात का सबसे ज्यादा डर है। बिहार का चुनाव इस बार एनडीए और महागठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। अंतरराष्ट्रीय और अंतरराज्यीय सीमा से घिरा ठाकुरगंज विधानसभा। ठाकुरगंज विधानसभा सीट बिहार के सीमांचल इलाके की एक रणनीतिक रूप से अहम और राजनीतिक रूप से बेहद दिलचस्प सीट मानी जाती है। क्योंकि जनसंख्या जातीय भाषाई समीकरण देखे तो यह मिनी इंडिया नजर आएगा। किशनगंज जिले में आने वाली यह विधानसभा सीट सामाजिक और सांप्रदायिक विविधता से भरपूर है और हर चुनाव में कोई न कोई नया संदेश देती है। यह सीट ना तो किसी एक पार्टी की जागीर रही है, ना ही यहां कोई जातीय समीकरण स्थायी साबित हुए हैं। यही वजह है कि ठाकुरगंज हमेशा राजनीतिक विश्लेषकों और कार्यकर्ताओं के लिए जिज्ञासा का विषय बनी रहती है। ऐसे में मुकाबला दिलचस्प होने वाला है और यह चुनाव सिर्फ नेताओं का नहीं, जनता के बदलते मिजाज का भी इम्तिहान होगा।1952 में ठाकुरगंज विधानसभा सीट अस्तित्व में आया था। 90 के दशक तक यहां कांग्रेस का मजबूत रहा। 1952 में अस्तित्व में आई ठाकुरगंज विधानसभा सीट 90 के दशक तक कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा। 90 के बाद यह राजनीति का प्रयोगशाला बन गया। 90 में जनता दल फिर लालू लहर में 95 में भाजपा के खाते में आई थी। सिकंदर सिंह विधायक बने थे। उसके बाद इस सीट पर 2005 में समाजवादी पार्टी से गोपाल अग्रवाल ने जीत दर्ज की थी। 2010 में लोजपा से नौशाद आलम ने जीत दर्ज की और 2015 में जदयू से नौशाद आलम को जीत मिली। 2020 में वर्तमान में जदयू को इस सीट पर कब्जा करने से चूक गए। महागठबंधन से राजद उम्मीदवार 2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सऊद आलम ने शानदार जीत दर्ज की थी। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार गोपाल कुमार अग्रवाल को 23,887 वोटों के भारी अंतर से हराकर राजद को इस सीट पर लंबे अरसे बाद मजबूती से स्थापित किया। सऊद आलम को कुल 79,909 वोट मिले, जबकि गोपाल कुमार अग्रवाल को 56,022 वोट हासिल हुए। लेकिन यहां तक पहुंचने की कहानी सीधे नहीं रही। 2015 में जदयू के नौशाद आलम ( तातपौआ) ने 8,087 वोटों के मार्जिन से जीत हासिल की थी, और 2010 में वही नौशाद आलम लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के टिकट पर चुनाव जीत चुके थे। इससे ये बात और भी साफ होती है कि इस सीट पर दल नहीं, उम्मीदवारों का व्यक्तिगत प्रभाव कहीं अधिक मायने रखता है। गोपाल अग्रवाल 2005 में उन्होंने SP के टिकट पर चुनाव लड़कर कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. मोहम्मद जावेद को हराया था। 2010 में JD (U), 2015 में LJP और 2020 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और हर बार दूसरे स्थान पर रहे। देखना होगा को अब आगे राजनीति क्या मोड लेता है। ( बिहार से अशोक झा की रिपोर्ट )
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