मनसा देवी सर्प और कमल पर विराजित दिखाया जाता है। कहते हैं कि 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। उनकी गोद में उनका पुत्र आस्तिक विराजमान है। आस्तिक ने ही वासुकी को सर्प यज्ञ से बचाया था। बंगाल की लोककथाओं के अनुसार, सर्पदंश का इलाज मनसा देवी के पास होता है।नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है. श्रीमद् देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा की कथाओं के बारे में बताया गया है। जिसमें एक कथा मां मनसा देवी से जुड़ी हुई है। नवरात्रि मां जगदम्बा की पूजा-अर्चना का पक्ष है, जिसमें मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है. श्रीमद् देवी भागवत पुराण ऐसा ग्रंथ है, जिसमें मां भगवती के कई रूपों, उनकी कथाओं और पूजा विधियों व मंत्रों का जिक्र है. उन्हीं में मां का एक रूप मनसा देवी के रूप में भी है. सिद्ध पुरुषों की अधिष्ठात्री देवी मनसा की सबसे पहली पूजा भगवान श्रीकृष्ण और महादेव ने की थी. आज हम आपको मां मनसा देवी की कथा व पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं।ब्रह्मा जी ने मंत्रों की रचना कर अपने मन से मनसा देवी को प्रकट किया था।मां मनसा देवी की कथा: पंडित अभय झा के अनुसार, मनसा देवी की कथा देवी भागवत पुराण में भगवान नारायण द्वारा कही गई है. जिसमें वे बताते हैं कि प्राचीन समय में जब सृष्टि में नागों का डर बढ़ गया था तो कश्यप ऋषि के सहयोग से ब्रह्मा जी ने मंत्रों की रचना कर अपने मन से मनसा देवी को उनकी अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रकट किया था. जो ब्रह्मा जी के मन से प्रकट होने पर ही मनसा कहलाई. मां मनसा ने बाल्यकाल में भगवान शंकर व उनके कहने पर श्रीकृष्ण की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें कई सिद्धियां प्रदान करते हुए खुद ही उनका पहला पूजन किया।
इसके बाद भगवान शंकर, कश्यप देवता, मुनी, मनु, नागों और मनुष्यों ने उनको पूजा. मनसा देवी का विवाह ऋषि जरत्कारू से हुआ था, जिन्होंने संध्या पूजा के लिए नींद से जगाने पर क्रोध में पत्नी मनसा का त्याग कर दिया था. बाद में भगवान श्रीकृष्ण, शंकर व नारद मुनि ने समझाया. जिसके बाद उन्हें एक पुत्र भी प्राप्त हुआ, जिसे भगवान शंकर ने वेदों का अध्ययन करवाया।
कथा के अनुसार जब तक्षक नाग के काटने पर परीक्षित की मृत्यु हुई और पुत्र जनमेजय ने यज्ञ कर सभी नागों को भस्म करना शुरू किया तो तक्षक नाग इन्द्र देवता के साथ मनसा देवी की शरण में गया. तब मनसा देवी ने ही मुनि आस्तीक को जनमेजय के पास भेज तक्षक के प्राणों की रक्षा करवाई।मनसा देवी की पूजा विधि व मंत्र; मनसा देवी की पूजा कभी भी की जा सकती है. पर आषाढ मास की सक्रांति, नाग पंचमी व मास के अंत में पूजा का विशेष महत्व है. इस काल में भक्तिभाव से मां को नैवेद्य, पुष्प, वस्त्र आदि चढ़ाकर द्वादश या दशाक्षर मंत्र का जाप करना चाहिए. जो इस तरह है:-
मनसा देवी का द्वादश मंत्र: ऊं ह्लीं श्रीं कृीं एैं मनसा देव्यै स्वाहा
मनसा देवी का दशाक्षरमंत्र: ऊं ह्लीं श्रीं मनसा देव्यै स्वाहा।
देवी भागवत पुराण के अनुसार, मनसा देवी के द्वादश मंत्र का पांच लाख बार जाप करने पर साधक सिद्ध हो जाता है. उसके लिए विष भी अमृत के समान हो जाता है और उसकी तुलना धनवंतरी से की जा सकती है. जो पुरुष सक्रांति या अन्य शुभ अवसर पर स्नान करके भक्ति भाव से माता की पूजा व ध्यान करता है, वह धनवान, पुत्रवान और कीर्तिमान होता है। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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