हमारे यहाँ सबसे छोटे बच्चे को पेट पोछना कहते हैं, मुझे इस शब्द से बेहद प्यार इसलिए हैं, क्योंकि मुझे ये उपाधि बचपन में मिली। वैसे तो मुझे कई नामों से बचपन में बुलाया जाता था, जैसे छेनू या विपुल या मोटका फिर विजय और बड़े होने पर डॉक्टर या डॉक्टर साहब।
पर मुझे जो नाम पसंद आता था वो था पेट पोछना। पसंद आने के कारण भी थे। इस नाम से मुझे मेरी प्यारी नेपाली बजई बुलाती थी। इस नाम से मेरी दोनों प्यारी बुवा जी कभी कभी बुलाती थी। पर मुझे कभी पेट पचाना का अर्थ नहीं समझ के आया।
उम्र बढ़ने पर, ये पता लगा कि ये शब्द उस बच्चे के लिए इस्तेमाल करते हैं जी सबसे छोटा हो। अर्थ ये रहता था कि सारे भाई बहनों के सीरिज में सबसे छोटा और अंत में जन्म लेने वाला अवतार।
पेट पोछना के अधिकार असीमित रहते थे। बाल्यकाल में कुछ भी बोलो कुछ भी करो कुछ भी मांगों वो मिला! दीदियों ने अपने इस सबसे छोटे भाई पर खुल के प्यार लुटाया। पर दिक्कतें भी रहतीं थी। सभी साधन का अत्यधिक इस्तेमाल से बाक़ी लोगों के आँखों में मैं खटकता भी था।
खैर पेट पोछना उपाधि के साथ जो प्यार मिलता था, वो सातवीं या आठवीं क्लास के बाद तब कम हो गया जब पढ़ाई लिखाई का जोर आया! धक्का तब लगा जब दसवीं क्लास में अंग्रेजी में १०० में ३३ नंबर आया! घर में डाट पड़ी सख्ती हुई तब पढ़ाई की और मन मुड़ा और पेट पोछना जीवन से कहीं और छूट गया!
कभी कभी वो दिन याद आते हैं तो आनंद आता है। समाज में सभी पेट पोछना को यह लेख समर्पित। ( बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर विजय नाथ मिश्र की कलम से )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/