आज जब लखनऊ विश्वविद्यालय के एल.बी.एस. हॉस्टल की चौखट पर कदम रखा, तो जैसे समय थम-सा गया। वही गलियाँ, वही कमरा, वही परछाइयाँ — जहाँ जवानी के दस वर्ष केवल बीते नहीं, बल्कि संवरते चले गए। यही वो जगह है जहाँ जिंदगी को जीने की असली कला सीखी, संघर्ष का स्वाद चखा और राष्ट्रवाद की अलख को भीतर तक आत्मसात किया।
इन्हीं दीवारों के बीच छात्रसंघ का महामंत्री बनने का गर्व मिला, और फिर साथियों के विश्वास से अध्यक्ष चुना गया — ये कोई पद नहीं था, यह उस युग की विचारधारा, हौसलों और कर्तव्यों की पहली सीढ़ी थी।
आज जब वर्षों बाद फिर से उन्हीं साथियों, सीनियर्स और जूनियर्स से मिलना हुआ, तो जैसे पूरा अतीत आँखों के सामने चलचित्र की तरह जीवित हो उठा। वो बहसें, वो संघर्ष, वो जीत की मुस्कान और कभी-कभी हार से मिली सीखें — सब कुछ आज भी दिल में उतना ही ताज़ा है।
मेरे उन दिनों के साथी मेरे जीवन की पूँजी हैं, जिन्होंने हर कदम पर साथ दिया, राह दिखाई और कभी-कभी आईना भी। मैं उन सभी को आज सादर प्रणाम करता हूँ — आप सभी का मेरे जीवन में जो योगदान है, वह अविस्मरणीय है।
छात्र राजनीति ने केवल नेतृत्व नहीं सिखाया, बल्कि सुनने, समझने और संघर्ष करने का माद्दा दिया। यही अनुभव आज भी जनसेवा की राह में मेरी ऊर्जा है।
एल.बी.एस. हॉस्टल सिर्फ एक इमारत नहीं, मेरी आत्मा का एक हिस्सा है —
जहाँ सपने देखना भी सीखा और उन्हें साकार करने की हिम्मत भी।सभी को पुनः शुभकामनाएं ( बीजेपी एमएलसी संतोष सिंह की कलम से )
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