*गुरु और शिष्य की परम्परा में धर्म और जाति का भेद नहीं
*गुरुपूर्णिमा पर पातालपुरी मठ ने मिटा दिये सारे भेद, जहां राम हैं, वहां कोई भेद नहीं
• गुरु का काम अज्ञान के अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाना
• सैकड़ों मुस्लिमों और आदिवासियों को जगद्गुरु ने दीक्षा देकर शिष्य बनाया
• मठ के दरवाजे सबके लिए खुले, राम के दर पर किसी से भेद नहीं होगा
• काशी गुरुओं का स्थान, नौकरी के लिये विश्वविद्यालय की डिग्री और जीवन के लिए गुरु की दीक्षा की जरूरत
• चरण वंदना, महाआरती और अंगवस्त्रम से मुस्लिम समाज ने प्रगट किया जगदगुरु बालक देवाचार्य के प्रति आदर
वाराणसी, 10 जुलाई। कहीं धर्म पूछकर आतंकी गोली मार रहे हैं, जाति के नाम पर उपद्रव किये जा रहे हैं, वहीं काशी ने इस नफरत के माहौल में फिर से प्रेम, शांति और रिश्तों की एकता का संदेश पूरी दुनियां को दिया। काशी स्थित रामानन्दी सम्प्रदाय के प्राचीन पातालपुरी मठ में भारत के सांस्कृतिक एकता की खूबसूरत तस्वीर दिखाई दी। जब मुस्लिम महिलाएं पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी महाराज की आरती उतारी और तिलक लगाकर स्वागत सम्मान किया। मुस्लिम बन्धुओं ने जगद्गुरु को रामनामी अंगवस्त्रम् ओढ़ाकर सम्मानित किया। धर्म जाति से ऊपर उठकर अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करने का सबसे बड़ा त्योहार है गुरुपूर्णिमा। यह गुरु और शिष्य के रिश्ते को मजबूत करने वाला है। दीक्षा लेकर अपने गुरु के बताए मार्ग पर चलना, लोक कल्याण करना, देश के लिए जीना, पारिवारिक एकता बनाये रखने के लिए त्याग करना, सभी लोगों का सम्मान करना ही असली गुरुदीक्षा है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना और जीवन जीने का तरीका बिना गुरु के सम्भव नहीं है।
पातालपुरी मठ भारत की महान गुरु परम्परा का गवाह बना। सैकड़ों की संख्या में मुस्लिमों ने गुरुदीक्षा लेकर देश के लिए जीने की शपथ ली। भगवान राम के रास्ते पर चलकर ही देश और परिवार के लिए त्याग किया जा सकता है। यही जगद्गुरु का संदेश है।
इस अवसर पर जगदगुरु बालक देवाचार्य जी महाराज ने कहा कि रामपंथ एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है जिससे लोगों में दया, प्रेम, करुणा, शांति, लोक कल्याण की भावना विकसित की जाती है। अखण्ड भारत भूमि पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति डीएनए, पूर्वज, परम्परा, संस्कृति से एक ही है। उसको अलग नहीं किया जा सकता। रामपंथ में सबका स्वागत है। किसी को न मना किया जा सकता है और न किसी से कोई भेद किया जा सकता है। धर्म और जाति के नाम पर भेद करने वाले कट्टरपंथी अब समाज को स्वीकार्य नहीं है। धर्म के नाम पर हिंसा करने वाले अधर्मी हैं। सभी को राम के रास्ते पर चलकर ही जीवन को श्रेष्ठ बनाना होगा। दुनिया शांति के रास्ते पर तभी चल पाएगी जब वह भगवान राम के रास्ते पर चलेगी। राम का नाम प्रेम, दया और शांति का दर्शन है।
दीक्षा पाकर शहाबुद्दीन तिवारी, मुजम्मिल, फिरोज, अफरोज, सुल्तान, नगीना, शमशुनिशा बहुत खुश थे। शहाबुद्दीन तिवारी ने कहा कि हमारे पूर्वज रामपंथी थे, इसी मठ के अनुयायी थे। भले ही हमारी पूजा पद्धति बदल गयी है लेकिन हमारे पूर्वज, परम्परा, रक्त और संस्कृति नहीं बदल सकती। जो लोग नफरत फैलाएं, लेकिन हम तो उसी गुरु के पास जाएंगे जो हमारे जीवन को बदल सके। हम शांति चाहते हैं। नफरत को खत्म करके प्रेम को फैलाने वाला ही असली गुरु है।
नौशाद अहमद दूबे ने कहा कि गुरु पीठ के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। ज्ञान तो गुरु से ही मिलेगा, जिसके पास ज्ञान है फिर वहां भेद नहीं हो सकता।
मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष नाज़नीन अंसारी ने कहा कि राम के रास्ते पर चलकर ही विश्व में शांति आ सकती है। गुरु के बिना राम तक नहीं पहुंचा जा सकता है। गुरु ही अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जा सकता है। नफरत, हिंसा, घृणा, भेद, अहंकार जो गुरु खत्म करने की क्षमता रखे आज उसी की जरूरत है। वही देश बचा सकता है।
जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी महाराज ने आदिवासी समाज के बच्चों को दीक्षित कर संस्कृति के प्रसार की जिम्मेदारी सौंपी। मुस्लिम समाज के लोगों को भी कहा भारत की महान संस्कृति को दुनियां के कोने-कोने तक पहुंचाएं और अपने पूर्वजों से जुड़े।
इस अवसर पर रामपंथ के पंथाचार्य डॉ० राजीव श्रीगुरुजी, रामाचार्य ज्ञान प्रकाश जी, धर्म प्रवक्ता डॉ० कवीन्द्र नारायण, डॉ० अर्चना भारतवंशी, डॉ० नजमा परवीन, आभा भारतवंशी, डॉ० मृदुला जायसवाल, फिरोज पाण्डेय, अफरोज पाण्डेय, अब्दुर्रहमान दूबे, अफसर बाबा, वकील अंसारी, विक्की अंसारी, इली, खुशी, उजाला, दक्षिता आदि लोगों ने प्रमुख रूप से भाग लिया। फरोग आलम ने बांसुरी बजाकर गुरु के चरणों की वंदना की।
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