- जिन्होंने महाकाव्य रामायण का संस्कृत से नेपाली में अनुवाद कर जन जन तक पहुंचा
भारत के सिक्किम और दार्जिलिंग जैसे नेपाली भाषी क्षेत्रों में हर साल की तरह इस वर्ष भी नेपाली भाषा के आदि कवि भानुभक्त आचार्य की 211वीं जयंती मनाई जा रही है। सिक्किम और बंगाल में तो भानु जयंती पर सार्वजनिक अवकाश भी होता है। भानु जयंती को एक सांस्कृतिक और साहित्यिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इससे उनका भारत से अनूठा रिश्ता जाहिर होता है। सिक्किम के मौजूदा प्रेमसिंह तमांग और दार्जिलिंग के सांसद राजू विष्ट, वार्ड एक के पार्षद संजय पाठक ने बातचीत में भानु जयंती के बारे में बताया कि उसे वहां विशेष महत्व दिया जाता है।13 जुलाई, 1814 को नेपाल के तनहु ज़िले के चुंडी रामघा में जन्में भानुभक्त का सबसे बड़ा योगदान हिंदू महाकाव्य रामायण का संस्कृत से नेपाली में अनुवाद करना माना जाता है।इससे महाकाव्य रामायण नेपाल की एक बड़ी आबादी के लिए सुलभ हो गया। माना जाता है कि आदि कवि भानुभक्त आचार्य के साहित्य का प्रभाव नेपाली भाषी क्षेत्रों के परिदृश्य को आकार देने में भी रहा है। भारत में नेपाली भाषा को विशेष सम्मान प्राप्त है। भारत ने अपने यहां बोली जाने वाली 22 भाषाओं के साथ इसे 1992 से भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर रखा है।सिक्किम और भारत के पूर्वोत्तर में नेपाली भाषी लोगों का एक बड़ा वर्ग रहता है। सिक्किम के 62.6 फ़ीसद लोग नेपाली बोलते हैं।इसकी वजह से यहां भानु जयंती का महत्व भी है। इस दिन कवि भानुभक्त आचार्य को कई सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रमों के ज़रिए याद किया जाता है।इनमें आदि कवि की रचनाओं के पाठ, कविता प्रतियोगिताएं और संगीत समारोह शामिल हैं।
इस दौरान उनके योगदान पर चर्चा के लिए सेमिनार भी आयोजित किए जाते हैं। स्कूलों, कॉलेजों में भी इस दौरान नेपाली भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।भारत में नेपाली बोलने वाली सबसे बड़ी आबादी पश्चिम बंगाल में रहती है. 2001 की जनगणना के मुताबिक़, यहां 10.23 लाख लोगों की मातृभाषा नेपाली है।पश्चिम बंगाल में भी दार्जिलिंगके पूरे क्षेत्र में भानु जयंती बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है।सांस्कृतिक संगठन, शैक्षणिक संस्थान और सामुदादिक संस्था आदि कवि भानुभक्त आचार्य की स्मृति में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
ये समारोह नेपाली समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने और युवा पीढ़ी के बीच भाषाई और साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के मंच के रूप में काम करते हैं।
भानु जयंती सिक्किम और दार्जिलिंग दोनों में गहरा सांस्कृतिक महत्व रखती है। यह नेपाली भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण और प्रचार के महत्व पर ज़ोर देती है। यह दिन भानुभक्त आचार्य के योगदान का सम्मान करने के साथ इन क्षेत्रों में नेपाली भाषी समुदायों के बीच गर्व और पहचान की भावना पैदा करता है।भानु जयंती का गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है. इस दिन बड़े बड़े साहित्यिक आयोजन होते हैं जिसमें साहित्यकार, लेखक और उपन्यासकारों के साथ नेपाली साहित्य के प्रशंसक उत्साहपूर्वक शामिल होते हैं।वे कहते हैं, "कवि भानुभक्त ने नेपाली भाषा में रामायण को लिख कर एक महान काम किया. भानुभक्त केवल लेखकों के लिए प्रेरणास्त्रोत नहीं हैं बल्कि उन सबों के लिए भी हैं जो अपनी भाषा की ताक़त और महत्व की वकालत करने के साथ अपने पूर्वजों की विरासत की रक्षा करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान विपक्ष के नेता पवन चामलिंग ने भानुभक्त आचार्य के योगदान की चर्चा करते हुए कहा, भानुभक्त आचार्य ने सरल नेपाली भाषा में रामायण लिख कर नेपाली समाज को एक नई दिशा दी है. उनकी कविता 'लोक्को गरुण हित' सामाजिक कल्याण को समर्पित थी। भानु जयंती एक ऐसा उत्सव है जिसके ज़रिए हमारे सभी लेखकों को सम्मानित करने का अवसर भी मिलता है। गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के मुख्य कार्यकारी दार्जिलिंग के अनित थापा ने समुदाय की पहचान में भाषा और संस्कृति के महत्व पर जोर देते हुए भानु जयंती पर अपनी शुभकामनाएं दीं। थापा ने कहा, "भाषा किसी की संस्कृति के प्रचार प्रसार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए, भानु जयंती भारतीय गोरखाओंके लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है।"उन्होंने कहा, "संस्कृति के प्रसार में भाषा एक महत्वपूर्ण किरदार निभाती है. इसलिए भारतीय गोरखाओं के लिए भानु जयंती का एक विशेष महत्व है। ( अशोक झा की कलम से )
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