चढ़त अषाढ़ गगन घन,
गरजत घूमत चहुंओर ।
चलत पवन अपने धुन,
रिम झिम बूंद परत चहुंओर।।
जेठ ताप झुलसे पादप,
नीर बिहिन नदी तालसब।
मगन,, अटल,,देख नीर,
हिल डुल पात करें स्वागत अब।।
अति घाम स्वेद तन राह दूभर,
बाल वृद्ध पशु पक्षी विकल।
घन घनश्याम मनो निरखत,
सुखी नर नारी जीव जन्तु बल।।
सन सन पवन बहत तन,
पा स्पर्श सुखद लगत मन।
स्वाति बूंद जस चातकचाह,
,, अटल,,घटा लख हों जन।।,, अटल,, रामाधार पाण्डेय।
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