विजय रूपानी जी जिस दौर में गुजरात के मुख्यमन्त्री थे, मैं उस दौर में दिल्ली में नवभारत टाइम्स का नैशनल पोलिटिकल एडिटर हुआ करता था। रुपानी जी नियमित अंतराल पर दिल्ली से पत्रकारों को बुलाया करते थे, गुजरात में उनकी सरकार ने जो कुछ नया किया होता था वो दिखाने के लिए।पहले उनके ऑफिस से ऑफिसियल आमंत्रण आता फिर रूपानी जी ख़ुद फ़ोन से न्योता देते, यह कहते हुए- बहुत दिन हो गया दिल्ली की कोई खबर नहीं मिली, आप लोग आएंगे तो दिल्ली का हालचाल मिल जाएगा।
बैठकी में गुजरात के विकास यात्रा की बात शुरू होती तो मोदी जी का ज़िक्र ना हो तो यह मुमकिन ही नहीं था, मैं अक्सर मज़ाक़ में बोल दिया करता था कि देखिए, मोदी जी अब हमारे यूपी के हो चुके हैं। रुपानी जी भी कभी कभी चुटकी ले लेते थे कि नदीम जी से डरना पड़ता हैं, मोदी जी इनके राज्य से आते हैं।
रूपानी जी से रिश्ते प्रगाढ़ होते गए। बग़ैर गुजरात गये भी बातचीत हो ज़ाया करती थी। कोरोनाकाल में हमारे लखनऊ, बाराबंकी के कुछ परिचित गुजरात में लॉकडाउन में फँस गये। उन लोगों से ज्यादा उनके परिवार के लोग परेशान थे। सबका दबाव था कि कुछ करिए। मैंने रूपानी जी के ऑफिस को नोट कराया। एक घंटे के अंदर उनका संदेश आया, बेफ़िक्र रहिए। मेरे अफ़सर उन सारे लोगों तक पहुंच गये हैं।
फिर रुपानी जी मुख्यमन्त्री नहीं रहे, मैं भी कुछ समय बाद लखनऊ आ गया। लेकिन कोशिश रहती थी फ़ोन से ही सही दुआ सलाम हो जाय। मक़सद यही रहता था कि यह ना हो कि अपनत्व का जो रिश्ता बना था, वो सिर्फ़ मुख्यमन्त्री कि कुर्सी तक ही था। एक बार मैंने उन्हें यह बात बता भी दी तो वो खूब तेज़ हंसे। बोले- यह सुनकर अच्छा लगा।
मुख्यमंत्री के रूप में उनकी सरलता मुझे बहुत भाती थी। हर इंसान के हिस्से में मौत लिखी है, लेकिन जिस तरह वो एक हादसे के शिकार हुए वो बहुत दुख देने वाला रहा। वो हादसा ही इतना भयावह है कि मन सिहर उठता है। श्रद्धांजलि💐 ( यूपी के राज्य सूचना आयुक्त व देश के वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद नदीम की भावांजलि )
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