- बंगाल में आज सुबह से ही मिठाई और मछली बाजार में भीड़
- आप भी जान ले भगवान विष्णु से जुदा है इस त्यौहार का महत्व
- यह त्योहार सास और दामाद के बीच एक मजबूत बंधन का प्रतीक है
पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार है सिलीगुड़ी। इसे मिनी इंडिया भी कहा जाता है। यहां सभी जाति और वर्ग के सांस्कृतिक अनुष्ठान को त्यौहार की तरह मनाया जाता है। इसी क्रम में बंगाल में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक जमाई है षष्ठी जमाई। जमाई षष्ठी का शाब्दिक अर्थ क्या है?: जमाई शब्द का अर्थ है दामाद, जबकी षष्ठी का अर्थ चंद्र मास का छठा दिन से है अर्थात् ज्येष्ठ माह के षष्ठी के दिन मनाए जाने वाले पर्व को जमाई षष्ठी कहा जाता है। आज इसे त्यौहार की तरह मनाया जा रहा है। क्या है यह त्यौहार : षष्ठी के दिन सास अपने दामाद तथा बेटी को घर आने के लिए आमंत्रित करती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार जमाई षष्ठी ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। जो आज यानि रविवार को है। विशेष रूप से जमाई षष्ठी का त्योहार अपने दामाद को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। जमाई षष्ठी जैसे खास अवसर पर दामाद अपनी पत्नी के साथ ससुराल जाते है और सास अपने दामाद का स्वागत करती है तथा अपने दामाद को तिलक लगाती है और आशीर्वाद के रूप में अपने दामाद के कलाई पर पीला धागा बांधती है। हर बंगाली परिवार जमाई षष्ठी जैसे इस शुभ दिन को धूमधाम तथा ढ़ेर सारे व्यंजनों के साथ मनाती है।बंगाली समुदाय मे जमाई षष्ठी त्योहार का विशेष महत्व है तथा यह त्योहार सास और दामाद के बीच एक मजबूत बंधन का प्रतीक है तथा इस दिन सास अपने दामाद को सुख, समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद देती है।जमाई षष्ठी जैसे शुभ अवसर पर बेटियों और दामादों के लिए उपहार, कपड़े, साड़ियाँ और गहने खरीदा जाता है। जमाई षष्ठी के दिन सास अपने घर में देवी षष्ठी की पूजा करती है तथा इस दौरान देवी षष्ठी को पाँच प्रकार का फल, फूल, अक्षत तथा सिंदूर चढ़ाती है। उसके बाद सास अपने दामाद के लिए विभिन्न तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाती है। और इसके बदले दामाद भी अपने सास के लिए कई उपहार तथा गिफ़्ट लाते है और इस तरह जमाई षष्ठी का त्योहार मनाया जाता है।
जमाई षष्ठी की तैयारी: सास अपने दामाद की स्वागत के लिए इस बड़े दिन की तैयारी पहले से ही शुरू कर देती है। सास अपनी बेटी और दामाद के लिए उपहार, साड़ियाँ और कभी-कभी सोने के गहने भी खरीदती हैं। उसके बाद एक भव्य दावत की योजना बनाई जाती है, जिसमें बंगाली व्यंजनों का सबसे अच्छा स्वाद होता है और इसमें दामाद के पसंदीदा व्यंजनों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। क्या है अनुष्ठान और परंपराएँ: बंगालियों के घरों में जमाई षष्ठी का त्योहार बहुत ही उत्साह और हर्षोंल्लास के साथ मनाया जाता है। जमाई षष्ठी उत्सव की शुरुआत देवी षष्ठी की पूजा से होती है, जिसमें सास अपने परिवार की खुशहाली के लिए माता देवी षष्ठी से आशीर्वाद माँगती है। उसके बाद सास अपने जमाई का स्वागत आरती और तिलक लगाकर करती है, जो प्यार और सम्मान का प्रतीक है। सुरक्षा और सौभाग्य के प्रतीक के रूप में सास अपने दामाद के कलाई पर एक पवित्र पीला धागा बाँधती है। जमाई षष्ठी के दिन दामाद का स्वागत:
जमाई षष्ठी की शुरुआत में सबसे पहले सास अपने दामाद को गृह प्रवेश करवाती है। इस दौरान सास अपने दामाद को तिलक लगाती है और अपने दामाद की कलाई में पीला धागा बांधती है तथा उसके बाद अपने दामाद को कपूर से आरती कर खुशहाल रहने का आशीर्वाद देती है। अंत में दामाद अपने सास का पैर छूकर आशीर्वाद लेता है।
अब देखे जमाई षष्ठी की थाली में है क्या: दामाद के थाली में मछली, मिठाई, सब्जी और फलों की भरमार रहती है। यही कारण है कि आज सुबह से ही बाजार में बड़ी भीड़ लगी हुई है।
जमाई षष्ठी के दिन सास अपने दामाद को एक राजा जैसा सम्मान प्रदान करने के लिए स्वादिष्ट व्यंजनों से भरा एक थाल तैयार करती है। खासकर दोपहर के भोजन में सास अपने दामाद को भात, दाल, पाँच प्रकार की तली हुई सब्जी (भाजी), कोशा मांगशो, इलिश भापा तथा अन्य कई स्वादिष्ट व्यंजन परोसे जाते है।
शुक्तो – बंगालियों का सबसे लजीज तथा स्वादिष्ट व्यंजन शुक्तो है तथा शुक्तो, भोजन की शुरुआत करने के लिए एक कड़वी-मीठी सब्ज़ी का मिश्रण है। लूची और आलूर डोम – मसालेदार आलू की करी के साथ परोसी जाने वाली फूली हुई पूरी के साथ आलूर डोम का स्वाद काफी लज़ीज़ होता है। इलिश भापा (सरसों की ग्रेवी में हिल्सा मछली) – बंगालियों के हर एक अनुष्ठान में इलिश माछ जरूर परोसा जाता है तथा जमाई षष्ठी के इस अवसर पर इलिश भापा विशेष रूप से तैयार किया जाता है। चिंगरी मलाई करी – नारियल के दूध तथा मसालेदार ग्रेवी में पकाए गए चिंगरी मलाई करी खाने में काफी स्वादिष्ट होता है। रसीले फल- रसीले फल में मुख्य रूप से आम और लीची को स्वादिष्ट व्यंजन के साथ परोसा जाता है। मटन कोशा – धीमी आंच पर पकाए जाने वाला, मसालेदार मटन कोशा। मिष्ठी (मिठाई) – रसगुल्ला, संदेश, काचा गोला और मिष्ठी दोई जैसी मिठाइयाँ तथा ये सारी व्यंजन दामाद के लिए थाल में सजाया जाता है अर्थात् सास अपने दामाद के लिए एक राजा की तरह स्वादिष्ट खाना परोसती है और इस तरह दामाद अपने ससुराल में जमाई षष्ठी के दिन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठाते है। क्या है जमाई षष्ठी का महत्व:जमाई षष्ठी केवल एक त्यौहार नहीं है, बल्कि सास और दामाद के बीच प्यार और खूबसूरत बंधन की अभिव्यक्ति है। मान्यता है कि जमाई षष्ठी का त्योहार मनाने से दोनों परिवारों के बीच मतभेद कम होता है और इस दौरान सास तथा दामाद के बीच के रिश्ते ओर भी मज़बूत होते है। शुभो जमाई षष्ठी!
जमाई षष्ठी से जुड़ी कहानी को जाने :पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने घर पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती को भोज के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन आपस में मन मुटाव होने के कारण माता लक्ष्मी ने देवी पार्वती की स्वागत नहीं की, इससे भगवान शिव नाराज हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु को यह श्राप दिया कि तुम्हें अपना घर छोड़ रास्ते में एक भिखारी की तरह भटकना पड़ेगा। तभी भगवान विष्णु ने एक जमाई(दामाद) का रूप धारण किया और ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को माता लक्ष्मी से आशीर्वाद प्राप्त किया। सास से क्षमा माँगने की इस कृतज्ञ से भगवान शिव द्वारा दिए गए श्राप से भगवान विष्णु मुक्त हो जाते है और इस तरह भगवान विष्णु अपने घर वापस लौटने में सक्षम हो जाते है। एक अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में एक महिला अपने घर का सारा खाना खा लेती थी, और लगातार अपना दोष एक बिल्ली पर लगाती कि उसके घर का खाना बिल्ली खाई है। बिल्ली की सवारी करने वाली माँ षष्ठी उस महिला पर काफी क्रोधित हुई।
महिला गर्भवती थी तथा जब महिला के बच्चे धरती पर जन्म लिए तो उनमें से एक बच्चा ग़ायब हो गया, इस दौरान महिला देवी षष्ठी को खुश करने के लिए उनकी पूजा आराधना की। तो देवी षष्ठी महिला को उनका बच्चा वापस कर दी। लेकिन इस घटना की वजह से महिला के ससुराल वाले नाखुश थे, और महिला को अपने माता-पिता से मिलने के लिए मना कर दिए। लेकिन कुछ सालों बाद षष्ठी पूजा के दिन महिला की माता-पिता अपने दामाद तथा बेटी को घर बुलाया और इस दिन को जमाई षष्ठी के रूप में मनाया गया। ( अशोक झा की कलम से )
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