आज अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जा रहा है। ऐसे में दुनिया भर में दार्जिलिंग की एनएस चाय को एक ख़ास मुकाम हासिल है। तो चलिए हो जाए पहले .. एक कप चाय। यहां आपको 150 रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये प्रति किलो वाली चाय मिल जाएगी। जेब और स्वाद आपका अपना ही चुनना पड़ेगा।दार्जिलिंग में चाय के 87 बागान हैं। हिल्स में चाय उत्पादन औसत प्रतिवर्ष 90 लाख किलो के करीब है। समतल यानि तराई- डुआर्स में इसकी संख्या 375 है। हर एक बागान में अपने तरह की अनूठी, शानदार ख़ुशबू वाली चाय तैयार की जाती है, दुनिया भर में दार्जिलिंग टी मशहूर है। एनएस चाय की कहानी भी कुछ अजीब है। बताया जाता है कि नक्सलबाड़ी के नारायण अग्रवाल का जीवन गरीबी में बिता। शादी के बाद उनकी पत्नी सीमा अग्रवाल उनके प्रेरणा बन व्यापार और उद्योग को आगे बढ़ाया। पति पत्नी दोनों ने दार्जिलिंग चाय पीते यह निर्णय लिया कि कम कीमत पर सबसे अच्छी चाय लोगों को क्यों ना पिलाए ? और फिर क्या एनएस यानि (नारायण - सीमा) की जोड़ी को बच्चे दिनेश योगेश ने आगे बढ़ाया। आज बंगाल के अलावा बिहार ,उत्तरप्रदेश सहित विदेशों में भी अपने नाम का डंका बजा रहा है। फैक्टी की बात करे तो सिलीगुड़ी से 72 किलोमीटर दूर दार्जिलिंग में दुनिया की सबसे पुरानी चाय फै़क्ट्रियों में शुमार मकाईबाड़ी चाय फैक्टरी पहुंच सकते हैं। यहां पर आप को दुर्लभ क़िस्म की चाय की पत्ती मिलेगी जिसे सिल्वर टिप्स इम्पीरियल के नाम से जाना जाता है। कीमत है डेढ़ लाख रुपये प्रति किलो। देश में इससे महंगी चाय का उत्पादन अन्यत्र कहीं नहीं होता। इसका पहला ग्राहक (बरसों से) ब्रिटेन का शाही परिवार है। बता दें कि पीएम मोदी ने भी ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ को इस चाय का एक पैकेट गिफ्ट किया था। शाही परिवार के आर्डर के बाद बची हुई चाय जापान और अमेरिका के खरबपतियों के हिस्से आती है जो एडवांस में आर्डर देकर रखते हैं। चाय सिल्वर टिप्स इम्पीरियल टी के नाम से विख्यात है।दार्जिलिंग का सबसे पुराना टी एस्टेट है जिसकी स्थापना 1859 में जीसी बनर्जी नामक शख्स ने की थी। बागान का स्वामित्व आज भी उनके परिवार के पास है। इस चाय की पत्तियों को तोड़ने के लिए भी ख़ास लोगों की टीम होती है। और यह काम भी सिर्फ और सिर्फ पूर्णिमा के दिन ही होता है। सीजन के लिहाज़ से देखा जाए तो साल में चार या पांच बार ही यहां से चाय पत्ती निकली जाती है। सामान्यत: चाय का सीजन मार्च से अक्टूबर के बीच होता है। मकाईबाड़ी में चाय तुड़ान के दौरान के वक्त विशेष किस्म के गीत गाये जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण होता है। यही नहीं चाय बनाने का सारा काम चांदनी भी रात को ही होता है। यानी दिन की रौशनी इसपर नहीं पड़ने दी जाती। चाय की खोज लगभग 4700 साल पहले हुई। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यूनान के दूसरे राजा शेन नूंग ने चाय की खोज की थी। राजा शेन को गर्म पानी पीने की आदत थी।लेकिन उनका सेवक एक बार जब उनके लिए गर्म पानी कर रहा था तो गलती से पास उगी झाड़ियों की टूट कर गिरी हुई कुछ पत्तियां पानी में आकर गिर गई। राजा ने पानी पिया तो उसे एक अलग सी ताजगी महसूस हुई। बस तभी से वह चाय का पानी पीने लगा। भारत में भी चाय किसी जड़ी-बूटी से कम नहीं माना जाता है। सिर दर्द है तो कड़क चाय, सर्दी खांसी है तो अदरक की चाय, यहां तक कि सुस्ती दूर करनी हो तो भी चाय ही काम आती है। चाय यहां की रोजमर्रा की जिंदगी में रच और बस चुकी है। ( अशोक झा की कलम से )
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस: पत्नी का प्यार व बच्चों की मेहनत ने बनाया है इस चाय को सबसे अलग
मई 21, 2025
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